Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
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Anu Pal

Drama

4.7  

Anu Pal

Drama

रॉंग नंबर

रॉंग नंबर

7 mins
391


अरुणा के इम्तिहान करीब आ रहे थे । इसलिये अरुणा और उसकी दोस्त रीना और संध्या ने साथ में ग्रुप स्टडी करने का फैसला किया। ऐसे ही एक दिन वो तीनों हॉल में पढ़ाई कर रही थीं। तभी रीना ने अरुणा से कहा।

"अरुणा। हम लोग बहुत देर से किताबों में घुसे हुए हैं। चल न थोड़ी मस्ती करते हैं।"

"ओफ्फो। रीना इधर परीक्षाएं सिर पर हैं और तुझे मस्ती सूझ रही है। चुपचाप पढ़ाई कर।" अरुणा ने उसे डाँटते हुए कहा।

"प्लीज् अरुणा। मैंने कब पढ़ाई के लिए मना किया है, पर थोड़ा सा ब्रेक ले लिया तो कौनसा नुकसान हो जाएगा।" रीना ने मुँह बनाते हुए कहा।

"ठीक है। तू भी बहुत जिद करती है। बता क्या करना है?" अरुणा ने किताब मेज पर रखते हुए कहा।

रीना हॉल में इधर - उधर नज़र घुमाते हुए कुछ सोचने लगी। अचानक उसकी नज़र हॉल में रखे टेलीफोन पर पड़ी। उसके दिमाग में एक शरारत सूझी। उसने अरुणा और संध्या की तरफ़ शरारती नज़रो से देखते हुए कहा।

"वो देखो टेलीफोन। चलो ऐसे ही किसी नम्बर पर फोन लगा कर उसे परेशान करते हैं। बड़ा मजा आएगा।"

"तुम्हारा मतलब है रॉंग नम्बर पर बात करें। न बाबा अगर कोई प्रॉब्लम हो गयी तो।" अरुणा ने हिचकिचाते हुए कहा।

" ओहो अरुणा। कितना डरती हो यार। कोई प्रॉब्लम नही होगी। अगर हुई भी तो हम उससे माफ़ी मांग लेंगे। तुम बस नम्बर डायल करो।

अरुणा ने घबराते हुए एक नम्बर डायल किया। कुछ देर घण्टी बजती रही फिर किसी ने फोन उठाया।

"हेलो।" दूसरी तरफ से किसी लड़के की आवाज थी। अरुणा ने हड़बड़ाकर फोन रख दिया।

"क्या हुआ? तुमने फोन क्यों काट दिया? कौन था फोन पर?" रीना ने पूछा।

"कोई लड़का बोल रहा था।"

"अरे तो बात करना चाहिए थी न। फोन क्यों काटा। फिर से डायल कर।" रीना ने उसे डांटते हुए कहा।

अरुणा ने दोबारा नम्बर डायल किया। इस बार फिर उसी लड़के ने फोन उठाया।

"हेलो। कौन बोल रहा है?"

"आप कहाँ से बोल रहे हैं?" अरुणा ने हिचकिचाते हुए पूछा।

"मंगल ग्रह से....।" इतना कहकर वो लड़का जोर से हँसा।

अरुणा की भी हँसी छूट गयी और उसने झट से फोन रख दिया। जब उसने ये बात संध्या औऱ रीना को बताई तो वो दोनो भी हँस पड़ी।

 कुछ दिन बाद अरुणा ने उस नम्बर पर फिर से फोन किया। दोनों ने एक दूसरे को अपना परिचय दिया। उस लड़के का नाम सौरभ था। वो एक कंसल्टेंसी फर्म चलाता था। अब दोनों में आये दिन बातें होने लगी और अच्छी दोस्ती हो गई। दोनो को एक दूसरे को जानते हुए तीन महीने होने को आये थे लेकिन उन दोंनो ने अब तक एक दूसरे को देखा नही था। एक दिन सौरभ ने अरुणा को अपने दोस्त के घर पर मिलने के लिए बुलाया। दोनों उस दिन पहली बार मिले और एक दूसरे को देखते ही रह गए। उस दिन दोनों ने एक दूसरे से ढेर सारी बातें की और फिर अपने-अपने घर लौट आये।

