Ramashankar Roy

Fantasy

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Ramashankar Roy

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मेटामॉर्फिना

मेटामॉर्फिना

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आज जब मैं ऑफिस से घर पहुंचा तो काफी थक चुका था। बिना DNA देखे ही खाना खाया और सो गया।

विस्तर पर जाते ही इतनी गहरी नींद आयी कि एक इतिहास का प्रोफेसर सपने में चलते चलते भविष्य में पच्चीसवीं सदी में पहुंच गया।

पच्चीसवीं सदी के सामाजिक संरचना और रहन सहन देखकर आश्चर्यचकित हो गया।

अबतलक पढ़ाई का तरीका बिल्कुल बदल गया है। सारे स्कूल कॉलेज virtual हो गए हैं और शिक्षक की जगह पर AI Interface वाले रोबोटिक टीचर क्लास ले रहे हैं।

परिवार का कांसेप्ट खत्म हो चुका है।अब शादी करके संतान उत्पन करना पिछड़ेपन और इकीसवीं सदी में जीने का पैमाना माना जाता है।

बच्चे On Demand और Branded मंगाए जाते थे।लोगो के पास इतना वक्त नही की बच्चा पैदा करने लिए नौ महीने इंतजार कौन करें।

पति पत्नी अपना स्पर्म और अंडा लैब में देते है और साथ मे अपनी Specifications - आँख , बाल,और चमड़े का कलर या कोई और Additional Feature Specify कर के संतान पैदा करा सकते हैं।

जिसके घर मे किचेन में खाना बनता है उसको पिछड़ा समझ जाता है। सब लोग जरूरत के हिसाब से ब्रांडेड कैलोरी पिल्स लेकर अपना खाना लेते हैं।

पुरा घर ऑटो मोड़ पर है जिसका संचालन मेटामॉरफिना करती है।मेटामॉरफिना एक AI से लैस रोबोट है जो घर का सारा काम करती है।

वह जरूरत के हिसाब से रूप भी बदल सकती है। यदि आपको बचपन के किसी दोस्त से बात करने की चाह हो तो वह आपके निर्देश पर तुरंत उस दोस्त का रूप लेकर आपके सामने उपस्थित हो जाएगी। यदि आपकी बीबी मायके गयी हो तो आपकी बीबी भी बन जाएगी - ऐसी बहुत सारी ऑप्शनल एड ऑन कॉस्ट वाली मेटामॉरफिना उपलब्ध है।

अब अनजाने व्यक्ति और विभाषाई से बात करने में कोई कठिनाई नहीं होती है। अब AI युक्त चश्मा आ गया है जिसे पहन कर आप दूसरे के दिमाग को पढ़ सकते है।

मैंने सपने में ही देखा की मेरी पत्नी मेटामॉरफिना को अपने पूराने प्रेमी में बदलकर प्रेमालाप कर रही है।

अब मनुष्य और मशीन के बीच का अंतर लगभग समाप्त हो गया है। कहीं भी आवागमन के लिए आपको ट्रेन या ऐरोप्लेन का इंतजार नही करना है। ऐसे सूट बन गए हैं जिसे पहन कर आप मन की गति से यात्रा कर सकते हैं।

फैक्ट्री मेड बचे अपने माँ बाप को तभी पहचानते हैं जब नजदीक आने पर उनका जेनेटिक कोड का टैग बीप करता है।

मैंने अपनी ही बेटा बेटी को जब प्रेमी युगल के रूप में देखा तो मुझे अपनी लाचारी और असमर्थता का भान हुआ क्योंकि मैं आखिरकार इतिहास का प्रोफेसर जो ठहरा।

मुझे इतना जोर का सदमा लगा कि मैं पसीने से लथपथ हो उठकर बैठ गया लेकिन यही सोच कर कभी भी डर जाता हूँ क्या होगा यदि सच्च में विज्ञान ने इतनी प्रगति कर ली !


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