मिलन के रंग
मिलन के रंग


आज सोनी बहुत उदास थी। आज शादी के 5 सालों में पहली बार ऐसा हुआ था कि होली के त्योहार पर वो और रोहन साथ नही थे। रोहन उससे नाराज था। सोनी और उसकी सास के बीच बनती नही थी। इस वजह से सोनी और रोहन के बीच की खटपट काफी बढ़ गयी और वो घर छोड़ कर मायके आ गयी। आज होली का त्योहार है, घर मे सब लोग रंग खेलने की तैयारी कर रहे हैं। भैया-भाभी की अठखेलियाँ देखकर सोनी को अपनी पिछ्ली होली के हुड़दंग याद आ रहे थे जो उसकी उदासी को और गहरा कर रहे थे। घर मे बन रही गुझियों की खुशबू से उसे याद आया कि रोहन को उसके हाथ की गुझियां कितनी ज्यादा पसंद है। "उफ़्फ़! ये निगोडी ज़बान, कुछ भी बोल देती हूँ। काश! मैंने उस दिन बहस न की होती। और रोहन ने मुझे रोकने की कोशिश भी नही की। एक बार झूठ को ही कह देते मत जाओ....! तो मैं रुक जाती।" यही सोचते- सोचते सोनी की आंखों से अश्रुधार बहने लगी।
उसे उदास देखकर माँ ने कहा- "आज होली है, कम से कम आज तो दामाद जी से बात कर ले। आज के दिन तो बड़े-बड़े गिले शिकवे मिट जाते हैं फिर दामादजी तो नर्मदिल इंसान ठहरे। तुझसे प्यार भी बहुत करते हैं, माफ़ कर देंगे। आख़िर गलती भी तो तेरी थी। बुजुर्गों की कही हुई बात का कोई बुरा मानता है क्या!".....
सोनी विचार में डूब गई। फोन करूँ या न करूं उसके मन में ये उधेड़बुन चल ही रही थी कि उसके कानों में छोटी बहन रश्मि की&n
bsp;आवाज गूँजी "अरे जीजु आ गए!...क्या हुआ जीजू आखिर आपको हमारी याद आ ही गयी।" सोनी भागकर हॉल में पहुँची तो देखा कि अपनी चिर परिचित मुस्कान लिए हुए रोहन सोनी के बाबूजी को अबीर लगा रहा है। सब से होली मिलन करते हुऐ उसकी नज़र सोनी पर पड़ी तो सोनी सकपका गयी। उसकी आँखों मे आँसू आ गए। वो पलटकर कमरे चली गयी। रोहन पीछे उसके कमरे में गया। दोनो ने एक दूसरे की तरफ देखा। रोहन से नज़रे मिलते ही सोनी की आंखे भर आयी। वो भागकर उसके गले लग कर रोने लगी। "मुझें माफ़ कर दो रोहन...मैंने तुमसे इतनी बुरी तरह बात की। मैं बहुत बुरी हूँ"....।
"जानता हूँ...!" रोहन ने हँसते हुए कहा। मुझें माँ ने बहुत समझाया कि सास-बहू में खिटपिट तो चलती रहती है। इसके लिए पति पत्नि को मनमुटाव नही करना चाहिए.... और फिर मुझें तुम्हारे हाथ के गुझिया भी तो खाने थे, इतना बड़ा नुकसान मुझे मंजूर नहीं था....और तुम्हारे बिना मेरी होली में रंग कैसे चढ़ता!" ये सुनकर सोनी खिलखिला कर हंस दी। उसकी उदासी मिट गई। आख़िर उसपर प्यार का गहरा रंग जो पड़ चुका था।