"मसक गया"
"मसक गया"
"बहुत देर हो गई दी आज ... रात के दस बज गए... ये लोग दिन में कार्यक्रम क्यों नहीं रखते हैं? रात में ही रखना जरूरी हो तो परिवार संग आने की अनुमति देनी चाहिए... है न दी...
वैसे विमर्श में सभी की बातें बहुत जोश दिलाने वाली थी"
"बातों में मशगूल हो हम गलत रास्ते पर आ गए बहना... ज्यादा देर होने से घबराहट और अंधेरा होने से शायद हम भटक गये... आधा घन्टा बर्बाद हो गया और देरी भी हो गई..."
दो क्लब के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित कार्यक्रम जिसमें विषय था कि "आज की सामाजिक दृष्टिकोण के कारण एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण वक्तव्य सामने आया है कि क्या पुरुष की दृष्टि में नारी का महत्व उसके शारीरिक आकर्षण और पहरावे के कारण है जिसकी कल्पना और कामना वह अपने लिये करता है ? क्या आधुनिक नारी केवल शारीरिकक सुन्दरता का प्रतीक है" से शामिल हो जोश से भरी ऑटो की तलाश कर रही बहनें देर होने से चिंताग्रस्त थी... तभी एक का फोन घनघनाया
हैलो!"
"इतनी रात तक कहाँ बौउआ रही हो?"
"बैठ गए हैं ऑटो में बस पहुंचने वाले ही हैं"
"बहुत पंख निकल गया है ... बहुत हो गई मटरगश्ती... कल से बाहर निकलना एकदम बन्द तुम्हारा..."
"पूछ! नहीं लौटू जेल, चली जाऊं दीदी के घर..."