मीठा मीठा दर्द
मीठा मीठा दर्द
मीठा मीठा दर्द जिगर में जब तब अब भी उभरता है जब उसकी याद आती है। उसे नाम देकर बदनाम नहीं कर सकता और,अब तो वह भी नाती पोतियों वाली बन चुकी होगी।लेकिन.. लेकिन क्या उसके ज़ेहन में उसके यौवन की तितलियां याद आती होंगी ? याद आती होंगी यूनिवर्सिटी का वह गलियारा जिसे लव लेन के रुप में जाना जाता था ?
याद आती होगी हर वह शाम जब मैं टकटकी लगाये उसे यूनिवर्सिटी से जाते समय निहार लिया करता था ?
नहीं, बिल्कुल नहीं क्योंकि अगर याद आती तो जाने कब का वह उसे सोशल मीडिया के इस अन्तर्जाल की अब तक शोभा बना चुकी होती !
अरे अब वह मोटी थुलथुली देह लेकर अपने पति की जेबें हल्की कर रही होंगी, मुहल्ले की समवयस्कों के साथ इसकी, उसकी चर्चे कर रही होगी। प्रेम का शुद्ध स्वरूप कब का बिस्तर पर पड़े फूल की तरह मसला जा चुका होगा। देह और प्रेम का सारा रिश्ता गड़मगड़ हो चला होगा।
लेकिन मैं ही क्यों अब तक उसको अपने दिल अपनी कहानी, अपनी कविता का बिन्दु बनाये रखे हूं, समझ में नहीं आ रहा है। क्यों नहीं झटक दे रहा हूं अपनी ज़ुल्फ़ों से इन बेवज़ह की यादों को ? हर कोई पत्थर हीरा नहीं होता, हीरा बनता है उसको जब तराशा जाय !
तराशने का हुनर या तो कुछ ख़ास कारीगर जानते हैं या फिर मुझ जैसे आशिक..फरहाद..मजनूं..
उस दिन मेरे मित्र ने ठीक ही कहा था कि तुम एक लेखक हो, कवि हृदय हो और तुममें जो भावनाएं हैं वे अब ग्लोबल मार्केट के उन शेयर की तरह हैं जो लगातार गिरते ही चले जा रहे हैं। तुम भी अब उबर लो अपनी इस वृत्ति से। यूज एंड थ्रो का शिकार हो चला है अब प्यार। प्यार का मक़सद अब शरीर पाना रह चला है। भूल जा अपने अतीत को..अतीत के प्यार को..भूल जा !
और मैं अब अपने को किंकर्तव्यविमूढ़ पाकर प्रेम नगर के किसी अनजान चौराहे पर खड़ा पा रहा हूं ! आप मेरी मदद कर सकेंगे ?

