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मीठा सा बदलाव

मीठा सा बदलाव

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आज सुबह से रमा का मन उदास था।

टिन्नी कई बार मां से खाने के बारे में पूछ चुकी थी पर वह अनमनी सी मना कर देती।

"मां देखो तीन बजने को है। आओ खाना खा लो।"

"न अभी मन नहीं। सुमेर आ जाए तो साथ ही खाएंगे।"

"मां, भैया-भाभी मूवी देखने गए हैं। हो सकता है कि वहीं कुछ खा ले।"

"नहीं, ऐसा हो ही नहीं सकता। सुमेर को पता है कि उसके बिना मैं खाना नहीं खाती।"

"मां आप भी वही गलती कर रहे हो जो मैं भुगत चुकी हूँ !"

"मतलब !"

"मां मैंने आपको कभी नहीं बताया कि कहीं आप परेशान न हों। आज भी न बताती....पर आपका ये व्यवहार देख मुझसे रहा नहीं जा रहा।"

"तू मेरे दिल की धङकनें न बढ़ा, साफ साफ बता क्या बात है !"

"मां..... हमारे घर भी यही सिस्टम है कि सब रात का खाना साथ ही खाते हैं। जब कभी हम घूमने जाते हैं मनीष को घर पहुँचने की चिंता ही लगी रहती है कि जल्दी घर चलो मां खाने के लिए इंतजार कर रही होगी। एक बार तो आधे घंटे की मूवी तक छोड़ दी हमने। बाहर डिनर करने के बारे में तो मैं सोच भी नहीं सकती। बाहर जाओ तो यूँ लगता है कोई तलवार सिर पर लटक रही है।"

"?????"

"मां आज आपको वही व्यवहार करते देखा तो ! मां, भैया-भाभी की शादी को कुछ ही दिन हुए हैं उन्हें उनकी जिंदगी जीने दो। धीरे-धीरे जिम्मेदारियां सिर पर आ जाती है तो सब वैसे ही छूट जाता है बस एक कसक रह जाती है मन में !"

"जा खाना ले आ मेरी दादी मां ! मेरे चक्कर में तू भी भूखी बैठी है !" माँ ने अश्रुपूर्ण आँखों से टिन्नी के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा।


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