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नाजायज़ प्रेम

नाजायज़ प्रेम

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रोहिणी के लिए फेसबुक जैसी चीज़ अकेले में समय काटने का ज़रिया मात्र थी। इसलिए अमूमन सुबह ग्यारह से दो का वक्त यहीं कटता था। उसके लिए सुदूर बैठे अपनों से जुड़ने का एक सहज माध्यम भी था, इसलिए घर परिवार से जुड़े लोग भर थे फ्रेंडलिस्ट में। हमेशा की तरह उस दिन भी पति और बच्चों को विदा कर वो फेसबुक मे लीन हो गई। तभी एक अनजाना सा फ्रेंड रिक्वेस्ट आया। अक्सर ऐसे में वो रिक्वेस्ट डिलीट कर दिया करती थी, लेकिन आज ना जाने क्यूँ रिसीव कर सामने वाले का प्रोफाइल खँगालने लगी।

रोहिणी से उम्र में लगभग 7 - 8 साल छोटा था वो नाम था नीरव। मैसेज के माध्यम से सामान्य हालचाल से शुरू हुई बात जल्दी ही रूटिन का एक हिस्सा बन गई। रोहिणी एक भीतर एक अनजाना सा एहसास पनप चुका था जिससे वो खुद भी अनजान थी। धीरे धीरे बातों का ये सिलसिला दिन से रात में तबदील हो गया। चूँकि रोहिणी के पति अरूण अक्सर ऑफिस के कामों में उलझे रहते तो रोहिणी के अकेलापन ने रात्रि में भी अपने लिए जगह बना ली थी। जिसमें अब वो अनजान शख़्स दाखिल हो चुका था। घंटों बातों का दौर चलता। दोनों अब एक दूसरे से लगभग सारी बातें शेयर करते। कभी गर बात न हो पाए तो रोहिणी बेचैन हो जाती और पूरे हक़ से उस से लड़ती।

महीनों चले इस दौर में एक रात दोनों ने एक दूसरे से वो कह दिया जो सभ्य समाज में गल़त कहा जा सकता है। यही कि "मैं तुम्हें चाहने लगी हूँ "। जबाव आने मे भी देरी ना हुई, उनका ये प्रेम दैहिक नहीं था। दोनों एक दूसरे से भावनात्मक रूप से जुड़े थे।

एक दिन अरूण को ये बात पता चली। बिना सोचे, समझे बहुत गुस्सा हुए। बदचलन, कुलटा ,नीच आदि कई शब्दों से रोहिणी को संबोधित कर अलग होने का फरमान सुना डाला। रोहिणी डरी सहमी किंतु कुंठित नहीं थी क्योंकि, वह अपना सच जानती थीं। स्वयं के लिए जीने का हक उसका मौलिक था। उसे जिस स्नेह और अपनेपन की उम्मीद अरूण से थी वो उसे नीरव से मिला। खैर सभ्य समाज के लिए ये ग़लत और अनैतिक था किंतु, प्रेम की अलग परिभाषा स्थापित करते रोहिणी और नीरव अक्सर एक दूसरे से कह जाते, कैसा प्रेम है अपना जायज भावों वाला नाजायज़ प्रेम।


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