sonal johari

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4.3  

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महिषासुर मर्दिनी

महिषासुर मर्दिनी

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जब भी हम बलात्कार पर लिखी कहानी पढ़ते या सुनते हैं हमारा मन घृणा, विषाद और दुख से भर जाता है, इसलिये मैंने 'महिषासुरमर्दिनी ' लिखी, जो साहस से लबरेज है..कहानी पूरी तरह से एक सुखद कल्पना पर आधारित है, और इसमें प्रयोग किये गए नाम, घटना, जगह का नाम (जगह का जाना पहचाना नाम इसलिए लिया ताकि ये कहानी धरातल पर लगे ) कहानी की घटना बस कल्पना मात्र है ..कहानी के सर्वाधिकार सुरक्षित


वो गहरी नींद में सो रही थी, कि किसी की उंगलियां अपने शर्ट पर महसूस की, अब हाथ उसके सीने पर आ गये थे...वितृष्णा सी हुई उसे, एक घिनौना एहसास... उसने अपनी आँखें खोल दी, सामने उनका चेहरा देख वो सकते में आ गयी घबराकर इतना ही बोल पायी.."नरेश..काका.." नरेश काका उसके पिता के नजदीकी रिश्तेदार थे, पिता के छोटे भाई...सब कुछ देखने के बाद भी उसे यकीन नहीं हो रहा था जो उसने अभी अभी अनुभव किया था, वो जार-जार रोये जा रही थी..उसका रोना देख नरेश काका ने हथेली उसके मुंह पर रख चुप कराया

तो हड़बड़ाहट में उसके हाथ से बेड के किनारे रखा जग गिर गया..जिसका शोर सुन बिमला ने उसे आवाज लगा दी ...और नरेश काका उसे आंखें दिखाते हुए उँगली के इशारे से चुप रहने और कुछ ना बताने के लिए धमकाते हुए वहाँ से चलते बनें..


उसकी नींद टूट गयी और वो घबराकर उठ कर बैठ गयी..पसीने से उसका चेहरा भीग गया था, हकीकत में हुई ये घटना उसे आज भी अक्सर सोते से उठा देती है, उसकी नजर दरवाजे पर गयी, वो अपने बिस्तर से उठ कर कमरे के दरवाजे तक गयी और देखा कि सच में दरवाजा बंद है या नहीं..बन्द था ये जानकर उसे तसल्ली हुई, जब उसके साथ ये घटना हुई मुश्किल से नौ या दस साल की रही हुई होगी और आज जब वो सत्ताइस साल की हो गयी है.. पी.एच.डी.की स्टूडेंट है...ये घटना उसके जेहन से अब भी निकल नहीं रही है..अपनी माँ को भी ये बताने में उसने कई दिन लगा दिए थे....बिमला ने जब सुना तो सकते में आ गयी थीं..

"तभी क्यों नहीं बताया तूने"? वो चिल्ला कर बोलीं 

लेकिन बदले में वो बस्स रोने लगी, .."दब्बू..बेवकूफ़ लड़की (गुस्से और खीज़ में एक तमाचा जड़ते हुए) ...हद्द है ..कमीना नरेश इस 45 साल की उम्र में जरा सी बच्ची पर गलत निगाहें रख रहा है ..इसका तो मुझे भान तक ना हुआ..सो भी मेरे घर में रहकर, मेरे ही हाथ का बना खाकर...(फिर उसकी ओर देखकर) कुछ और तो नहीं किया ना?"

उसके 'ना ' में सिर हिलाते ही बिमला बोलीं "भूल जा सब..अब से ध्यान रखूँगी कि तेरे कमरे का दरवाजा कभी भी ना खुले रहे..और हाँ..किसी से कुछ कहने की जरूरत नहीं इस बारे में..खामख्वाह बातें बनेंगी बस्स..(फिर मैं खुद में बुदबुदाते हुए) लड़की वाली बात है..जा टी वी देख जाकर भूल जा, जो भी हुआ..और आगे से खबरदार जो कुछ छिपाया ....सब बताएगी तू मुझे समझी"

"हां " में सिर हिलाती हुई वो वहाँ से उठकर टी.वी. खोलकर उसके सामने बैठ गयी थी..

