मनोकामना ( चिट्ठी से पहले )
मनोकामना ( चिट्ठी से पहले )
रात के 9 बजे हैं...और मेरी ड्यूटी ख़तम हो चुकी है
बहुत तेज़ हवा हमेशा की तरह....अपने बंकर में चला...संदूक के पास बैठ अपना कम्बल निकाला... तभी वो पुरानी डायरी के पास वही पीला बक्सा नज़र पड़ गया... यादें ताज़ा हो गई...बैठ गया संदूक के पास कितनी सारी तस्वीरें कितनी गाँव की यादें भर रखी थी उसमे..खोलते ही आँख में पानी आ गया...
फिर झट से चिट्ठी लिखने बैठ गया...
प्रिय पापा...
कैसे हो?..
तस्वीर में मेरे सामने हो दिल के करीब हो फिर भी कितने दूर हो...
आपकी बहुत याद आती है
(माँ की फोटो...देख कर ) प्यारी माँ...तेरी प्यारी रसोई ...तेरी डांट फटकार आज बहुत याद आती है, पता हैं तू मुझे कितना डांटती थी...अच्छे से काम.. ना करूँ तो...
पापा बोलते हैं तू मुझे याद करके बहुत रोती है..ऐसा मत किया कर तू... मुझे अच्छा नहीं लगता...
(रोहित की फोटो.. देख कर..).. मेरे छोटू सा पागल भैया..तू तो मेरी जान हैं...इस बार खूब मेहनत करना पढ़ाई में, तो फिर आर्मी की ट्रेनिंग में शामिल हो सकोगे.. मेरी तरह बनाना है ना..? हम्म?
जब तू यहाँ आएगा ना... तब तक में बड़ा अफ़सर बन चुका होऊंगा...और तुझे सब सिखाऊंगा..कभी कभी डाटूंगा भी..समझे छोटू... मगर बुरा मत मानना ..वैसे भी अपनी ज़िंदगी..अपनी कहाँ है?? सिर्फ वतन के लिए...ये सरहदों के लिए...
(बक्से में सब तस्वीर रख दी वापस...थोड़ी सी मिट्टी दिखाई दी..बक्से में...बक्सा बंद किया।
और वापस लिखने बैठ गया.. )
"पापा... यहाँ बहुत ठंडी हैं..यहाँ सरसों के खेत नहीं लहलहाते...नाही वो गाँव की सौंधी खुशबू...
बस सिर्फ चारों तरफ बर्फ से ढकी पर्वत की चोटियाँ ही दिखती हैं और...दुश्मन...भी...हाहा...
चलो.. रात बहुत हो गई है अब आराम करता हूँ इस बार पक्का छुट्टियाँ मिलने पर गाँव आऊंगा..बहुत मन कर रहा हैं घर आने का.."
आपका लाडला..
सुमित...
सुबह...हुई...6 बजे डाकिया बाबू आये... "चलो किसी को चिठ्ठी पहुँचानी हो तो..."
चिट्ठी देकर बोला.." बाबू... पापा को बोलना में इस साल छुट्टियाँ ले के पक्का आऊंगा.."
डाकिया बाबू बोले... " साहब ये चिट्ठियाँ भी सात दिन से पहले कहा पहुँचती हैं?? "
तक़दीर में लिखा कौन टाल सकता हैं..!! तीन दिन बाद मेरे शरीर पे तिरंगा लिपट चुका था... और कॉफिन में बंध में अपने वतन पहुंच चुका था..अपनी चिट्ठी से पहले... वतन जाने की मेरी मनोकामना सच में पुरी हो गई हाहा....