"सोलमेट"

"सोलमेट"

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जोरदार टक्कर से मोहन बाइक से उछलकर एक कोने में पड़ा था, जैसे तैसे वह अपने आपको संभालकर कुछ लड़खड़ाते कदमों से...वह पत्नी को खोजने लगा, बिना इस बात की परवाह किए कि उसके हाथ पैरों से भी खून निकल रहा था पत्नी को देखकर बदहवास हो जाता है, पत्नी का सर किसी बाइक के नीचे आ गया था और मानो वहां ज़ोरदार फटाके की आवाज़ से पूरा माहौल गुंजित हो गया था। मोहन अपने आपको तुरंत संभालता है और पत्नी गुड्डी को हाथों में लेकर तुरंत एक ऑटो में लेटा करके नज़दीकी एक प्राइवेट अस्पताल में लेकर जाता है, जहां डॉक्टर पत्नी की गंभीर हालत को देखकर परेशान होते हैं और आयसीयू में रेफर कर देते हैं। वहीं मोहन जो खुद भी काफी हद तक घायल हो चुका था, अपने ट्रीटमेंट पर ध्यान ही नहीं देता है, बस ईश्वर से एक ही प्रार्थना करता है, मेरी पत्नी गुड्डी हर हालत में ठीक हो जाए।

डॉक्टर गुड्डी के सर के कई तरह के ऑपरेशन करते हैं, फिर गले के और रीढ़ की हड्डी जो पूरी तरह से डैमेज हो चुकी थी उनका ऑपरेशन होता है, कई ऑपरेशन के बाद भी गुड्डी होश में नहीं आती है कई दिनों तक कोमा में रहने के बाद गुड्डी की बीच-बीच में आँखें खुल जाती है पर वे किसी को पहचान नहीं पाती हैं।

वह एक अबोध बच्चा बन के रह जाती है, मोहन उनकी हर अनकही बातों को खुद ही समझ कर उनकी हर जरूरत को पूरा करता था। गुड्डी की दिन- रात सेवा में लगे रहते, अपनी बिना परवाह किए क्या खाना है?,... क्या पीना है?,... वह अपने दर्द को भूल करके..वे सिर्फ गुड्डी के दर्द में अपना दर्द महसूस करते, हमेशा यह महसूस करते हैं,आज इतने दर्द में मेरी गुड्डी है, इसका कारण शायद मैं ही हूं... अपने को दोषी मानते हैं, मेरी गुड्डी को कभी कुछ नहीं होना चाहिए, गुड्डी के लिए रुपए-पैसा पानी समान था, जब जो कहते माेहन करता साथ ही वह हर डॉक्टर की सलाह से ट्रीटमेंट करा रहे थे। 


गुड्डी उनके जीवन का आधार थी, 45 साल की शादी में कभी ऐसा नहीं हुआ, कि उन दोनों के बीच किसी भी बात को लेकर, लड़ाई भी हो, या एक दूसरे की भावना को नहीं समझा हो, वह इशारों में ही एक दूसरे की बातों को समझ लिया करते थे, आज गुड्डी चुप थी जो लगातार बोला करती थी, गुड्डी मोहन की जीवन की परछाईं बनी रहती थी,.... परंतु उनकी चुप्पी में भी मोहन बहुत कुछ समझ जाया करते थे,कभी-कभी खुलती बंद होती हैं आँखें उनकी भूख प्यास दवा का टाइम,.....आज 2 साल लगातार एक पैर पर खड़े रहे। हरदम यही प्रयास रहता, शायद किसी भी इलाज से...गुड्डी पूरी तरह स्वस्थ हो जाएगी और फिर पहले जैसे ही वे दोनों पति-पत्नी या कहो प्रेमी जोड़े फिर एक दूसरे से बात करेंगे।


शादी उनकी भले ही उनके माता-पिता की पसंद से हुई हो पर शादी के बाद वे दोनों 45 साल तक प्रेमी जोड़े के जैसे रहे या यू कहें मेड फॉर ईच अदर....यह जोड़ियाँ शायद ईश्वर ने ऊपर से ही बनाकर पहुँचाई थी, जो लाखों में एक थी।