 उनकी बातों का सिलसिला जारी रहा। धीरे धीरे दोनो एक दूसरे को पसंद करने लगें। एक दिन सौरभ ने अरुणा से प्यार का इजहार कर दिया। अरुणा भी सौरभ को पसंद करती ही थी, तो उसने झट से हामी भर दी।

इसी तरह सात साल बीत गये। उनकी जिंदगी में सब कुछ ठीक चल रहा था। अब अरुणा की एमबीए की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी। अब उसके घरवाले उसकी शादी करना चाहते थे। उन्होंने उसके लिए लड़का ढूंढ़ना शुरू कर दिया। अरुणा ने ये बात सौरभ को बताई। उन दोनों ने फैसला किया कि अब अपने-अपने घर वालों को अपने प्यार के बारे में बता देंगे।

जब दोनों ने घर वालों को ये बात बताई तो घर में हंगामा हो गया। दोनो के घर वालों को इस रिश्ते से दिक्कत थी क्योंकि उन दोनों की जातियां अलग थी। लेकिन उन दोनों ने भी तय कर लिया था कि शादी करेंगे तो एक दूसरे से ही। इस तरह दो साल बीत गए। मगर इस बीच वो दोनों घरवालों को मनाने की कोशिश करते रहे। आखिरकार घर वालों को भी समझ आ गया कि ये दोनों नही मानेंगे तो उन लोगों ने हार कर शादी के लिए इजाजत दे दी। जब शादी के लिये दोनों की कुंडलियां मिलाई जा रही थी तो पता चला कि अरुणा मांगलिक है। जो बात बनती दिख रही थी वो भी बिगड़ गयी। घरवालों ने शादी के लिए साफ इंकार कर दिया। मगर उन दोनों ने तय कर लिया था कि वो एक दूसरे से ही शादी करेंगे और दोनो परिजनों को मनाने में लगे रहे।

वो दोनों अपने परिवार से जूझ ही रहे थे कि एक और घटना ने उनकी जिंदगी में भूचाल ला दिया। एक दिन सौरभ अपने दोस्तों के साथ घूमने गया था। वहाँ से लौटते वक्त उसकी कार का संतुलन बिगड़ा और कार एक खाई में गिर गयी। इस हादसे में सौरभ की जान तो बच गयी मगर डॉक्टर ने बताया सौरभ को स्पाइनल इंजुरी होने की वजह से उसके शरीर का निचला हिस्सा हमेशा के लिए बेकार हो गया है और वो कभी चल नहीं पायेगा। ये सुनकर सबके पैरों के नीचे से जैसे जमीन ही खिसक गई ।

अरुणा को जब सौरभ के साथ हुए हादसे के बारे में पता चला तो वो टूट गयी। वो बहुत रोई। वो तुरंत हॉस्पिटल पहुँची। मगर सौरभ के घरवालों ने उसे सौरभ से मिलने नही दिया। उन्होंने उसे बहुत बुरा भला कहा और उस हादसे का जिम्मेदार अरुणा के मांगलिक दोष को ठहराया।

लेकिन अरुणा ने सौरभ से मिलने की कोशिश नहीं छोड़ी। उसने सौरभ के घर जाकर उससे मिलने की कोशिश की लेकिन जब भी वो सौरभ के घर जाती तो उसके घरवाले उसे सौरभ से मिलने नही देते। वो कई घण्टों तक सौरभ के घर के बाहर बैठी रहती। अरुणा के समर्पण को देखकर आखिरकार सौरभ के घरवालों का दिल पिघल गया और उन्होंने उसे सौरभ से मिलने की इजाजत दे दी।

 जब अरुणा सौरभ से मिली तो उसकी हालत देख अरुणा की आँखे भर आईं। अरुणा को रोता देख सौरभ भी उदास हो गया। लेकिन अपना दर्द मन में दबाते हुए उसने अरुणा से कहा।

"अरूणा ये सब क्या है? तुमने क्यों ज़िद ठान रखी है? आख़िर क्यों मिलना चाहती हो मुझसे।"

"क्योंकि मैं तुमसे प्यार करती हूँ। तुम तकलीफ़ में हो तो मुझें तो तुम्हारे साथ होना ही है सौरभ।" अरुणा ने खुद को संभालते हुए कहा।

