प्रवेश परीक्षा
प्रवेश परीक्षा
श्यामली-सी किन्तु तीखे नैन नक्श वाली श्री पढ़ाई में खूब अव्वल थी। बड़े विश्वविद्यालय से स्नातक करने की चाह लिए दिन रात प्रवेश परीक्षा की तैयारियों में जुटी रहती।
पिता चाहते थे कि बिटिया खूब पढ़े, किन्तु दूसरे शहर भेजने को हृदय तैयार ना था। बेटी की लगन देखकर सीधे शब्दों में मना करना भी संभव नहीं था। तो इसी अंर्तद्वंद में श्री ने प्रवेश परीक्षा का फार्म डाला। खूब मेहनत की। महीना बिता और परीक्षा की तिथि समीप आई।
विश्वविद्यालय से प्रवेश पत्र अब तक नहीं आया, इसलिए श्री परेशान हो गई। बार-बार पिता से आग्रह करने लगी कि प्रवेश पत्र के विषय में वो पता करें और सुनिश्चित करें कि श्री परीक्षा में उपस्थित हो सके। पिता हर बार कुछ न कुछ कह टाल जाते।
कुछ इस तरह परीक्षा की तय तारीख निकल गई। श्री का सपना टूटा लेकिन हिम्मत नहीं। उसने अपने ही शहर के विश्वविद्यालय से स्नातक करने का विचार कर दाखिला भी ले लिया। सबकुछ सामान्य-सा चल रहा। घर में दीपावली की तैयारियाँ चल रही थी। साफ सफाई, दीये बाती का जुगाड़, पुराने रद्दी अखबारों का बेचना आदि। माँ के कहने पर श्री पुराने रद्दी के ढेर को चेक करने लगी, कि कहीं कुछ काम का तो नहीं फेंका जा रहा। सहसा श्री की नजर एक लिफाफे पर पड़ी । खोलकर देखा तो प्रवेश परीक्षा का फार्म था जो पिता चाहकर भी पोस्ट ना कर पाया। आँखों में आँसुओं का सैलाब आ गया। घर के लोग पूछते हुए उसकी ओर भागे "श्री क्या हुआ ?"
बिना कुछ बोले उसने लिफाफा आगे बढ़ा दिया और कमरे में चली गई। घरवाले सही और गलत का तराजू लिए बस खड़े रह गए।