मां ने कह तो दिया कि भूल जा ..लेकिन वो भूली कभी नहीं कुछ..हां लेकिन उस दिन के बाद से बिमला इतना डर गयीं कि चाहे कितना भी नजदीकी रिश्तेदार ही क्यों ना आया हो घर पर.. क्या मजाल जो उसके कमरे का दरवाजा कभी खुला रह गया हो ..और जब कोई नहीं आता तब जरूर बिमला उसका दरवाजा खुला रहने देतीं..लेकिन वो तब भी बन्द रखती ..डर जो बैठ गया था उसके मन में...वो तो रात तक में उठ उठ कर अपना दरवाजा देखती ..खैर उसके बाद नरेश काका कभी घर नहीं आये..क्या हुआ क्या कहा गया उनसे, उसे ना तो बिमला ने बताया ना उसने जानने की कोशिश की कभी...लेकिन जब जब ये घटना याद आती है या उसे सपने में इससे मिलती-जुलती कोई घटना दिखती है तो उसका मन घोर अंधेरे में डूब जाता है....और सुकून खो जाता है....उसने घड़ी में समय देखा तो बस्स रात के 11:30 बज रहे थे..

बेड के पास रखा पानी का जग उसने उठाया और गिलास में पानी उड़ेला ही था पीने के लिए..कि

'धड़..धड़..धड़...की तेज़ आवाज के साथ ही बिमला की आवाज आई "मेघा...ओ मेघा..जल्दी दरवाजा खोल"

उसने लपककर दरवाजा खोला और घबराई हुई बिमला से पूछा "क्या हुआ माँ.."

"तेरे पापा का ब्लड प्रेशर फिर बहुत बढ़ गया है"

"अररे तो वही टैबलेट खिला दो ना माँ" वो कमरे से बाहर निकलते हुए बोली

"क्या करूँ इस पागल दिमाग का अभी दो दिन पहले ही उनकी दवा खत्म हुई..सोचा मंगा लूँगी लेकिन बिल्कुल याद नहीं रहा..." वो माथे पर अपना हाथ मारते हुए बोलीं

"अररे..परेशान मत होइए अच्छा..(फिर रघुवीर के पास आकर ) पापा आप बस्स आराम से गहरी गहरी साँसे लीजिये... बेहद आराम से " मेघा अपने पिता को संयत करते हुए बोली जो सच में बेहद बेचैन नजर आ रहे थे..

"कैसे ना होऊ परेशान..सलिल (पड़ोसी का बेटा) होता तो ले आता ..उसको भी आज ही बाहर जाना था शहर से" वो घबराई सी अपने दोनों हाथ हिलाते हुए बोलीं...मेघा ने फ़ोन उठाकर एक मेडिकल स्टोर पर मिलाया

"हैलो..सिटी मेडिकल स्टोर"

"हेलो ..भैया एक दवा मंगानी थी..घर पर"

"नहीं मेम ...टाइम देखिये,

"भैया अर्जेंट है दवा...मैं एक्स्ट्रा पैसे दे दूँगी..आप बस्स भेज दो किसी को"

"सॉरी मैडम ..नहीं भेज सकता क्योंकि कोई लड़का नहीं है.. और ना ही मैं आ सकता हूँ" और इतना बोल उसने फोन डिस्कनेक्ट कर दिया..मेघा दूसरा नम्बर डायल करने लगी

"सरमाइन कहती हैं बड़े शहरों में किसी भी वक़्त कोई भी सामान मंगा लो, लो बोलो ..ये गाजियाबाद शहर है" बिमला घबराहट भरे स्वर में बोलीं, तब तक दूसरे मेडिकल स्टोर का फ़ोन उठ गया था..जैसे ही फ़ोन उठा मेघा ने उससे भी दवा मंगाने को बोला लेकिन उसने भी ये बोल कर कि

"माफ कीजिये मैडम, इस वक़्त तो घर पर दवा भेजना सम्भव नहीं"

"भैया, एक्स्ट्रा पैसे दे देंगे हम.."

"नहीं मैडम ..नहीं भेज सकते हम"

"भैया हम हजार रुपये दे देंगे एक्स्ट्रा, आप भेज दो प्लीज़ बहुत अर्जेंट है" मेघा खीझती हुई बोली, हजार रुपये की बात सुनकर बिमला ने अपने मुंह पर हाथ रख लिया और उनके मुँह से "हें भगवान हजार रुपये " निकल गया...

