मुखौटा भाग 2
मुखौटा भाग 2
समिधा को अचानक वहां से जाता हुआ देखकर माया को बहुत आश्चर्य हुआ क्योंकि वह समिधा को बहुत अच्छी तरह से जानती थी कि, समिधा के लिए बच्चों की खुशी से ज्यादा कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं है।माया को समिधा का वहां से जाना कुछ अजीब लगा पर वह कुछ समझ नहीं सकी फिर उसने लम्बी सांस ली वह भी वहां से चलीं गईं समिधा सीधे अपने कमरे में चली गई आज रविवार था। इसलिए उसे आफिस में बैठना जरूरी नहीं था समिधा ने कमरे में पहुंचकर दरवाजा बंद कर लिया और बिस्तर पर बैठकर लम्बी लम्बी सांस लेने लगी जैसे वह दौड़ कर आई हो शेखर!! शेखर!!यह नाम समिधा के दिमाग में गूंजने लगा हां यही व्यक्ति तो था जो कभी उससे प्यार का दावा करता था जिसको आज उसने तस्वीर में देखा है।समिधा आज से 10 साल पीछे अतीत में चली गई,,,,,
समिधा जैसे ही कालेज पहुंची उसकी सहेली मधु उसके पास आकर बोली"आज देर क्यों हो गई आने में?" "क्या करूं आटो रिक्शा नहीं मिल रहा था।" समिधा ने लम्बी सांस लेकर कहा"मुझे तो आने में देर हुई पर तुमने क्लास क्यों नहीं अटैंडेंट की"?? समिधा ने मुस्कुराते हुए पूछा"क्या करूं समिधा मैडम आपके बिना कुछ अच्छा ही नहीं लगता इसलिए मैं तुम्हारा इंतज़ार कर रही थी"मधु ने छेड़ते हुए कहाफिर दोनों खिलखिला कर हंस पड़ी, तभी मधु ने कोहनी मारते हुए समिधा से कहा" तेरा आशिक इधर ही आ रहा है"समिधा ने देखा शेखर उसके पास आ रहा था शेखर को देखकर मधु ने कहा "मुझे लाइब्रेरी में कुछ काम है मैं चलती हूं"मधु ने हंसते हुए देखा और वहां से चलीं गईं।"समिधा मैं तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहा था मुझे तुमसे जरूरी बात करनी है"शेखर ने गम्भीर मुद्रा में कहासमिधा ने देखा कि शेखर के चेहरे पर आज मुस्कान की जगह उदासी छाई हुई है।"क्या बात है शेखर तुम इतने परेशान क्यों लग रहे हो"?? समिधा ने शेखर को देखकर पूछा"चलो कहीं बाहर चलते हैं वही बैठकर तुम्हें बताऊंगा"शेखर ने गम्भीर लहज़े में जवाब दिया।थोड़ी देर बाद वह दोनों शिव मन्दिर के कैंपस में बैठे हुए थे यह शिव मन्दिर शहर से थोड़ी दूरी पर स्थित था यहां ज्यादा लोगों की भीड़ भाड़ नहीं होती थी। इसलिए समिधा और शेखर अकसर यहां आ जाते थे।"अब बताओ शेखर क्या बात है"?? समिधा ने शेखर का हाथ अपने हाथ में लेकर प्यार से पूछा।शेखर सिर झुकाकर चुपचाप बैठा रहा उसने कोई जवाब नहीं दिया।"शेखर तुम कुछ बोलते क्यों नहीं मुझे घबराहट हो रही है"?? समिधा ने परेशान होकर पूछा।"समिधा पापा ने मेरी शादी पक्की कर दी है"शेखर ने अपनी नजरें झुका कर जवाब दियाशेखर की बात सुनकर समिधा ने आश्चर्य से पूछा"यह तुम क्या कह रहे हो??"तुमने अपने पापा से बताया नहीं कि तुम मुझसे प्यार करते हो"समिधा ने दूसरा सवाल किया।"बताया था पर वह तैयार नहीं हैं उन्होंने अपने दोस्त की बेटी से मेरा विवाह करने का फ़ैसला किया है जब मैंने कहा कि मैं तुम से प्यार करता हूं तो उन्होंने मुझे धमकी देते हुए कहा कि यदि मैंने उनकी बात नहीं मानी तो वह आत्महत्या कर लेंगे"शेखर ने गम्भीर लहज़े में जवाब दिया।शेखर की बात सुनकर समिधा की आंखों से आंसूओं की धारा बह निकली शेखर ने कहा"समिधा मैं तुम से प्यार करता हूं मैं शादी किसी से भी करूं पर प्यार हमेशा तुमसे ही करता रहूंगा। समिधा अगर तुम तैयार हो तो मैं आज अभी यहीं मंदिर में तुम से शादी कर लूंगा""लेकिन क्या तुम्हारे पापा मुझे अपनी बहू स्वीकार करेंगे"समिधा ने उदास लहज़े में पूछा!!"