मिड डे मील

मिड डे मील

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रोज की तरह आज भी शाला में प्रार्थना हुई उसके बाद सभी बच्चे अपनी अपनी कक्षा में चले गए।  

गांव का स्कूल है, बच्चों की संख्या हर कक्षा में बहुत ज्यादा है, पहले नही थी, जब से स्कूल में मिड डे मील का नियम सरकार द्वारा चालू किया गया है तब से पढ़ने वालों की संख्या में भी इजाफ़ा हुआ है।

जाहिर है, अधिकांश बच्चे खाने के लालच में भी स्कूल आने लगे हैं। कुछ लोग तो अपने सभी बच्चों को (जो पढ़ना भी नही जानते )स्कूल भेज देते हैं पर सरकारी नियम का हवाला देकर हम उन्हें वापिस भी भेज देते हैं। गांव के लोगों का मानना है कि बच्चे कम से कम एक समय तो स्कूल में खा लेंगे, जिससे उनकी परेशानी भी कम होगी।

अभी बच्चे मेरी कक्षा में पहुचे ही थे की चपरासी एक नोटिस लेकर आ गया, मैंने बच्चों से कहा सब मैदान में इकठ्ठा हो।

मैदान में सबके इकट्ठा होने पर प्राचार्य ने सूचना दी कि शहर में एक नेताजी का निधन हो गया है, दो मिनट के मौन के बाद छुट्टी की घोषणा हो गई।

सारे बच्चे खुशी से चीखते अपने बस्ते सम्हालते स्कूल से बाहर भागे। चंद मिनटों में स्कूल खाली हो गया सिवा दो बच्चों के।

मैंने उनके पास जाकर पूछा -"बेटा तुम लोग घर क्यों नहीं गए, जाओ आज छुट्टी है। पर फिर भी वे खड़े रहे।

मैंने कहा -"क्या हुआ, जाते क्यों नहीं। "

तब एक ने कहा -"सर नेताजी तो शहर में मरे हैं छुट्टी यहाँ क्यों कर रहे हैं, छुट्टी हो जाएगी तो आज हमको खाना भी नही मिलेगा, हम क्या खाएंगे। "

मैं उनका बेबस निराश चेहरा देखता रह गया। ज़िन्दगी का यह भी एक रूप मेरे सामने था।


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