महामारी की विभीषिका और टूटते रिश्ते
महामारी की विभीषिका और टूटते रिश्ते
आज मैं आपको एक ऐसी कहानी सुना रहा हूं जो वास्तविक घटनाओं पर आधारित है तथा वर्तमान में भी प्रासंगिक है एक गांव में एक परिवार रह रहा था उसमें पति, पत्नी और उनके दो बेटे थे वह परिवार अच्छा खाता पीता परिवार था उनके संबंध सभी से अच्छे थे तथा उनकी जान पहचान न केवल आसपास बल्कि दूर दूर तक थी, तथा एक बार उन्होंने ग्राम प्रधान का चुनाव भी लड़ा व वह जीत गए। उनके दोनों बेटे पढ़ने में अच्छे थे दोनों ने अच्छी पढ़ाई की एक अफसर बनकर शहर में चला गया दूसरे ने अपना व्यवसाय गांव में ही शुरू किया, संबंधों के कारण यह व्यवसाय भी अच्छा चल गया तथा यह परिवार समृद्ध जीवन जीने लगा और उनकी ख्याति बढ़ने लगी, उन्हें लगा की हमारे अपने बहुत लोग है और यह सब हमारे काम आ सकते है इसी घमंड में यह परिवार जीने लगा। एक बार देश में एक महामारी आई लोग उससे पीड़ित होने लगे यह महामारी एक से दूसरे को फैलती थी सभी को पता चल गया कि इसके फैलने का डर है लेकिन इस परिवार को अभी भी लगता था कि मेरे साथ अनेक लोग है मुझे कभी कुछ नहीं होगा। यह बीमारी गांव में भी फैलने लगी इस परिवार ने सभी की सहायता की इस समय देखा गया कि लोग एक दूसरे के पास जाने से भी बचने लगे सामाजिक रिश्ते टूटने लगे। एक दिन इस परिवार के मुखिया भी इस बीमारी से पीड़ित हो गए उन्होंने अपनी जांच कराई तो वह इस बीमारी से पीड़ित पाए गए, उन्होंने स्वयं को सरकारी अस्पताल में भर्ती करा दिया उन्होंने देखा कि उनके परिवार का कोई भी व्यक्ति उनके पास नहीं था जिनके लिए उन्होंने कार्य किया कमाया वह बीमारी फैलने के डर से उन्हें अस्पताल में लावारिस छोड़कर घर आ गए, उनके साथ अब कोई नहीं था वह डॉक्टर व नर्स के सहारे थे उन्हें आज पता चला कि उनके अपने केवल अच्छे दिनों के थे बुरे समय में सबने साथ छोड़ दिया अफसर बेटा तो पूछने से भी डरने लगा, कहीं पापा मिलने न बुला ले वह हमेशा छुट्टी न मिलने का बहाना बना देता। उनकी हालत बिगड़ने लगी उन्हें लगा कि कहीं मैं मर न जाऊं इसलिए वह अपने परिवार से मिलना चाहते थे, उन्होंने यह सूचना सभी को भेजी लेकिन न तो उनके दोनों बेटे ओर न ही उनकी पत्नी मिलने पहुंची। उनका कोई भी शुभचिंतक मिलने नहीं पहुंचा उन्होंने देखा की उनकी सेवा घरवाले और शुभ चिंतकों द्वारा नहीं की जा रही है बल्कि देवदूत बने डॉक्टर व नर्स कर रहे है। उस दिन उन्हें पता चला कि संबंध केवल अच्छे समय के लिए ही होते है बुरे समय में तो सभी साथ छोड़ देते है। उन्होंने अब महसूस किया कि यह दुनिया मतलब की है कोई अपना नहीं है। उन्होंने जो अकेलापन महसूस किया उससे उनका दिल टूट गया जीने की इच्छा खत्म हो गई उनकी बीमारी बढ़ती गई परिवार के लोगों ने बीमारी के डर से उनके पास जाना भी ठीक नहीं समझा। उनकी स्थिति बिगड़ती गई तथा एक दिन उनकी मृत्यु हो गई उनकी मृत्यु की सूचना भी परिवार को दी गई लेकिन वह उनकी डेड बॉडी को भी लेने नहीं पहुंचे, तो अस्पताल के डॉक्टर आदि ने ही उनका अंतिम संस्कार कर दिया सभी जगह इसकी चर्चा हुई लोगों ने कहा की जिनके लिए उन्होंने पूरे जीवन कार्य किया उन्होंने उनका अंतिम संस्कार तक नहीं किया, यही एक कड़वी सच्चाई है कि सभी व्यक्ति अच्छे वक्त के साथी होते है बुरे वक्त में सब साथ छोड़ जाते है यही इस व्यक्ति के साथ हुआ। इस कहानी को बताने का केवल यही कारण है कि हमें अपने परिवार को कमाकर अंधाधुंध पैसा नहीं बल्कि संस्कार देने चाहिए ताकि वह संबंधों की उपयोगिता जान सके संबंधों की निभा सके बुरे वक्त में साथ दे सके।
