"बुढ़ापे की सनक"
"बुढ़ापे की सनक"
संस्मरण-
एक बुजुर्ग महिला थी,जब भी उसके घर के सामने से कोई निकलता है,उसे बुलाती है और रोक कर उससे घंटों बातें करती, उसका हाथ पकड़ लेती, कभी-कभी हर एक व्यक्ति उसके लिये नया चेहरा होता था।
वे अपना अकेलापन इस तरह से दूर करती,उसके बच्चे पढ़े-लिखे सर्विस वाले और उनके पोता -पोती भी सर्विस वाले थे, उन दोनों बुजुर्ग दंपत्ति के लिए किसी के पास समय नहीं था,अपना खाना बनाने से लेकर कि अपना जितना काम कर सकती,करके बाहर खड़ी हो जाती, हर आने जाने वाले लोग उससे घबराते कि कब किसको पकड़ लेगी और घंटों बातें करेंगी।
कभी-कभी लोगों को भूल जाना, उसकी बीमारी थी,पूर्णता परिचित होने के बाद भी, बार-बार लोगों को कहती की क्या करते हो? कहां रहते हो कितने बच्चे हैं?यही सवालों को बार-बार पूछती थी, कई लोग उसे सनकी बुढ़िया या "बुढ़ापे सनक गई है" कहा करते थे।