नहीं पापा तुम्हें कभी अपनी बहू नहीं स्वीकार करेंगे और मैं पापा की जिंदगी को दांव पर नहीं लगा सकता समिधा"शेखर ने गम्भीरता से जवाब दिया!!"तुम कहना क्या चाहते हो साफ़ साफ़ कहो"?? समिधा ने धड़कते दिल से पूछा!!"समिधा मुझे पापा की बात माननी पड़ेगी क्योंकि मैं अपने पापा को अच्छी तरह जानता हूं वह जो कहते हैं वह करते भी हैं इसलिए मैं अपने पापा को खो नहीं सकता।हां मैं इतना कर सकता हूं कि, मैं बाद में तुम से भी शादी कर लूंगा"शेखर ने अपनी बात स्पष्ट करते हुए जवाब दिया!!समिधा ने आश्चर्य और गुस्से में शेखर को देखते हुए कहा"शेखर तुम मुझे अपनी दूसरी पत्नी बनाना चाहते हो जो कानून और समाज दोनों की नज़रों में नाज़ायज़ है तुम्हारी नज़रों में मेरी यह हैसियत है"??"कैसी बात कर रही हो मैं तुम्हें प्यार करता हूं इसलिए तुम से शादी करने की बात कर रहा हूं और तुम्हें क्या चाहिए तुम्हें पत्नी का अधिकार दूंगा अलग घर लेकर दूंगा जहां तुम रानी बनकर रहना मेरा विश्वास करो मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं पर पापा की धमकी के कारण मजबूर हूं। मैं अपने पापा की मौत का इल्ज़ाम अपने सिर नहीं लेना चाहता। इसलिए तुम्हें दूसरी पत्नी बनाना चाहता हूं समिधा मेरा विश्वास करो"शेखर ने समिधा का हाथ पकड़कर उसे मनाते हुए कहा!!"नहीं शेखर मैं तुमसे छुपकर शादी नहीं कर सकती क्योंकि मेरी मां इस तरह शादी करने की इजाजत नहीं देंगी जिस तरह तुम्हें अपने पापा प्यारे हैं उसी तरह मेरी मां तुझे प्यारी हैं।तुम खुश रहो यही मेरी दुआ है आज के बाद मुझसे मिलने की कोशिश ना करना"समिधा ने कहा और वहां से चलीं गईं।मधु से उसे पता चला कि शेखर ने शादी कर ली मधु ने ही बताया कि उसने उस लड़की से शादी इसलिए की थी कि वह बहुत सुंदर और अपने माता-पिता की इकलौती संतान थी और उसके पिता शहर के बहुत बड़े उद्योगपति थे।मधु ने समिधा से कहा था कि, शेखर तुम्हें प्यार नहीं करता। वह तुम्हारे शरीर की चाहत रखता था और तुमने उसे प्यार समझने की भूल की पर समिधा ने कभी भी मधु की बातों पर विश्वास नहीं किया।उस शहर में समिधा का मन नहीं लगा उसे शेखर की याद आती रहती थी। इसलिए उसने उत्तराखंड के एक शहर में वार्डन की नौकरी कर ली तब से वह यही बच्चों के बीच रहकर अपनी पुरानी यादों को भुलाने की कोशिश कर रही थी। उसने आज तक शादी नहीं की थी क्योंकि वह अभी तक शेखर को भुला नहीं सकीं थी।तभी दरवाजे पर दस्तक हुई समिधा अतीत से वर्तमान में लौट आई। समिधा ने दरवाजा खोला तो सामने माया खड़ी हुई थी।"दीदी आपको प्रिंसिपल मैडम बुला रही हैं"माया ने कहा"चलो मैं आ रहीं हूं"समिधा ने जवाब दिया!!थोड़ी देर बाद समिधा प्रिंसिपल आफिस में बैठी हुई थी,"समिधा परसों जो लड़की खुशी इस हास्टल में रहने आई है उसके पापा कल आ रहें हैं वह बहुत बड़े उद्योगपति हैं हमारे स्कूल को बहुत बड़ा डोनेशन देने वाले हैं उन्होंने कहा था कि उनकी लड़की का विशेष ध्यान रखा जाए। इसलिए मैंने तुम्हें यहां बुलाया है तुम उस बच्ची का अच्छे से ध्यान रखना उन्हें कोई शिकायत का मौक़ा नहीं मिलना चाहिए"प्रिंसिपल मैडम ने समिधा को समझाते हुए कहा!!"