आ बैल मुझे मार
आ बैल मुझे मार
'कड़ाके की ठंड थी ऊपर से पानी बरस रहा था कलुआ पतले से कपड़ों में कांपते हुए मजदूरी में लगा हुआ था,और मन में तरह-तरह के विचार..चल रहे थे बीवी को बुखार में छोड़ कर आया हूं, मैं बोलकर आया था,आधे दिन में छुट्टी लेकर आ जाऊँगा, वह मेरे जाते ही मुझ पर बरस पड़ेगी।'
'सोच-विचार में तगाड़ी में माल सर पर लेकर जा ही रहा था, कि अचानक ठोकर से गिर पड़ा। '
"क्यों रे कलुआ तेरा ध्यान किधर है, इतना सारा माल गिरा दिया, ठीक से काम नहीं कर सकता है क्या?"
(ठेकेदार चिल्लाता हुआ आता है।)
"हां साहब मैं संभल कर करूँगा अब की बार माफ़ कर दो।"-
( कलुआ कुछ संभलते हुए बोलता है।)
"अरे कलुआ तू वह रज्जो का काम कर लेने के लिए काहे को तैयार हो गया।"-( कलुआ का साथी रामू बोला।)
"अरे भाई वह ठेकेदार से बोल-- रही थी, कि आज उसकी तबियत ठीक नहीं है ,तो वे ज्यादा काम नहीं कर पाएगी, तो मैंने बोल दिया- 'कुछ भारी काम में, तुम्हारी मैं मदद कर दूँगा।' पर मैंने साथ ही ठेकेदार से कहा भी, मुझे आधे दिन की छुट्टी चाहिए, मेरी बीवी को 5 दिन से बुखार आ रहा है, उसे डॉक्टर को दिखाने जाना है, ठेकेदार ने तो मुझे मना कर दिया बोला- "कोई छुट्टी नहीं मिलेगी अब तू तेरा भी काम कर और इसकी भी मदद कर।"
-( कलुआ,.. रामू को उदास स्वर में बता रहा था)
अरे कलुआ तुझे तो लोगों की मदद करने का भूत सवार रहता है। हमेशा तेरे सीधेपन का फायदा लोग उठाते हैं, कभी तू समझता ही नहीं, तुझे तो पड़ी रहती है ना,
'आ बैल मुझे मार'।"
( रामू कलुआ पर गुस्सा होते हुए बोलता है)
"अरे वे धन कमाने के लिए अपनी मानवता को छोड़ देते हैं, पर मैं उनके वजह से अपनी अच्छाई कैसे छोड़ दूँ,जब वह नहीं बदले, तो मैं कैसे बदल जाऊं, कलुआ कहते हुए अपनी तगाड़ी उठाकर चल देता है!"