वे जीवन के हर लम्हो में दुख हो सुख हो एक दूसरे के साथ हर घड़ी रहते थे। मोहन ऑफिस भी जाते थे, तो भी लंच में गुड्डी के साथ ही खाना-खाने आते थे, और कहीं भी जाना हो साथ-साथ ही जाते, गुड्डी भी बिना मेकअप बिना साड़ी बदले, जब मोहन ने कहा तुरंत उठ कर चल देती थी, उन्होंने कब रूप, रंग और कब दिखावे पर ध्यान दिया, वह तो एक दूसरे के लिए हमेशा तैयार थे और ना ही मोहन को कभी दिखावे से प्रेम था, ना गुड्डी को ही था, हमेशा साथ चलने को तैयार रहती, बस उन्हें एक-दूसरे का साथ चाहिए था हर घड़ी एक दूसरे का.. जीवनसाथी कम दोस्त ज्यादा थे..

तीन बच्चों को कब कैसे बड़ा किया गुड्डी और मोहन ने किसी को पता ही नहीं चला था, अच्छी शिक्षा दीक्षा और अच्छे घरों में शादी, लड़के की शादी में कहीं कुछ कमी रह गई होगी, तभी लड़के की तलाक का तनाव था, दोनों इस तनाव के लेकर ही  घर से बाहर निकले थे---- और लोग कहते हैं यह एक्सीडेंट उसी तनाव के अंतर्गत हुआ का होगा। 


"गुड्डी और मोहन हमेशा प्रयासरत रहते थे बच्चे अपना जीवन संपूर्ण सुख से निभाए, परंतु यह शायद ईश्वर को मंज़ूर नहीं था। बहू का आखिरी फैसला, कई तरह के झूठे इल्ज़ाम के साथ.. अलग होने का गुड्डी और मोहन को बर्दाश्त नहीं था।"

"एक बड़े अस्पताल में महीनों के इलाज़ के बाद गुड्डी अब कुछ हरकत में आई थी, वह आँख जमा कर देखने लगी थी समझने लगी था, हाथ पैरों को हिलाने लगी थी अपने सब परिचितों को पहचानने लगी थी।"


पर अभी भी वह अपना स्वयं का नहाना, खाना मूल जरूरतों को पूरा नहीं कर पाती थी, मोहन ही हमेशा उनकी सेवा करते थे और बहुत खुश थे मोहन यह देख करके,.. गुड्डी अब आँख भर देखती थी भले ही नहीं बोलती और मोहन हर अनबोले शब्दों को पहचानते थे, क्या चाहिए ?क्या खाना है ? यह सब उनको पता था अनकहे शब्दों में भी बहुत कुछ बोल जाती थी,वह एक दूसरे से बातें करते थे गुड्डी लगातार मोहन के दर्द को महसूस करती थी, गुड्डी को अब जब समझ आने लगा था, वह अपनी सर्विस छोड़कर, पूरा समय गुड्डी की देखभाल में ही लगे रहते थे, तब गुड्डी अंदर से दुखी रहने लगी थी, मोहन की दर्द भरी आँखें, हाथ का फ्रैक्चर जो वह नज़र अंदाज़ कर हमेशा गुड्डी के उठाने बिठाने खिलाने अन्य कामों में लगे रहते थे, मोहन का चेहरा जो सूख गया था, चेहरे पर बहुत बड़ी दाढ़ी थी बेढब कपड़े बेतरतीब जीवन हो गया था।


गुड्डी अब समझने लगी थी, वे मोहन के लिए पूरी तरह से कभी ठीक नहीं हो पाएगी और मोहन को हमेशा इस दर्द में रखेगी, तब गुड्डी ने निर्णय लिया और एक रात जब सब सो चुके थे, सोते हुए मोहन और अपने बेटे को अपलक निहारती है मोहन और बेटा उससे कुछ दूर दूसरे पलंग पर सो रहे थे।

गुड्डी जो पलंग के बीचोबीच सो रही थी, बहुत हिम्मत से धीरे-धीरे पलंग से खसक कर, पलटी मार लेती है सर फर्श पर पटक जाता है, चोट लगती हैं ब्रेन हेमरेज हो गया और वे शांत हो जाती है गुड्डी का सच्चा प्रेम मोहन के प्रति, वह अपने प्रेमी को और कष्ट नहीं दे सकती थी,.....वह एक सच्ची पत्नी, प्रेमिका, सोलमेट थी!


सरिता बघेला"अनामिका"

12/11/2019


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