खीज़ कर मेघा ने फोन पटक दिया

"अरे वो इंटरनेट पर मंगवा लेते हैं ना..उसी से मंगवा ना " बिमला ने मेघा से कहा

"नहीं माँ..वो भी इतनी जल्दी दवा नहीं भेजेंगे"

"अब क्या होगा" बिमला रुआंसी सी हो आयीं

"घबराइए मत माँ..मैं लेकर आती हूँ दवा "वो अपनी स्कूटी की चाभी उठाते हुए बोली

"बिल्कुल नहीं..आधी रात को मैं तुझे घर से बाहर नहीं जाने दूँगी" वो सख्त आवाज में बोली

"तो क्या करोगी खुद जाओगी?..पंद्रह मिनट तो गली से बाहर निकलने में ही लग जाएंगे आपको..तब जाकर रिक्शा मिलेगा और उसका भी कोई भरोसा नहीं ..क्योंकि बारह बजने को हैं...मैं स्कूटी से जाकर अभी ले आती हूँ" मेघा उन्हें समझाते हुए बोली

"बिमला..बिमला..जल्दी से पानी दो मुझे" रघुवीर ने अंदर से हाँफते हुए आवाज दी तो बिमला कमरे की तरफ तेज़ी से मुड़ गयीं और उनके हटते ही मेघा घर के बाहर ..स्कूटी की आवाज से बिमला दौड़ते हुए बाहर आई "मेघा...मेघा ..मत जा बेटा ..(फिर भुनभुनाते हुए ) ये लड़की भी ना ...निकल गयी है मेरे हाथ से..मजाल है कुछ सुन ले..इतनी रात हो गयी है ..हे देवी माँ रक्षा करना ..रक्षा करना"

ऊपर की ओर देखकर उन्होंने हाथ जोड़े और दरवाजा बंद कर लिया..और बारी -बारी से रघुवीर , देवी माँ की तस्वीर और घर का दरवाजा देखने लगीं..कुछ समंझ नहीं आ रहा था उन्हें

"क्या हुआ.."रघुवीर ने हाँफते हुए पूछा 

"क्या कहूँ..इतनी रात है..ऊपर से लड़की का व्रत है..डर की तो कोई बात नहीं है बड़ी चहल पहल रहती है रात भर" वो घबराहट छिपाने की कोशिश करती हुई बोली तो रघुवीर ने हाथ का इशारा कर उन्हें शांत रहने को कहा

"हाँ ..हॉं शांत हूँ..बस्स घर आ जाये जल्दी मेघा" यूँ ही रघुवीर का सिर दबाते हुए वो एक बार दरवाजा देखती दूसरी बार देवी माँ की तस्वीर फिर रघुवीर का चेहरा....


मेघा लगभग बीस से पच्चीस मिनट में मेडिकल स्टोर पहुंची दवा ली और वापस लौट पड़ी..लगभग पांच मिनट बाद उसने ध्यान दिया कि एक बाइक उसका पीछा कर रही है..उसने अपनी स्कूटी के स्पीड बढ़ा दी..तो उसका पीछा कर रही बाइक की स्पीड भी बढ़ गयी..मेघा ने तिरछी नजर से देखा तो दो लड़के बाइक पर थे और हँस कर उस पर फब्तियां कसने लगे थे...

उसने अपना आत्मविश्वास बनाये रखने के लिए उन्हें अनदेखा कर स्कूटी की थोड़ी सी स्पीड और बढ़ा दी. ..मुश्किल से दो मिनट और बीते होंगे कि बाइक से एक टक्कर उसकी स्कूटी में लगी ..बैलेंस ठीक से ना संभाल पाने की वजह से वो स्कूटी समेत गिर गयी

"अररे.. माफ करना मैडम गलती हो गयी, क्या यार ठीक से चलाया कर ना ..देखो तो इतनी सुंदर लड़की जमीन पर अच्छी लगती है क्या" ? इतना बोल वो लड़का गंदी सी हँसी हँसा

"सही कहा यार..इतनी सुंदर लड़की को तो हमारी बांहों में होना चाहिए..नयी.." दूसरा लड़का भी हँसते हुए बोला..

गुस्सा तो मेघा को इतना आया कि दो दो तमाचे जमा दे दोनों को. .. लेकिन वक़्त और हालात को देखते हुए वो चुपचाप उठी और अपनी स्कूटी स्टार्ट करने लगी...लेकिन पलक झपकते ही उसने अपने मुंह पर उस लड़के का हाथ महसूस किया मेघा ने उसके हाथ पर पूरी ताकत से काट लिया..उस लड़के के मुंह से 'आहह ' निकली और जब तक वो कुछ समझ पाता मेघा ने उसे एक तमाचा और जड़ दिया..

इतने में उस दूसरे लड़के ने एक तेज़ तमाचा मेघा को मार दिया और जब तक वो संभलती.. उस लड़के ने उसे जबरदस्ती बाइक के बीच में बैठा कर मेघा के दो -तीन तमाचे और मार दिए ..और हथेली से कस कर उसका मुंह बन्द कर दिया ..इतने में आगे बैठे लड़के ने बाइक स्टार्ट कर दी....

