" नाम की अलौकिक शक्ति "
" नाम की अलौकिक शक्ति "
एक बार की बात बैकुंठ लोक में भगवान विष्णु के पास देवर्षि नारद गए और भगवान से जिज्ञासा प्रकट की, कि "भगवान मैं नाम की महिमा जानना चाहता हूं ।"
भगवान ने कहा कि "मेरे नाम की महिमा जानना चाहते हो तो मृत्युलोक में जाओ और किसी कीड़े के सन्मुख जाकर मेरे दिव्य नाम का उच्चारण करो ।" नारद जी मृत्युलोक में गए और देखा कि एक कीड़ा अपने स्वाभाविक गति से रेग रहा है । नारद जी ने उसके सम्मुख भगवान के दिव्य नाम का उच्चारण किया कीड़ा मर गया ।
नारद जी भगवान के पास आए और शिकायत करने लगे कि "भगवान आपका दिव्य नाम तो सुनते ही कीड़ा मर गया ।" भगवान मुस्कुराए और कहा कि" मृत्युलोक में पुनः जाओ । वहां फूल पर तितली बैठी होगी उसे मेरा पावन नाम सुनाओ ।" नारद जी मृत्युलोक में गए और देखा कि एक फूल पर मस्ती से तितली बैठी है उसे भगवान का नाम सुनाया । तितली नाम सुनते ही मर गई ।
नारद जी फिर भगवान के पास गए और कहा कि भगवान आपके नाम को सुनते ही तितली तो मर गई । भगवान ने कहा "कोई बात नहीं इस बार किसी हिरण के बच्चे को मेरा नाम सुनाओ ।" नारद जी मृत्युलोक में गए, देखा कि एक नर और मादा हिरण के पास छोटा सा बच्चा खेल रहा है। नारदजी बच्चे के पास गए और उसे भगवान का नाम सुनाया । नाम सुनते ही हिरण शावक भी मर गया ।नारद जी यह सब देखकर दुखित हो गए और भारी मन से भगवान के पास जाकर कहा, भगवन यह सब मैं क्या देख रहा हूं आपका पवित्र नाम तो तारने वाला होना चाहिए । किंतु यहां तो जीव-जंतु मरते जा रहे हैं । भगवान ने आश्वासन दिया कि डरने की कोई बात नहीं एक बार मृत्युलोक में फिर से जाओ और किसी नवजात गाय के बछड़े को मेरा नाम सुनाओ । नारद जी न चाहते हुए भी भगवान के बार बार कहने पर मृत्युलोक में आए और देखा कि गाय के पास एक नवजात बछड़ा पूछ उठाकर पूरे उल्लास से दुग्धपान कर रहा है नारा द धीरे धीरे से बछडे के पास गए और भगवान नाम का उच्चारण किया। गाय के बछड़े की भी वही गति हुई और वह क्षण मे मर गया ।*
नारद जी दौड़े-दौड़े भगवान के पास आए और कहा भगवन बंद कीजिए अपना यह नाटक। मुझे नाम की महिमा नहीं जाननी है । आपका नाम तो जीवो को मार रहा है । मेरी और परीक्षा मत लो, भगवान ने कहा "शांत हो जाओ ऋषिवर, एक बार मेरे कहने से मृत्युलोक में फिर जाओ और इस बार जीव-जंतुओं पर नहीं मनुष्य पर मेरे नाम का प्रभाव देखो ।काशी नरेश के यहां एक पुत्र हुआ है उसके कान में मेरा अलौकिक नाम सुनाओ ।" नारद जी बोले "भगवन आप मुझे कहां भेज रहे हैं । मैं बदनाम हो जाऊंगा । मुझे लोग हत्यारा कहेंगे ।" भगवान के आदेश से उनके बार-बार विश्वास दिलाने पर नारद जी काशी नरेश के यहां गए ।
वहां शिशु जन्म के उपलक्ष में उत्सव मनाया जा रहा था । राजा को जब पता लगा कि बैकुंठ लोक से महर्षि आए हैं तो उन्होंने उनका खूब स्वागत सत्कार किया और कहा कि आप नवजात शिशु को आशीर्वाद दीजिए ।
नारद जी के पैर आगे नहीं बढ़ रहे थे ,शिशु के समीप गए और उनके कान में भगवान नाम का उच्चारण किया। नारद जी ने जैसे ही नाम सुनाया शिशु ने बोल कर नारद जी को प्रणाम किया।
नारद जी अत्यंत आश्चर्य चकित एवं गदगद होकर बोले कि बालक तुम कौन सी शक्ति से बोल रहे हो । उसने कहा -' हे महर्षि क्या आपने प्रभु के दिव्य नाम की महिमा एक् शक्ति नहीं पहचानी ? मैं तो वह कीड़ा, तितली, हिरण का बच्चा, गाय का बछड़ा हूँ, प्रभु नाम से मै सहज ही प्राण त्यागता रहा और आज मनुष्य जन्म में आया हूँ ।" नारद जी के सशंय दूर हो गए । उन्हें नाम की अलौकिक शक्ति का ज्ञान हो गया