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Archana Tiwary

Inspirational

4  

Archana Tiwary

Inspirational

मिट्ठु

मिट्ठु

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कबीर आज शाम को जल्दी घर जाना चाहता था क्योंकि सोनाली के लिए उसने जो सरप्राइज गिफ्ट ली थी उसकी प्रतिक्रिया देखने की बेताबी बढ़ती जा रही थी पर चाह कर भी ऑफिस से जल्दी न निकल पाया वही रोज वाले वक़्त पर फ्री हो जल्दी जल्दी घर पहुँच कॉलबेल बजायी।सोनाली दरवाजा खोलते ही उलाहना देने लगी-"कभी तो जल्दी घर आ जाया करो,तुम्हे पता है न दिनभर अकेले रह कर मैं ऊब जाती हूँ"।


सच ही तो कह रही थी सोनाली।संदीप के अमेरिका जाने के बाद कबीर और सोनाली अकेले हो गए थे।कबीर का तो वक़्त ऑफिस में बीत जाता पर सोनाली को अकेलापन खाये जा रहा था।संदीप को बहुत समझाया पर उसपर तो जैसे अमेरिका जाने का भूत सवार था।उसके कई दोस्त आगे की पढाई के लिए अमेरिका गए थे।बस उनकी बातों को सुन सुन संदीप ने भी वहाँ जाने की ठान ली।सोनाली के समझाने का उसपर कोई असर न हुआ आख़िर थक हार कर सोनाली को उसकी बात माननी पड़ी ।बुझे मन और नम आँखों से उसे विदा करने के कई दिन बाद तक वो रातों में सो नहीं पाई।कभी कभी तो उसके जाने का कारण खुद को मान घंटों रोती तो अगले ही पल अपने मन को समझाती कि ये उसके कैरियर की बात है वर्ना मेरा संदीप मुझे छोड़ विदेश न जाता।उसे गए एक साल हो गए थे पर सोनाली उसके इस फैसले से खुश न थी।उसके जाते ही घर में रहस्मयी शांति पसर गयी थी।सबकुछ वैसा ही था बस अकेलेपन का दर्द सोनाली की आँखों में दिखाई देने लगा।कभी सोचती किसी रिश्तेदार के घर चली जाए या अपने दोस्तों के साथ ज्यादा समय गुजारे पर ये सोच रुक जाती की सबकी अपनी अपनी जिम्मेदारियां है मेरी तरह सब फ्री तो नही है।किसी सहेली के बच्चे छोटे हैं तो उनकी देखरेख में पूरा दिन निकल जाता फिर मुझे कैसे वक़्त दे पायेगी और सही ही है मैं भी तो कभी वक़्त की दुहाई देती थी जब संदीप के इर्द गिर्द ही दुनिया बसती थी पर आज ...आज तो वक़्त ही वक़्त है मेरे पास।

कबीर ने उसे कहा- छोडो, शिकायत करना और जल्दी से अपनी आंखें बंद करो।सोनाली के आंख बंद करते ही कबीर ने पिंजरा उसके सामने रख आंख खोलने को कहा।पिंजरा देखते ही सोनाली बोल पड़ी-अरे,ये तो मिट्ठू है।कितना चमकीला रंग है और होठ तो ऐसे लाल मानो अनार के दाने।खुश हो वो कबीर के गले लग गयी।

"तुम्हे पसंद आया"

"बहुत,बहुत पसंद आया "थैंक यू "कबीर।"