.....और कुछ मिनट की दूरी तय करने के बाद अब वो मिट्टी के बने छोटे से कमरे में बदबू मारते एक गद्दे पर पड़ी थी..अजीब पीली रोशनी का एक बल्ब जल रहा था..मेघा की नजर जब सामने गयी तो आश्चर्य से उसके मुँह से 'बिज्जू' निकल गया..(बिज्जू पूरा नाम वृजनाथ घर के पास ही सब्जी की दुकान लगाने वाला)

और जब नजर दूसरे लड़के पर गयी तो जो एक आवारा लड़का था, जिसे वो शक्ल से पहचानती थी..वो अक्सर बिज्जू के साथ ही रहता था..उसने विज्जु को कई बार उससे बात करते देखा और सुना था, इसीलिए उसका नाम जानती थी..

' बन्टू ..तू'...वो उठ कर खड़ी हो गयी "तुम दोनों को शर्म नहीं आती..जाने दो मुझे वरना बहुत बुरा होगा तुम्हारे साथ" मेघा बड़ी हिम्मत से बोल तो गयी लेकिन अंदर ही अंदर डर से काँप रही थी..

आने वाले अनिष्ट की आशंका के चलते उसका दिमाग लगातार उसे आने वाली विपदा के परिणाम तक की तस्वीरें दिखा रहा था....रोती हुई वो, उसकी माँ, गम में डूबे उसके पिता या शायद उनकी शर्म से मृत्यु..कोर्ट में बेइज़्ज़त करने वाले प्रश्न ..और ..और ...दीपक से विछोह .. जिसके लिए उसके मन में बेहिसाब प्यार है और जिसका जिक्र भी नहीं कर पाई है वो अब तक...नहीं ..कुछ नहीं होने देगी वो खुद को..

'चटाक' की आवाज के साथ मेघा के मुँह पर फिर चांटा मारा था विज्जु ने, .."साली.. मुझे थप्पड़ कैसे मारा तूने"..वो मेघा को धक्का देते हुए बोला...

इतने में बंटू ने शराब की एक बदबूदार बोतल खोल कर गटकना शुरू कर दिया था..धक्का देने से जमीन पर गिरी मेघा अब थर -थर काँप रही थी.....अब बन्टू ने उसके सामने आकर उसके बाल झकझोरते हुए कहा,

"चांटा मारेगी तू? ..पहचानेगी हमें.ऐं?..हम तुझे खुद को भी पहचानने लायक नहीं छोड़ेंगे "...और वो भद्दी सी हँसी हँसा

अब विज्जु दरवाजे पर कुंडी लगा शराब पीने लगा था...अब मेघा मन ही मन हताश होकर हार स्वीकार कर चुकी थी... इधर उधर देखती हुई मेघा की नजर पास ही पड़े हरे चारे पर चली गई जिसके नीचे हँसिया रखा था...उसकी माँ विमला की कही बात उसके दिमाग में कौंध गयी..

" सब्जी मशीन से ना काट पाने का बड़ा मजाक बनाती है ना तू मेघा...पता है तुझे मेरे गाँव की एक मासूम सी दिखने वाली औरत ने इसी हँसिया की बदौलत एक खूँखार भेड़िये से ना सिर्फ अपने बच्चे के प्राण बचाये थे बल्कि खुद की जान भी बचा ली...यहाँ तक कि देवी माँ का भी एक अस्त्र है हँसिया..बेटा"

एक उत्साह की तेज बिजली मानो उसके सिर से हाथों तक दौड़ गयी हो...बन्टू ठीक उसके सामने खड़ा था और उसके मुँह पर कपड़ा बाँध रहा था ताकि वो चीखे भी तो उसकी आवाज ना गूँजे....मेघा ने बिजली की चपलता से चारे के नीचे रखा हँसिया निकाला और चीखीं "मदद करो माँ" और पूरी ताकत से उसने बन्टू के दोनों टाँगों के बीच हँसिया चला दिया, एक 'फच्च ' की आवाज और खून की धार के साथ उसका गुप्तांक कट कर दूर जा गिरा...

