Surendra kumar singh

Inspirational

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Surendra kumar singh

Inspirational

मीटिंग

मीटिंग

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 अभी मीटिंग चल रही है अंदरखाने में।पर उसकी खबर बाहर भी है।चूंकि अंदरखाने के बाहर सिर्फ हम हैं, जाहिर है खबर हम तक ही है।बहरहाल अंदरखाने में मीटिंग चल रही है।मीटिंग में प्रेम है,करुणा है,उल्लास है,उमंग है और आगे चलने की चर्चा हो रही है।क्योंकि जीवन है तो चलना आवश्यक है।यही गति ही तो परिचय है जीवन का।यद्धपि ठहराव की भी जरूरत होती है जीवन में।लेकिन चलने के लिए रास्ते की जरूरत होती है जो बन्द है, या है ही नहीं, है भी तो जानकारी में नहीं है।ठहराव में ही मीटिंग चल रही है।शायद ठहराव का सर्वोत्तम उपयोग है ये मीटिंग जिसमें आगे चलने पर निर्णय होना है।यूँ तो अंदरखाने के बाहर बहुत कुछ चल रहा है पर इन रास्तों के आगे अंत है,उसके बाद सबकुछ ठहर जायेगा।यह कोई तार्किक संवाद नहीं है,एक यहसास है और इसलिये है कि की मीटिंग में शामिल लोग अंत से लौट आये हैं या वही ठहरे हुये,मीटिंग कर रहे हैं आगे चलने के लिये।मतलब इस अंदरखाने के बाहर जो लोग चल रहे है,खूब तेज चल रहे हैं,उनसे तेज गति रही होगी इनकी।तभी तो जहाँ पर पहुंचेंगे ये छलांग लगाते हुए,लगभग सरपट दौड़ते हुए लोग वहाँ से ये लोग लौट आ आये हैं, या वहीं खड़े हैं,जहां पहुंचने के बाद रास्ते बंद मिलेंगे इन तेज गति से चलने वालों के।जहाँ उन्हें भी ठहरना होगा।जहाँ ये लोग ठहरे हुये हैं और ठहराव का सुंदर उपयोग कर रहे हैं, मीटिंग कर रहे हैं।प्रेम अपनी बात कह रहा है,करूणा अपनी बात कह रही है,उमंग अपनी बात कर रही है तो उल्लास अपना पक्ष रख रहा है।

     प्रेम कह रहा है मैं हूँ तो अस्तित्व है,ये कायनात है,ये मीटिंग चल रही है, बाहर वो लोग तेज गति से चल रहे हैं।मैं नहीं रहूंगा तो कुछ भी नहीं रहेगा।आस्तित्व नहीं रहेगा,ये कायनात नहीं रहेगी,तो हमे एक ऐसे रास्ते की तलाश करनी पड़ेगी जहाँ मैं रहूँ, अस्तित्व रहे,ये कायनात रहे।

    करुणा कह रही है मुझे भी डर नहीं लगता,युद्ध मे भी मुझे डर नहीं लगता पर युद्ध के मैदान में जब कोई घायल तड़पता है,दर्द से बिलबिला का चीखने लगता है तो मैं कांप उठती है।मेरे हाथ पैर फूल जाते हैं और मैं बेचैन होकर अपना सिर धुनने लगती हूँचिल्लाने लगती हूँ कोई इसे बचाये,इसके जख्मों पर मरहम लगाये।

  उल्लास कहता है मैं हूँ तो सब ठीक हो जाएगा।नया रास्ता बन जायेगा जिस पर प्रेम का अस्तित्व रहेगा और करुणा की पुकार पर मनुष्य प्रेम और दया के वशीभूत होकर एक दूसरे की जख्मों पर मरहम लगायेंगे।ऐसा करते हुये उन्हें खुशी मिलेगी।

  उमंग कहती है कोई समस्या नहीं है,में हूँ तो ये बन्द रास्ते खुल जाएंगे।इसके लिये विचार विमर्श की जरूरत नही है सिर्फ चलने की जरूरत है, ।जिधर से हम चलेंगे उधर रास्ता बन जायेगा।जाने कितने लोग चलेंगे उस रास्ते पर।जो रास्ते बंद हो गये हैं उन्हें भी किसी ने यूँ ही बनाया था।ये जो लोग तेजी से चल रहे हैं बने बनाये रास्ते पर वहाँ भी पहले रास्ता नहीं था।वो चल रहे हैं कि ये रास्ते उन्हें उनकी मन्जिल तक पहुंचा देंगे।उन्हें क्या पता वो जिस रास्ते पर चल रहे हैं वो यहाँ आकर खत्म हो जाएगा और सब कुछ ठहर जायेगा।उन्हें भी आगे चलने के लिए हमारे अंदरखाने में चलती हुई मीटिंग से निकले रास्ते पर चलना पड़ेगा।

  फिर सब एक साथ बोल उठते हैं तो चलते हैं ताकी तेज चलने वाले लोग जब यहाँ पहुंचे तो उन्हें ठहरना न पड़े।हमारे बनाये हुये रास्ते उन्हें दिखायी पड़ें और चल पड़ें।


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