मुस्कान
मुस्कान
दुनिया में उसे आये सिर्फ चालीस दिन ही तो हुए थे, अभी तो उसे ठीक से नज़र भी नहीं आई होगी। अपने नन्हे नन्हे हाथ पांव हिलाती हुई वो मासूम बच्ची अपनी माँ की बगल में लेटी थी। उसकी माँ सुमन सफेद छत को निहार रही थी। आँखों से आँसू सूख चुके थे। बस एक शून्य नज़र के सामने था। ज़िन्दगी में जैसे जीने के लिए कुछ भी नहीं बचा था। बस घनघोर अंधेरा और कुछ नहीं। एक ही सवाल उसके जेहन में घूम रहा था,
अब आगे क्या??
तीन साल पहले संजय ने जब सुमन से शादी के लिए पूछा, उस दिन कितनी खुश थी वो। जिसे चाहा उसी ने जब जीवनसाथी बनने का प्रस्ताव रखा तो सुमन ना नहीं कर पायी। दोनों एक ही कॉलेज में प्रोफेसर के रुप में कार्यरत थे। साथ साथ काम पे निकल जाना और फिर साथ ही घर आना। साथ मिल के घर के काम निपटाना। छुट्टी वाले दिन पूरा दिन बाहर सैर सपाटे पे जाना। ज़िन्दगी बहुत खुशनुमा लग रही थी। वक़्त खुशी से बीतने लगा, पता चला नन्हा मेहमान घर आने वाला है। अब तो संजय अपनी सुमन का और भी ध्यान रखने लगा। सुमन इतने प्यार करने वाले पति को पाकर बेहद खुश थी।
फिर वो दिन भी आया जब एक नन्ही सी परी ने जन्म लिया। बेटी के जन्म से संजय और सुमन दोनों बेहद खुश थे। देखते देखते एक महीना गुज़र गया।
"अब तो इसका नाम बता दो संजय, मैं और इंतज़ार नहीं कर सकती तुम्हारे सरप्राइज का", सुमन ने एक दिन संजय से कहा।
"बस अब थोड़ी देर ही, मैं एक घंटे में बाहर जा के आता हूँ, मेरे आते ही तुम्हें सब पता चल जायेगा", ये कहते हुए संजय घर से निकला और फिर कभी लौट के नहीं आया। आई तो उसके एक्सीडेंट की खबर।
सुमन तो जैसे बुत बन गयी ये सुन के, आँखों में एक भी आँसू नहीं बस नज़र घर के दरवाजे की ओर। जैसे कह रही हो अभी आयेगा मेरा संजय।
संजय की मौत को अब दो सप्ताह पूरे हो चुके थे लेकिन सुमन ने एक बार भी अपनी बच्ची को हाथ में ना लिया ना ही दूध पिलाया। घरवाले ही बच्ची को संभाल रहे थे।
आज सुमन की माँ ने बच्ची को सुमन के पास सुला दिया था, शायद उसे देख उसकी ममता जाग जाए। अचानक नन्ही कलाई ने सुमन का पल्लू खिंचा तो शून्य में निहारतीं सुमन का ध्यान अपनी बच्ची पे गया। उसे याद आया संजय के जाने के बाद माँ ने उसे एक छोटा सा बैग दिया था और कहा था यही लेने के लिए संजय उस दिन घर से निकला था।
सुमन उठी, अलमारी से वो बैग निकाला, उसमें छोटी सी डिबिया थी। डिबिया में सोने की चेन थी, साथ ही एक खूबसूरत से पेंडेंट लगा था। सुमन ने देखा वो लिखा था "मुस्कान"। आँखों से अश्रुधारा फिर बहने लगी। अपनी बच्ची के पास आके सुमन ने धीरे से सोने की चेन उसके गले में पहनाई और कहा ,"मुस्कान" ।
जैसे ही सुमन ने अपनी बेटी को मुस्कान कह के पुकारा, वो मासूम जैसे सब जान रही हो धीरे से मुस्कुराई, सुमन ने उसे गोद में उठा लिया और अपने सीने से लगा लिया।
उस दिन सुमन ने अपनी बेटी की प्यारी सी मुस्कान देखी और अपने आप से एक वादा किया की अपने संजय की इस प्यारी सी निशानी को ही अब अपना सब कुछ मानकर वो जीएगी और हिम्मत के साथ अपनी बेटी को भी जीना सिखाएगी। जल्दी ही सुमन ने अपना कॉलेज का काम भी शुरू कर दिया । संजय की कमी तो वो पूरी नहीं कर सकती थी पर उसने अपने आप से जो वादा किया था उसको पूरा करने का हौसला अब उसमें आ चुका था।