बन्टू "आहह" की एक तेज़ आवाज के साथ जमीन पर गिर कर तड़पने लगा..मेघा ने अपनी सुलगती निगाहों से विज्जू की ओर देखा जिसकी आंखें भय से फट गई थी..वो उसकी ओर हँसिया थामे "रेप करना है ना तुझे.." बोलती हुई वो उसकी ओर लपकी और वो " अरे ..माफ कर दे मुझे ...माफ कर दे" बोलते हुए भाग खड़ा हुआ.....मेघा बन्टू को देखकर बोली " बचपन के उस हादसे के बाद वादा किया था मैंने खुद से ..कि फिर कभी भी ..खुद को इस घिनौने दुख का एहसास नहीं होने दूँगी" 

बन्टू ने अपने काँपते हाथ उसके आगे जोड़े ..और बेहोश हो गया ...वो जाने को मुड़ी.. फिर जैसे कुछ दिमाग में आया उसके, वहीं पड़ा उसने वो कपड़ा उठाया जिससे बन्टू उसका मुँह बन्द कर रहा था...उसने बन्टू के दोनों पैरों को कसकर बाँधा और घसीटते हुए उसे बाहर सड़क तक ली आयी...फिर कुछ मिनट की दूरी पर पड़ी अपनी स्कूटी तक खींच लाई..और पीछे वाली सीट पर उसने उस कपड़े का एक छोर बांध दिया फिर स्कूटी स्टार्ट कर दी ..अब बंटू मेघा की स्कूटी की पिछली सीट से बंधा सड़क पर खिंचते हुए जा रहा था...मेघा ने अपनी स्कूटी पुलिस स्टेशन में ले जाकर रोकी...और तेज़ी से हॉर्न बजाया तो

....इंस्पेक्टर सोते से उछल गया, और बाहर की ओर आते हुए उसे और उसके पीछे बंधे बन्टू को देख कर बोला ..."ईयू.. क्या ...क्या है और ये.कौन है .."? वो चौंकते हुए बोला

"ये ..ये वो जानवर है जिसने मेरे साथ बलात्कार की कोशिश की.." वो गुस्से में तमतमाते हुए बोली..

"(आंखें फाड़े ) बहुत बढ़िया...शाबाश ..आओ अंदर आकर रिपोर्ट लिखाओ...(फिर सिपाही की ओर देखकर) भरोसे ..जरा इस आदमी को पकड़कर अंदर तो लाओ " वो अंदर की ओर मुड़ते हुए बोला..कि भरोसे चीख पड़ा..."सर इसके खून बह रहा है.." भरोसे ने बन्टू को पीठ के बल पलटते हुए कहा

"..सजा दी है मैंने इसे...ऐसी सजा ..कि ये बलात्कार करना तो दूर ...बलात्कार की सोचेगा भी तो इसकी रूह कांपेंगी.."

वो शून्य में देख खिसियानी मुस्कुराहट के साथ बोली 

इंस्पेक्टर भाग कर बन्टू के पास तक आया और उसे बन्टू की हालत जानते देर ना लगी..उसने भरोसे को हॉस्पिटल फोन करने के लिए कहा और अनगनित प्रश्न की निग़ाहों के साथ मेघा की ओर देखा..

"रिपोर्ट लिखाने नहीं आयी हूँ मैं इंस्पेक्टर...सीधे सुबूत देने आयी हूँ, "

"सुबूत .."?

"हाँ..सुबूत..बस्स होश में आने की देर है..ये लड़का खुद चीख-चीख कर अपना जुर्म भी कुबूल करेगा...और रिपोर्ट भी लिखायेगा...इतने पर भी आप कुछ ना कर सके ..तो समझ जाना..कि कानून तो कानून ..इंसानियत भी मर चुकी है " उसने स्कूटी मोड़ते हुए कहा

"हम्म..बेटी ..नाम जान सकता हूँ तुम्हारा"? इंस्पेक्टर ने प्रभावित होकर पूछा

"सर ..महिसासुर को मारने वाली देवी है ये ..साक्षात देवी " पास ही खड़े भरोसे बड़े शान्त स्वर में प्रभावित होकर कहा

"ऐसे जानवरों को मारने के लिए हमें देवी की नहीं ...देवी की शक्ति और मदद की जरूरत है बस्स... मेघा नाम है मेरा सामान्य लड़की हूँ मैं"

स्कूटी स्टार्ट कर वो पुलिस स्टेशन से निकल कर सड़क पर आ गयी थी ..और बेखौफ....उत्साह और ताकत से लबरेज ......दवा लेकर अपने घर की ओर जा रही थी....


समाप्त

हो सकता है आप लोगों के मन मे कुछ प्रश्न आ रहे हों..जैसे .."बन्टू ने अपना जुर्म कुबूल किया या नही?,

आगे क्या हुआ ? आदि..आगे जो भी हो, मेघा ने जो कर दिया है उसके आगे ..महत्वहीन ही होगा .. .इसीलिए मैं इन प्रश्नों के जवाब आप पर छोड़ती हूँ.. ..

बहुत धन्यवाद आप सभी का .



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