ममता
ममता


अरे ओम प्रकाश ! सुबह - सुबह रिक्शा लेकर कैसे आ गया ?
तुझे पता नहीं है क्या लोक डाउन चल रहा है ?
पता तो है आंटी, लेकिन कमाएँगे नहीं तो खाएँगे क्या ?
और तूने मास्क भी नहीं लगा रखा, चल मैं तुझे मास्क देती हूँ !
उसके बग़ैर मत घूमना, यह तेरे लिए भी अच्छा है और हमारे लिये भी !
आपका बहुत - बहुत धन्यवाद आंटी !
अरे, धन्यवाद की कोई जरूरत नहीं है, इसको लगाये बिना मत घूमना, इतनी मेहरबानी करना अपने आप पर भी और हमारे पर भी !
वह रिक्शा लेकर चल दिया, परन्तु अगले दिन सुबह फिर देखती हूँ की वो बिना मास्क लगाये फिर घूम रहा था !
मैंने उससे पूछा की मैंने तुम्हें कल जो मास्क दिया था वो कहाँ है ? लगाकर क्यों नहीं आय
े ?
वो मैंने अपने दामाद को दे दिया, उसको उसकी ज़्यादा ज़रूरत थी ! हम तो आयी खेती हैं !
नहीं ओम प्रकाश, तुम ममता में इसे हलके में मत लो, नासमझीं में तुम अपने साथ कितनों को मौत का ग्रास बनाओगें, यह तुम्हें पता नहीं है !
यह वायरस ऐसा है, जो तुम्हारें साथ - साथ तुम्हारें संपर्क में जो भी आयेगा, उसे भी लील जायेगा !
कोई नादानी मत करों , मैं तुम्हें दूसरा मास्क और दस्तानें लाकर देती हूँ , उन्हें पहनें बग़ैर मत निकलना और बार - बार हाथ धोना,
इससे हम खुद भी बचेंगे और दूसरों को भी बचायेंगे ! ममता में बहकर हमें कोई ऐसा काम नहीं करना हैं, जो हमारें लिये और दूसरों के लिये घातक हो !
ममता अपनी जग़ह और कर्त्तव्य अपनी जगह !