अब मुझे ऑफिस से आने में देर होगी तो शिकायत तो नही करोगी ।मैंने तुम्हारे अकेलेपन की दवा ला दी है कहते हुए कबीर ने सोनाली की ख़ुशी में अपनी खुशी जाहिर की।सोनाली को अपनी माँ की बात याद आने लगी जो पंछियों को पालने के खिलाफ थी। कहती थी पंछी को कभी पिंजरे में नही रखना चाहिए उन्हें भी हमारी तरह ही आज़ादी पसंद है पर इस समय तो वो माँ की बातों को नजरअंदाज कर बस मिट्ठू को निहारे जा रही थी। धीरे धीरे मिट्ठू घर का सदस्य बन गया ।आसपास की औरतें मिट्ठू को संदीप का छोटा भाई कहकर सोनाली को छेड़ने लगी पर सोनाली यह सुन नाराज होने की वजाय खुश होकर कहती- हां -हां मिट्ठू मेरा छोटा बेटा ही तो है। मिट्ठू भी मां के स्नेह में डूब इतराने लगता। रेडियो से गाने की धुन सुन उसको दुहराने लगता। कभी कभी सोनाली -सोनाली पुकार उसे भी चौंका देता। धीरे धीरे प्यार का रंग मिट्ठू पर ऐसा चढ़ा कि वह भी संदीप की तरह जिद करने लगा । 

आमतौर पर तोते को हरी मिर्च बहुत पसंद होती है पर यह जनाब तो सिर्फ अमरूद खाना ही चाहते थे। अमरुद न मिलने पर मुंह फुला कर खाने की किसी चीज को हाथ न लगाता ।नौबत यहां तक आ गई कि जिस दिन पास वाले बाजार में अमरुद न मिलता उस दिन वक्त की परवाह न करके रात में भी कबीर को अमरुद लेने बड़े बाजार जाना पड़ता ।सोनाली का वक़्त अब मजे से गुजरने लगा। मिट्ठू से बातें करती उसे नहलाती खिलाती और उसके पिंजरे की सफाई का ध्यान रखती।

एक दिन सुबह सोनाली ने देखा कि मिट्ठू कुछ भी बिना बोले चुपचाप पिंजरे के कोने में पड़ा हुआ है। उससे मिट्ठू को आवाज दी पर उसने कोई उत्तर न दिया ।जब बोलने की कोई आवाज ना आई तो थोड़ी आशंकित हो सोनाली ने कबीर को जगाया ।कबीर अलसाया सा बोल पड़ा- "शायद आज उसकी तबीयत ठीक न होगी। हम तुम भी तो तबीयत खराब होने पर चुपचाप पड़े रहते हैं। जाओ देखो मैंने फ्रिज में उसके लिए अमरूद रखा है उसे दे दो। देखते हैं खुश होकर बोलना शुरू कर देगा।" सोनाली ने देखा फ्रीज़ में दो रसीले इलाहाबादी अमरूद रखे थे। एक अमरूद उठाकर उसने काटा और बोल पड़ी- "मिठू ,बेटा मिट्ठू ले देख मैं तेरे लिए क्या लाई हूं "। 

न कोई आवाज न कोई प्रतिक्रिया। अब तो सोनाली का मन बैठने लगा। पिंजरे के पास गई तो देखा मिट्ठू पिंजरे के एक कोने पर चिर निद्रा में सोया है ।उसने उसे उठाने की कोशिश की पर वह तो सोनाली से ढेर सारा स्नेह , थोड़ा जिद्दी अकेलेपन का साथी बन प्यार के बदले प्यार देकर इस दुनिया से विदा हो गया था। कबीर ने उसे पिंजरे से बाहर निकाला ।सोनाली उसे हाथों में ले फूट-फूट कर रोने लगी ।कबीर की आंखों से भी झर आंसू बह निकले ।आज उसे मां की बात फिर याद आने लगी शायद वह मोह के बंधन को अच्छी तरह पहचानती थी। असमय विदा की पीड़ा का एहसास था उसे ।तभी उसे पंछियों को पिंजरे में रखना पसंद ना था। 

अब मिट्ठू के बिना घर में फिर वही रहस्यमयी शांति पसर गई ।दो-तीन दिन बाद कबीर ने सोनाली के लिए फिर एक तोता लाने का मन बनाया पर इस बार सोनाली ने यह कहते हुए मना कर दिया अब मैं इस मोह के बंधन में नहीं पड़ना चाहती ।मैंने सच्चाई को स्वीकार कर लिया है सचमुच पंछी आकाश में उड़ते हैं मनभावन लगते हैं।



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