हरि शंकर गोयल

Comedy Classics Fantasy

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हरि शंकर गोयल

Comedy Classics Fantasy

मनमौजी

मनमौजी

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आज जैसे ही जगा , एक चक्कर "प्रतिलिपि जी" का लगा आया। आजकल यही दिनचर्या हो गई है। सुबह सुबह की "मॉर्निंग वॉक" प्रतिलिपि के संग हो रही है। बड़ा अच्छा लगता है इस मॉर्निंग वॉक से। सारे स्वच्छ विचार ताजी हवा की मानिंद यहाँ मिल जाते हैं जो फेफडों को तरोताजा कर देते हैं। ज्ञान का तो अथाह भंडार भरा पड़ा है यहां पर। जितना चाहो ले लो , कोई कमी नहीं। जिसकी झोली जितनी बड़ी उतना ही अधिक समेटने को मिलता है यहां पर ज्ञान। कोई प्रतिफल भी नहीं देना पड़ता , मुफ्त में ही मिलता है। सबसे बड़ी बात यह है कि इस पर ना कोई GST है और ना ही VAT . सब प्रकार के करों से मुक्त है यह ज्ञान। इतना फ्री तो "सर जी" भी नहीं देते हैं जितना यहां मिलता है। 

तो आज हमने पाया कि मनमौजियों का मेला लग रहा था प्रतिलिपि पर। चारों ओर मनमौजी ही नजर आ रहे थे। रंग बिरंगे परिधानों में। कुछ पूर्ण वस्त्रों में तो कुछ अर्द्ध वस्त्रों में। शुक्र था कि कोई अधोवस्त्र में नहीं था वरना मनमौजियों का क्या है ? जो मन में आता है वही करते हैं। आजकल तो "मेरी मरजी" का जमाना है। जो चाहे पहनें , मेरी मरजी।

मनमौजियों का सम्मेलन लग रहा था। सब बोल रहे थे मगर कोई सुन ही नहीं रहा था। सुनें भी तो क्यों सुनें ? किस की सुनें ? क्या सुनें ? अरे भाई , मनमौजी हैं तो बस अपने मन की सुनते हैं , और किसी की कहां सुनते हैं ? "कुकुरहाव" की सी स्थिति हो रही थी वहां पर। सब बोलने वाले। सुनने वाला कोई नहीं। मनमौजियों के सम्मेलन में यह तो होना ही था। 

इतना ज्ञान बरस रहा था कि सावन भी भीग गया था। सावन की दशा बड़ी विचित्र हो गयी। बड़ा गुमान था सावन को कि वह दुनिया को भिगोता है। मगर आज "मनमौजियों" के हत्थे चढ़ गया। इतना ज्ञान पेला कि कार्तिक में बाढ आ गयी और सावन उसमें बह गया। बेचारा सावन। लगता है अब दुबारा कभी हिम्मत नहीं करेगा किसी मनमौजी से मिलने की। मनमौजियों का क्या है , जो मन में आया वही करते हैं। ज्ञान पिलाना सर्वश्रेष्ठ कार्य है इसलिए जी भरकर पिलाते हैं। हमारे संस्कारों में वैसे भी "पीने पिलाने" को बड़ा महत्व दिया जाता है। लोग तो सार्वजनिक प्याऊ लगवाते हैं पिलाने के लिए। फिर कोई आंखों से पिलाता है तो कोई होठों से। कोई राजी राजी पिलाता है तो कोई जबरन। आजकल सोशल मीडिया नई " मधुशाला " बन गया है। यहां सब तरह का ज्ञान मुफ्त में पिलाया जाता है। 

तो हम भी मनमौजियों से ज्ञान का प्याला लेकर पीने लगे। "जो मन में आये वही करो " वाला ब्रांड। बड़ी अच्छी मदिरा है यह। बहुत पुरानी। और जितनी अधिक पुरानी उतनी ही अधिक नशीली। हमें भी नशा चढ़ गया। झूमते कदमों से घर लौटे। 

दरवाजे पर ही श्रीमती जी मिल गई। वे भी मनमौजी नंबर वन थीं। हमारे लड़खड़ाते कदम देखकर हमारा हाल समझ गई। हमने बहुत कहा कि हमने पी नहीं है। ई तो ज्ञान गंगा का पानी है जो जबरन हमें मनमौजियों ने पिला दिया है। इसमें हमारा कोई योगदान नहीं है। मगर वे कहां मानने वाली थीं। उन्होंने कहा कि ज्ञान की गंगा तो उन्हीं के श्री मुख से निकलती है। फिर बाहर जाकर डुबकी लगाने की हिम्मत कैसे की आपने। तो हमने भी कहा कि हम भी मनमौजी बनने की कोशिश कर रहे हैं। 

तब वे कहने लगीं "इस घर में एक ही मनमौजी बन सकता है। जब पहले से ही एक मनमौजी घर में विराजमान हैं तब दूसरे की क्या जरुरत ? आपको पता नहीं है कि एक म्यान में केवल एक ही तलवार रह सकती है , दो नहीं। एक तलवार पहले से ही रह रही है। अब दूसरी तलवार नहीं रह सकती है वहां पर"। इतना कहकर वे अपने प्रिय अस्त्र "बेलन" के साथ पिल पड़ी। सारा ज्ञान वहीं उतार दिया। कहने लगी "खबरदार जो फिर कभी मनमौजी बनने की चेष्टा भी की। अभी तो बस ट्रेलर दिखाया है नहीं तो पूरी फिल्म देखनी पड़ेगी "। 

हमको बात समझ में आ गयी। इंसान बेचारा स्वतंत्र कब रहा है। पैदा होते ही गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ है। पहले मां बाप की गुलामी फिर बीवी की। ऑफिस में बॉस की गुलामी। घर में पत्नी की तो बाहर "जबरे" की। मन की करें तो कैसे करें ? मनमौजी बनें तो कैसे बनें ? हमें तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा है। कोई ज्ञानी हो तो ज्ञानवर्धन कर उद्धार कर दे हमारा।


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