"कैसा प्यार? अब सब कुछ बदल चुका है। मेरी जिंदगी बदल चुकी है। मैं पहले जैसा नही रहा। अब मैं तुम्हारा हाथ नहीं थाम सकता। मुझे भूल जाओ। यही हम दोनों के लिए सही है।" सौरभ ने चेहरे पर दर्द के भाव लिए कहा।

" कैसे भूल जाऊं? और क्यों भूल जाऊं ? ऐसा क्या हो गया जो हम साथ नही हो सकते। मुझें तो कुछ भी बदला हुआ नही लग रहा। मैं वही हूँ, तुम वही हो और हमारा प्यार वही है। सिर्फ इसलिए कि तुम चल नही सकते तुम मेरा साथ देने से इंकार कर रहे हों। अगर ये हादसा मेरे साथ हुआ होता तो क्या तुम मेरा साथ छोड़ देते? नही न। फिर मुझसे ऐसी उम्मीद क्यों कर रहे हो?"

"तुम समझने की कोशिश करो अरुणा। जिंदगी बहुत लंबी और कठिन है। जिंदगी में जब चुनौतियां आएंगी तो ये रिश्ता तुम पर बोझ बन जायेगा।"

"मेरा प्यार बोझ नही है सौरभ। मेरा प्यार मेरे जीने की वजह है। कोई मुश्किल कोई भी हादसा मुझसे मेरे जीने की वजह नही छीन सकता। और मैं तुम्हें भी ऐसा नही करने दूँगी। तुम साथ दोगे तो हर चुनौती का सामना हँसते-हँसते कर लुंगी। तुम्हे मेरा साथ देना ही होगा।" अरुणा ने आत्मविश्वास के साथ कहा।

अरुणा कई दिनों तक सौरभ को समझाने की कोशिश करती रही। सौरभ अपने मन में चल रही कशमकश से लड़ता रहा। मगर ज्यादा दिन तक वो अपने प्यार को दबा नही पाया और वो अरूणा के प्यार और समर्पण के आगे हार गया। आखिरकार वो अरुणा से शादी के लिए तैयार हो गया। इधर अरुणा के परिवार वालों ने उसके लिए लड़का देख लिया था, पर अरुणा ने शादी से साफ इंकार कर दिया।

कुछ दिनों बाद अरुणा और सौरभ ने कोर्ट में शादी कर ली। सौरभ परिवार का इकलौता लड़का था और उसके घरवाले धूमधाम से उसकी शादी करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने घर में एक समारोह रखा, जिसमें सौरभ ने सभी समाजजनों की उपस्थिति में अरुणा की माँग भरी और सात जन्मों तक साथ निभाने की कसमें खाई। लोग इस शादी के गवाह बनकर बहुत उत्साहित थे।

हालांकि अरुणा के परिवार वाले उससे नाराज़ थे, औऱ वो उसकी शादी में शामिल नही हुए थे। वो यहीं सोचते थे कि लोग क्या कहेंगे, समाज को वो क्या जवाब देंगे। मगर जब उन्हें पता चला कि लोग इस शादी की मिसालें दे रहे हैं तो उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ। मीडिया में खबर आने के बाद देश भर से अरुणा के परिवार वालो को फोन आने लगे, लोग उन्हें बधाई देने लगे। धीरे - धीरे "लोग क्या कहने" का सवाल गर्व में बदल गया।

  कुछ दिनों बाद अरुणा की माँ ने उसे घर बुलाया और उसे आशीर्वाद दिया। हालांकि अरुणा की माँ को ये चिंता हमेशा रहती थी कि अरुणा और सौरभ जिन्दगी की चुनौतियों का सामना कैसे करेंगे। मगर अरुणा हमेशा यही कहती कि चुनौतियां ही हमें जीने की नई राह दिखलाती है। हमें सांत्वना नही मार्गदर्शन चाहिए। उसका ये आत्मविश्वास देखकर घर वाले मुस्कुरा देते। इसी आत्मविश्वास के सहारे अरुणा और सौरभ ने अपनी जिंदगी की हर मुश्किल हो हराया और दुनिया के सामने प्यार की मिसाल कायम की।


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