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VIPIN KUMAR TYAGI

Inspirational

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VIPIN KUMAR TYAGI

Inspirational

मित्र भी परिवार का सदस्य होता

मित्र भी परिवार का सदस्य होता

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एक शहर में एक परिवार रहता था माता, पिता ,भाई ,बहन व दादा-दादी रहते थे उस परिवार के बेटे का नाम मोहन था बहन का नाम पिंकी, पापा का नाम रमेश, मम्मी का नाम प्रियंका, दादा का नाम सुरेश व दादी का नाम रोशनी था मोहन के दोस्त का नाम रोहन था दोनों का घर पास पास था दोनों बचपन के ही दोस्त थे दोनों में दोस्ती इतनी गहरी थी कि दोनों हमेशा साथ साथ ही रहते थे तथा साथ साथ ही खेलते थे यह दोनों मध्यम वर्गीय परिवार थे तथा मोहन और रोहन ने पास के ही स्कूल में अपनी पढ़ाई शुरू की दोनों साथ-साथ स्कूल जाते थे साथ साथ पढ़ाई करते थे वह साथ ही साथ घर आते थे।  वह दोनों साथ ही अपना होमवर्क पूरा करते थे साथ ही पढ़ाई करते और साथ ही खेलने जाते थे।  मोहन और रोहन दोनों पढ़ाई में होशियार थे तथा दोनों में अपनी कक्षा में प्रथम आने की होड़ लगी रहती थी लेकिन दोनों एक दूसरे के साथ ही बैठ कर पढ़ाई करते थे और दोनों की कोशिश रहती थी कि एक दूसरे का सहयोग करें।  दोनों में कभी भी प्रतिद्वंद्विता नहीं आई दोनों खेल में भी अच्छे थे तथा एक दूसरे को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते थे।  दोनों खेल में भी आगे पीछे ही रहते थे कभी मोहन प्रथम आता कभी रोहन प्रथम आता है लेकिन दोनों में कभी भी लड़ाई नहीं होती थी।  मोहन के मम्मी पापा रोहन को अपने बेटे की तरह ही रखते थे तथा वह भी उस परिवार में घुल मिलकर ऐसे ही रहता जैसे वह उसी परिवार का सदस्य हो।  मोहन के मम्मी पापा दादा दादी भी यह मानते थे कि उनका एक नहीं दो पुत्र मोहन और रोहन हैं इसलिए रोहन का अधिकांश समय मोहन के घर पर ही बीतता।  मोहन की छोटी बहन भी अब बड़ी होने लगी थी बहन भी उसी स्कूल में पढ़ने जाने लगी वह भी पढ़ाई में तेज थी वह भी उन दोनों की ही तरह अच्छा प्रदर्शन करती थी उसकी पढ़ाई का प्रदर्शन भी बहुत अच्छा था।  मोहन और रोहन पढ़ाई करते गए दोनों कक्षा 10 में आ गए दोनों ने कक्षा 10 भी प्रथम श्रेणी में पास की तथा कक्षा 11 विज्ञान में प्रवेश लिया दोनों ने कक्षा 12 भी प्रथम श्रेणी से पास की तथा दोनों का प्रवेश इंजीनियरिंग में आईआईटी में हो गया।  दोनों को एक ही आईआईटी मिली उनके परिवार के सदस्यों ने सोचा कि चलो दोनों मिलकर एक साथ ही पढ़ाई करते रहेंगे उन्होंने साथ ही साथ पढ़ाई की तथा आईआईटी से भी उन्होंने प्रथम श्रेणी में परीक्षा पास की तथा दोनों की नियुक्ति अच्छे-अच्छे पदों पर अलग-अलग शहरों में हो गई। 

