मत खेलो खून की होली
मत खेलो खून की होली
नफ़रत की ज्वाला में
क्यों जलता मानव मन
इंसान हो इंसान ही बने रहो
मत खेलो ख़ून की होली।
खुदा ने रचा हरा भरा चमन
कोयलिया कूके डाली-डाली,
छोड़ो मनोमालिन्य
मत खेलो खून की होली।
इंसा है तो है गुलशन
गुलशन नहीं तो तुम नहीं
काश ! समझ पाते यह बात
मत खेलो ख़ून की होली।
ज़माने की रेत पर
अपने निशाँ तो छोड़ो
आत्मघाती बम बन,
गुमनामी के अंधेरों न खोओ,
मत खेलो ख़ून की होली।
तुम जागोगे तो मानवता जी उठेगी
खेलो ख़ूब खेलो रंगों
प्यार की होली
पर मत खेलो खून की होली।