नारी शक्ति
नारी शक्ति
वह कुछ दिन पहले ही हमारे पड़ोस में शिफ्ट हई थी। हँसती मुस्कराती चंचल हिरणी सी यहाँ से वहाँ कुलांचे भरती दिखती सदा। कई बार जी में आता उसे रोक कर बात करूँ पर जाने कौन सी झिझक थी कि बात न कर पाती। सर्दी की गुनगुनी धूप में पार्क में बैठे दिख गई एक दिन। साल भर की बिटिया को गोद में लिए खिलखिला कर हँस रही थी।
निश्छल पाक साफ़ हँसी .... मुझे देखते ही उसका दूध सा उजला चेहरा और भी उजाला हो उठा। उसने खुद ही न्यौता दे डाला- "जिज्जी आइये ना ! इसकी शैतानियां देखिये तो !"
"अरे ! ये तो बहुत शैतानियाँ करने लगी !"
"हाँ जिज्जी, चलती तो नहीं अभी पर घुटनों के बल बाहर निकलने की कोशिश करती है।"
"तुम्हारे मायके वाले कहाँ के है ?" बातों ही बातों में मैंने पूछा।
"मैं हरियाणे की हूँ जिज्जी, नरेले से आगे सोनीपत में एक गांव पड़ता है वहीं की।"
"ज्यादा समय तो नहीं हुआ लगता तुम्हारी शादी को !"
"ये मेरी दूसरी शादी है जिज्जी। पहली शादी छोटी उम्र में ही हो गयी थी। एक नंबर का दारूबाज था, मारता पीटता सो अलग ! इतनी उधारी चढ़ा ली सिर पर। रोज तकाजा करने वाले आते, चुका न सका तो जहर खा कर मर गया। सच्ची बताऊँ मेरी तो जान छूटी।"
पता नहीं कितना कुछ भरा हुआ था उसके मन में कि एक ही साँस में कह गई जिंदगी की कहानी। उसकी बातें सुन मेरे रौंगटे खड़े हो गए। कितनी जुझारू है ये लड़की ! इत्ती सी उम्र में इतना कुछ झेल गयी।
"और अब !"
अकस्मात मेरे मुँह से निकला। "अब सब ठीक है जिज्जी ! ये वाला तो बहुत ध्यान रखता है। इसकी भी दूसरी शादी है, बहुत प्यार करता है। मार पिटाई तो बिलकुल नहीं करता।"
गर्व हो आया अपने औरत होने पर। औरतों के अंदर कितनी सहनशीलता होती है और होता है असली गहना हौसला और सकारात्मकता जिसके सामने बड़े-बड़े पानी भरते हैं। नारी शक्ति को यूँ ही नहीं पूजा जाता।
"यत्र नार्यस्ते पूज्यन्ते रम्यते तत्र देवता ।"