दोनों ने अपना काम शुरू किया लेकिन इसी बीच मोहन को एक गंभीर बीमारी हो गई उसके कैरियर पर उस बीमारी का प्रभाव पड़ा है तथा वह परेशान रहने लगा। इस बात का पता रोहन को भी चला तथा उनके परिवार को भी चला मोहन का परिवार परेशान रहने लगा मोहन की बहन भी मोहन से बात करती थी तथा उसको सांत्वना देती थी लेकिन सभी इस बात से परेशान थे कि वह मोहन की वह कैसे सहायता करें।  रोहन भी बार-बार अपने दोस्त से बात करता था तथा अपने दोस्त को सांत्वना देता था कि वह जल्दी ही इस बीमारी से मुक्ति पा लेगा।  लेकिन यह बीमारी बढ़ती गई इसके कारण उसकी नौकरी भी छूट गई तथा वह परेशान रहने लगा उसके घर वालों ने मोहन को अपने शहर बुला लिया।  सभी ने उसको अच्छे अच्छे डॉक्टर को दिखाया तथा उसकी सहायता की उसको मानसिक रूप से तैयार किया उसको बताया कि वह जल्दी ठीक हो जाएगा।  रोहन ने भी अपनी नौकरी से छुट्टी ली तथा वह भी अपने दोस्त के पास आ गया उसने भी अपने दोस्त को अच्छे अच्छे डॉक्टर को दिखाया अच्छे हॉस्पिटल में उसका इलाज कराया।  सभी ने मिलकर उसको मानसिक रूप से प्रोत्साहित किया तथा उसको बार-बार कहा गया कि वह जल्दी ही ठीक हो जाएगा।  अब वह ठीक हो रहा है तथा जल्दी ही उसे इस बीमारी से निजात मिल जाएगी रोहन अपने दोस्त को अपने साथ अपने शहर ले गया वहां पर उसने अपने दोस्त का इलाज कराया अपने दोस्त को अपने साथ रखा।  इस प्रकार से मोहन की बीमारी भी ठीक होने लगी वह भी ठीक होने लगा तथा वह मानसिक रूप से भी स्वस्थ हो गया उसने तथा रोहन ने मिलकर फिर दूसरी नौकरी के लिए ट्राई किया तथा मोहन को नौकरी भी मिल गई उसे अच्छी नौकरी मिली बीमारी से भी ठीक हो गया परिवार ने मिलकर तथा उसके दोस्त ने मिलकर जो उसकी सहायता की उस सहायता से वह कृतज्ञ हो गया तथा उसने सोचा कि परिवार कैसे एक दूसरे की सहायता करता है।  उसने देखा उसके परिवार के लोगों ने कैसे उसे गंभीर बीमारी से निजात दिलाई उसके बाद वह अपनी नौकरी के लिए चला गया वह नौकरी करने लगा इसी बीच दोनों की शादी भी हो गई दोनों अपने अपने शहर में अपने अपने बच्चों के साथ रह रहे थे आपस में बात भी करते थे।  प्रतिदिन अपने परिवार से भी बात करते थे इस प्रकार से उनका जीवन सुख से व्यतीत होने लगा तथा दोनों अपने परिवार के सदस्यों के साथ सुखी रहने लगे।  इस कहानी को सुनाने का मतलब यह है कि यदि सभी परिवार के लोग साथ रहें सभी मिलजुल कर कार्य करें एक दूसरे का ध्यान रखें तो बाहरी व्यक्ति भी जो मित्र के रूप में होता है।  अपने परिवार का सदस्य बन जाता है परिवार के दुख सुख में वह भी साथ देता है वह भी परिवार का सदस्य बनकर अपनी भूमिका निभाता है।  इस प्रकार से इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमारे मित्र भी जो हमें समझते हैं हमारे साथ रहते हैं जो हमारे पारिवारिक दोस्त होते हैं वह भी एक परिवार के सदस्यों की तरह ही रहते हैं दुख सुख के भागी होते हैं तथा हमें सांत्वना देते हैं, मुसीबत के समय हमारा साथ देते हैं तथा हमारी मुसीबत को भी अपनी मुसीबत मान लेते हैं तथा पारिवारिक रूप से एक सदस्य के रूप में रहते हैं हम सभी को इस कहानी से सीख लेनी चाहिए।



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