मन की कसक
मन की कसक
ससुराल में पहला कदम रखते हैं नीता की धड़कन तेज होने लगी। उसकी दीदी ने जो अपने ससुराल के बारे में बताया था उसकी कल्पना कर वह सिहर जाती थी। आज से पहले वह कभी इतनी नर्वस न थी। तब भी जब नौकरी के लिए इंटरव्यू देने गई थी। इसकी बड़ी वजह थी कि उसनेअपनी जाति के बाहर विवाह। नीता उत्तर भारतीय ब्राह्मण परिवार में जन्मी थी और सुनील का जन्म महाराष्ट्रीयन परिवार में हुआ था। दोनों एक साथ नौकरी करते थे। उनकी दोस्ती कब धीरे धीरे प्यार में बदल गई इस बात का अहसास उन्हें तब हुआ जब नीता के घर में उसकी शादी की बात चल रही थी।
नीता सुनील के बगैर अपनी ज़िन्दगी की कल्पना भी न कर सकती थी। उसने सुनील से कहा-शादी की बात आगे बढ़े इससे पहले ही हम दोनों को अपने अपने घर में हमारी प्यार की बात बता कर शादी के लिए उन्हें राजी कर लेना चाहिए। शादी में सबसे बड़ा अड़चन नीता के परिवार वालों की रूढ़ि मान्यता थी।
वे अपनी जाति में ही नीता का विवाह करना चाहते थे। सुनील के माता पिता जब शादी का प्रस्ताव लेकर नीता के घर आए तो उन्होंने शादी के लिए मना कर दिया। नीता का रोना-धोना शुरू हो गया। अपनी दादी के सामने जाकर वह जिद करने लगी, जो इस शादी के विरुद्ध थी। आखिर उसने दादी को मना लिया बस अब दादी की बात तो घर में सब को माननी ही पड़ी। सुनील स्मार्ट था और उसकी नौकरी भी अच्छी थी। उन्हें तो शायद अपनी जाति में ऐसा लड़का मिलना भी मुश्किल था।
शादी के पहले ही सुनील ने अपने घर के लोगों की पसंद -नापसंद के बारे में नीता को बता दी थी, ताकि शादी के बाद उसे दिक्कत न हो। सुनीता ने निर्णय किया था की शादी के बाद वह नौकरी छोड़ देगी। घर को खूब सजाएगी, संवारेगी और अपना पूरा समय पति और सास ससुर की सेवा में लगाएगी। इन्हीं सपनों में सुनीता खोयी थी कि अचानक उसके देवर ने मजाक करते हुए कहा -"क्यों भाभी दरवाजे पर ही खड़ी रहोगी ,घर के अंदर नहीं आना "? आसपास खड़ी सारी औरतें हंस पड़ी।
उसकी सास ने उसको गले लगाते हुए गृहप्रवेश की रस्म पूरी की।नीता ससुराल में सब की पसंद का खाना बनाती घर की सफाई में और सजावट में अपना समय गुजारने लगी। मैयेके में उसे इतनी काम करने की आदत न थी इसकी वजह से वो बहुत थक जाती थी। दो तीन दिन बाद ही वो बीमार हो गई। बुखार से उसका पूरा शरीर तप रहा था। बदन दर्द से टूट रहा था। उसने सोचा दवाई खाकर बिस्तर पर थोड़ी देर के लिए आराम कर लेगी तो तबीयत ठीक हो जाएगी। बिस्तर पर जाते ही गहरी नींद आ गई। नींद में ही उसे एहसास हुआ कि उसकी मां उसके सिरहाने बैठी है। आंखें खोल कर देखी तो देखा की उसकी सास उसके सिर को हल्के हाथों से सहला रही थी। उसकी आंखों से आंसू निकल गए। उसने सासू मां के हाथ को अपने हाथों में लेते हुए कहा -"आप तो बिल्कुल मेरी मां जैसी हैं"। मेरे बीमार होने पर वह भी मेरे पास ऐसे ही बैठती थी। उसकी सास ने कहा-" तो क्या मैं तुम्हारी मां नहीं बन सकती"? मैंने भी तो तुम्हें बहू नहीं बेटी माना है और ये क्या, काम करते हुए तुम्हें अपना भी ख्याल रखना पड़ेगा।
ऐसे बीमार हो जाओगी तो फिर हमारी देखभाल कौन करेगा? नीता उनके उलाहना में छिपे प्यार की गहराई में डूबती जा रही थी। उसकी सास ने उसे समझाते हुए कहा -अब जब भी तुम्हारी तबीयत ठीक न हो तो तुम मुझे पहले ही बता देना। जैसे ही तुम्हारी तबीयत ठीक हो जाती है, तुम नौकरी फिर से ज्वाइन कर लो।इस तरह से इन चारदीवारी में मेरी तरह कैद होकर न रह जाना। हमारे जमाने में तो लड़कियां चाहे कितनी भी पढ़ी लिखी हो शादी के बाद घर संभालना है उसका काम था। लड़कियों का नौकरी करना ससुरालवाले अपनी तौहीन मानते थे, पर अब समय बदल गया है। पुरुषों की तरह हम स्त्रियों को भी आत्मनिर्भर बन कर अपनी एक अलग पहचान बनानी चाहिए। नीता को दीदी की कही बातें याद आने लगी। उसे अपने ससुराल और दीदी के ससुराल में जमीन आसमान का फर्क नजर आ रहा था। अपने कानों पर उसे विश्वास न हो रहा था। इतनी घरेलू और सीधी-सादी सी दिखने वाली उसकी सास अपने विचारों से इतनी उन्मुक्त होगी ऐसा उसने सोचा न था। अपनी सास के मन की कसक और मन के किसी कोने में दबी इच्छाओं का अंदाज लगाते उसे क्षण भर भी देर न लगी। उसने कभी सोचा न था कि उसके मन को पढ़ने वाली एक मां ससुराल में उसका ऐसे स्वागत करेगी। बड़े प्यार से उसने सासू मां के गोद में अपना सर रख कर आंख मूंद लिया।
