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Sarita baghela Anamika

Tragedy Inspirational

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Sarita baghela Anamika

Tragedy Inspirational

नदी का दर्द

नदी का दर्द

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'एक बालक नदी किनारे बैठा हुआ था, अचानक नदी में से कुछ रोने की आवाज़ सुनाई दे रही थी।

तभी वे आवाज़ की दिशा में खड़े होकर बोला आप जो भी हो ,कृपया मेरे सामने प्रकट हो जाइए।'

 (बालक हाथ जोड़कर बारंबार प्रार्थना कर रहा था)

'प्रार्थना करने पर नदी स्त्री रूप में प्रस्तुत होती हैं।'

"आप इतना करुण स्वर में क्यों रो रही हैं ?

कृपया हे माता आप अपना दुख मुझे बताएं।"

क्या बताऊं बेटा,तुम्हारे प्रेम पूर्वक पूछने पर, मैं अपनी आत्मकथा तुम्हें सुना तो रही हूं पर क्या तुम मेरी मदद कर पाओगे।

( नदी रोते हुए बोल रही थी)

मैं यथासंभव पूर्ण प्रयास करूंगा।

( बालक विनम्र शब्दों में हाथ जोड़कर कहता है)

"मैं एक नदी हूं, मुझे इस धरती पर पूजापाठ, मानवों की वर्षों की तपस्या से देवो के द्वारा,मानव,जीव,जंतु व धरती पर सभी का कल्याण करने के लिए स्वर्ग से उतारा गया है,मैं गंगा हूं,मैं जमुना हूं,मैं गोदावरी हूं,मैं सरजू नदी हूं, मेरे अनेकों नाम है इस धरती पर पहले जैसा मेरा महत्व अब कोई नहीं समझता, मैं आज रोती हूं अपने ही उद्गम पर, क्योंकि मुझे पहले लोग पूजा करते थे, मुझे स्वच्छ रखा करते थे आज मुझे गंदगी से भर दिया है,जगहजगह कचरा,कूड़ा और पूजा का सामान यहां तक कि मनुष्य का मृत शरीर, व जानवरों का मृत शरीर,फैक्ट्रियों का गंदा दूषित जल,और तो और,गंदे कपड़े, मल तक मुझ में बहा देते हैं।"

(नदी रोते हुए लगातार बोले जा रही थी)

"मैं शुद्ध पवित्र जल हूं, मेरे पीने मात्र से मानव की अनेकों रोग नष्ट हो जाते हैं मुझमें कई तरह के जीवजंतु पलते हैं उनका कल्याण होता है,मैं सभी रोगों को नष्ट करने वाली आज मुझे दूषित कर रोगी बना दिया है।"

"देखो बेटा इसी कारण कई स्थानों पर मैं विलुप्त होती जा रही हूं"

"इन अंधविश्वासी ढोंगी लोगों ने मेरा क्या हाल कर दिया है,मेरा जल कीचड़ बन गया है। जहांतहां गंदी बदबू आती है,

मेरी पवित्रता को नष्ट कर रहे हैं। 

क्या मानव को मेरी परवाह नहीं ?,

और साथ ही अपने जीवन की परवाह नहीं ?,

मैं सदा इनको देती आई हूं, और देती ही रहूंगी,क्या यह मुझे शुद्ध पवित्र और स्वच्छ नहीं रख सकते हैं ?"

(क्रोध में नदी बोलती जा रही थी।)

"हे मां, अब से मैं प्रण करता हूं, यथासंभव स्वच्छता अभियान में सहयोगी रहूंगा, और सभी को प्रेरणा दूंगा, कि वह गंदगी ना करें और स्वच्छता को बनाए रखें।"

( बालक वचन देते हुए बोलता है)

"बेटे मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूं और मुझे यकीन है,अब सब मानव मेरी इस दुर्दशा को समझेंगे और अपने जीवन के लिए ही सही मेरी स्वच्छता पर ध्यान देंगे,तब ही उनका और मेरा उद्धार हो पाएगा।"

(नदी प्रसन्न होते हुए बोल रही थी)

'अगले ही पल स्त्री रूप मैं नदी जल में समाहित हो जाते हैं।'

नदी की आत्मकथा सुनकर बालक हाथ जोड़कर जल में पड़े कूड़े करकट को अपने साथी बालको व अन्य मानवों के संग में सफाई अभियान में जुट जाते हैं और सभी को स्वच्छता के लिए प्रेरणा दे रहे थे !


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