मर्मज्ञ
मर्मज्ञ
पुराने लखनऊ के एक मोहल्ले में, शाम के समय पंडित दिन दयाल अपने चबूतरे पर बिछी चारपाई पर बैठे नवाब साहब का इंतजार कर रहे थे। नवाब साहब के आने का समय हो गया था। नवाब उस मोहल्ले में रोज ही आते थे। उन्हें नवाब का अपने मोहल्ले में रोज आना नहीं सुहाता था। उनका आना तब से शुरू हुआ था जब से कोई मुमताज बेगम उनके मकान के पीछे खाली पड़े मकान में किराये पर रहने आ गयी थीं।
नवाब ने कहा, "नमस्ते पंडितजी और आगे बढ़ गए।"
पंडितजी ने उन्हें रोकते हुए कहा ,"अरे दो मिनट हमरे पास भी बैठिये। नवाब तुरंत लौट कर चारपाई के करीब रखे मूढ़े पर बैठ गये।
नवाब पंडित जी से उम्र में तीन चार साल छोटे होंगे। पंडितजी को बड़ा मानते थे। पंडितजी एक सेवा निवृत अध्यापक थे। वे गायन संगीत के विद्वान शिक्षक थे। संगीत समारोहों में भी गाते थे।
पंडितजी ने हँसते हुए कहा, "क्षमा करना। मैं भूल गया था कि आपका कोई इंतज़ार कर रहा होगा। उनके के स्वर में हल्का सा कटाक्ष था। फिर कभी बात कर लेंगे आप का तो रोज का आना जाना है। वैसे उन्होंने सोच रखा था नवाब से कहेंगे मुमताज बेगम को अपने नज़दीक कहीं ठिकाना क्यों नहीं दिला देते? हलांकि उन्हें इस बात से तसल्ली थी मुमताज से मिलने और किसी को आते जाते नहीं देखा था। साथ ही इसी बात से उन्हें नवाब से ऐसा कहने का विचार आया था।
नवाब ने उठते हुए कहा, " कोई ख़ास बात हो तो मैं रुक सकता हूँ। "
पंडितजी ने कहा, "नहीं। "
नवाब ने नमस्ते की और मुमताज के घर की तरफ चल दिए।
मुमताज पंडितजी के मकान के पीछे वाले मकान में रहती थी। नवाब साहब के जाने के 10 मिनट बाद उस मकान से हारमोनियम और तबले की थापें सुनाई देने लगीं। उसके बाद मुमताज के मधुर कंठ से राग रागनियां हवा के साथ चारों ओर बहने लगीं। पंडितजी के कानों में भी वे राग रागनियाँ पड़ने लगीं। उनके मुंह से निकला, " गाती बहुत अच्छा है। शास्त्रीय संगीत का भी अच्छा ज्ञान है?"
तभी एक जगह मुमताज का स्वर हल्का सा बदला। नवाब साहब को पता भी न चला होगा कहीं कुछ गलती हुई है किन्तु पंडितजी संगीत के मर्मज्ञ थे। उनको वह गलती अखर गयी। वह सोचने लगे, इतना शुद्ध राग गाते गाते अचानक स्वर कैसे हिल गया ?कितना अच्छा लग रहा था।
मुमताज को भी शायद अपनी गलती का अहसास हो गया था। उसने दुबारा प्रारम्भ से गायन प्रारम्भ करके उसे उसके सही अंजाम तक पहुँचाया।
पंडितजी को आत्मिक तसल्ली हुई।
वैसे मुमताज फ़िल्मी गाने, ग़ज़लें गाती थी। उस दिन अनायास ही राग रागनियां छेड़ी थी।
लौटते हुए नवाब पुनः पंडितजी की सेवा में उपस्थित हुए और पूछा, '' पंडितजी, फरमाइये आप कुछ मुझसे कहना चाहते थे।"
पंडितजी ने कहा, " मुमताज से कहना थोड़ा और रियाज किया करे।"
नवाब ने कहा, "जी अच्छा " और अपनी हवेली की ओर संतुष्ट भाव से चल दिये।