ठीक है मैडम मैं अपनी तरफ से कोई शिकायत का मौक़ा नहीं दूंगी"समिधा ने धीरे से कहा और वहां से चलीं गईं उसे प्रिंसिपल मैडम की बात अच्छी नहीं लगी पर उसे नौकरी करनी थी इसलिए चुप रहने में ही भलाई थी।दूसरे दिन समिधा आफिस में बैठी हुई थी तभी माया ने आकर बताया कि" खुशी के पापा आपसे मिलना चाहतें हैं"।"ठीक है उनको अंदर भेज दो" समिधा ने कहाउसके दिल की धड़कन तेज हो गई थी वह सोच रही थी कि वह शेखर का सामना कैसे करेगी उसका दिल जोर जोर से धड़क रहा था जिसे वह प्यार करती थी जिसने उसे धोखा दिया वह आज फिर उसके सामने आ रहा है।तभी दरवाजे पर दस्तक हुई,"अंदर आ जाइए"समिधा ने कहाशेखर जैसे ही अंदर आया अपने सामने समिधा को देखकर चौंक गया"समिधा तुम यहां की वार्डन हो"?? उसने आश्चर्य से पूछा!"हां!!क्यों मैं यहां नहीं हो सकती क्या मिस्टर शेखर"?? समिधा ने उल्टा सवाल कर दिया!!समिधा की बात सुनकर शेखर सकपका गया"नहीं, नहीं मेरे कहने का तात्पर्य यह नहीं था तुम यहां की वार्डन हो मैं यह नहीं जानता था"शेखर ने अपनापन दिखाते हुए कहा!,"आप मुझसे क्यों मिलना चाहते थे मिस्टर शेखर" समिधा ने रूखाई से पूछा"मैं चाहता हूं कि मेरी बेटी का विशेष ध्यान रखा जाए उसके लिए मैं अतिरिक्त फीस देने को तैयार हूं "शेखर ने गर्व से जवाब दिया!!"तब तो आपको उसे अपने साथ घर में रखना चाहिए"समिधा ने व्यंग से मुस्कुराते कहा!!शेखर समिधा की बात सुनकर सकपका गया फिर स्वयं को संभालते हुए बोला "मैं शादी करने जा रहा हूं खुशी ने अभी अभी अपनी मां को खोया है वह इंदू को अपनी मां का स्थान नहीं दे पाएगी। इसलिए मैं यह चाहता हूं कि वह इंदू से दूर रहे जब वह समझदार हो जाएगी तो खुद ही समझ जाएंगी की मैंने उसे यहां हास्टल में क्यों रखा था"शेखर ने बेशर्म बनते हुए जवाब दिया!!"मिस्टर शेखर आप कैसे बाप और पति हैं जो अपने बेटी की भावनाओं को आहत कर रहे हैं और अपनी पत्नी के प्यार का अपमान भी अभी दो महीने पहले खुशी ने अपनी मां को और आपने अपनी पत्नी को खोया है। उसे कुछ समय तो देते की वह अपनी मां को भूल सकें उसके बाद शादी करते"समिधा ने नफ़रत से कहा।"मैडम समिधा जी खुशी ने जरूर अभी दो महीने पहले अपनी मां को खोया है पर मैंने अपनी पत्नी को पांच साल पहले ही खो दिया था क्योंकि वह पत्नी के फर्ज़ निभाने लायक़ नहीं थी हर समय बीमार रहती थी मुझे भी पत्नी का सुख चाहिए इसलिए मैं और ज्यादा इंतज़ार नहीं कर सकता"शेखर ने बेशर्मी से मुस्कुराते हुए जवाब दिया!!शेखर की बात सुनकर समिधा के दिमाग ने काम करना बंद कर दिया।वह सोचने पर मज़बूर हो गई उसके सामने जो शख्स बैठा है क्या वह वही व्यक्ति है जो उससे प्यार करने का दम भरता था।उसके सामने बैठा व्यक्ति तो वासना का पुजारी है यह तो किसी से प्यार कर ही नहीं सकता यह तो औरतों के शरीर से प्यार करता है चलो अच्छा हुआ कि आज़ इस व्यक्ति के चेहरे का मुखौटा उतर गया नहीं तो वह जीवन भर इस मुखौटे के पीछे का घिनौना चेहरा पहचान ना पाती।समिधा शेखर की बात सुनकर उसे घृणा से देखते हुए बोली" मिस्टर शेखर आप यहां से जा सकते हैं और आज़ के बाद आपको जो भी बात करनी हो वह प्रिंसिपल मैडम से कीजिएगा मुझसे नहीं आज़ मैं बहुत खुश हूं क्योंकि मेरा निर्णय बहुत सही था मैंने तुम्हें पहचानने में कोई भूल नहीं की थी"समिधा की नफ़रत भरी निगाहों को देखकर शेखर वहां बैठा नहीं रह सका वह आफिस से बाहर निकल गया।