टूटता तारा
टूटता तारा
एक और शाम बीत रही थी और वो अब भी अपने अतीत की धुँधली हो रही तस्वीरों को सहेजने में लगी थी। हो भी क्यूँ ना, और बचा ही क्या था अब उसके पास। दशक पहले की बात है बेहद खूबसूरत और कॉलेज में अव्वल आने वाली तारा आकाश की ऊँचाइयों तक उड़ना चाहती थी। रोकने वाला भी कौन था उसे। चंचल, हंसमुख जैसे जिंदगी की जीती जागती परिभाषा हो। मध्यवर्गीय परिवार में ऐसी लड़कियाँ कम ही देखने को मिलती थीं। तारा अलग थी, वो चली आ रही भ्रमित वर्जनाओं को खण्डित कर अपने लिए एक प्रतिमान स्थापित करना चाहती थी। और वो इसमें सफल भी रही। घर में लड़ झगड़ कर अपनी पढ़ाई के लिए दूसरे शहर गयी, समय के साथ स्वयं को साबित भी किया।
तारा के विषय में सबसे आश्चर्यजनक बात यह थी कि जब शादी तय हुई तो मॉर्डन तारा बिल्कुल पारम्परिक सी हो गयी थी। शादी कहाँ, किससे होनेवाली है कोई खबर नहीं। ऐसा लग रहा था मानो सत्तर के दशक की कोई बात हो। साथ पढ़ने वाले बड़े हैरान भी हुए थे, टोका भी था। लेकिन उसके शब्द ने सबको निशब्द कर दिया था। जब हंसते हुए जवाब आया, माँ बाप से अच्छा आपके विषय में और कौन सोच सकता है, वे आश्वस्त हैं तो मैं भी। जीवन में सबकुछ पा लेने की चाह लिए जब शादी कर दूसरे घर आयी तो खुद को सहज रखने की बारम्बार कोशिश की।
खैर उसके विश्वास की डोर शीघ्र ही चटकी और ना जाने कितनी बार टूटी। हर गलत बात पर दूसरों के लिए लड़ने वाली तारा अचानक ही अपने लिए लड़ना भूल गयी। या यूँ कहें कि अंदर से इतना टूट गयी कि लड़ने की हिम्मत ही नहीं दिखाई। दूसरे परिवार में अपने अस्तित्व की लड़ाई में जीवन साथी का साथ मिला था उसे। शायद इसलिए भी बाकी बातों को नज़रअंदाज़ किए जिए जा रही थी अल्हड़ और मदमस्त सी।
लेकिन सहसा उसका एकमात्र ये साथ भी छूटता गया।
गलतफहमियाँ और शक का वार वो सह नहीं पायी और अबकी ऐसी बिखरी कि जिसे समेटना शायद उसके लिए भी संभव ना था। तारा टूट चुकी थी। इसलिए नहीं कि उसने अपना सुनहरा भविष्य छोड़ घर गृहस्थी चुना। बल्कि इसलिए कि ये सब त्याग जिनके लिए किया वे सब उसे अपनी घृणित सोच की कटार उसपर चला रहे थे। वो शब्द बाण से घायल अपने घाव ना दिखा पा रही थी और ना छुपा पा रही थी। स्वयं को तस्वीरों में ही देख सतुंष्ट हो लेती है अब तो। कुछ बचे काम निपटाने का सोच जैसे ही तस्वीरों का पुलिंदा समेटने लगी तो बिटिया ने पूछा आप इतना घूम लिए, आपने सारी दुनिया देख ली है ? कब?
आप तो कहीं नहीं जाती ?
तारा मुस्कुराई और धीमे से बोली, ये मैं नहीं टॉपर तारा है, ये सब कर सकती है। तुम टॉपर तारा की तरह बनना निर्भीक लेकिन समझदार। क्योंकि कई बार किताबी ज्ञान काफी नहीं होता। लोगों को समझने की कला भी आवश्यक है जीने के लिए। तुम आलराउंडर बनना और अनन्त ऊँचाइयों को छूना। तारा के आँखों में आँसू थे और बिटिया अब भी सोच में थी।