Bindiya rani Thakur

Fantasy

4.0  

Bindiya rani Thakur

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मेरी प्यारी सखी द्रौपदी

मेरी प्यारी सखी द्रौपदी

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आज बहुत दिनों के पश्चात अपनी प्यारी सखी द्रौपदी से मिलने का सौभाग्य प्राप्त होने वाला है।मैं नेत्रा, द्रौपदी की सबसे प्रिय सखी हूँ। हमारी मित्रता भी एकदम अनोखी है वह महलों की रहने वाली राजकुमारी और मैं एक दरिद्र दासी!उसकी साज-सज्ज करते-करते कब हम सहेलियाँ बन गईं पता ही नहीं चला। 

अब भी द्रौपदी का वह रूप याद आता है जब वह आम लड़कियों की भांति महल के बाहर घूमना चाहती क्योंकि उनको हर समय महल के अंदर ही रहना पड़ता था,वह हमेशा मुझसे कहती चलो ना बाहर निकल चलें, लेकिन मैं एक मामूली सी दासी ठहरी मुझे उसकी बातें बिल्कुल समझ नहीं आती,वह बहुत सारे प्रश्न पूछती जिनके उत्तर मैं अनपढ़, अज्ञानी कैसे देती भला!

इसी मध्य मुझे एक दास से प्रेम हो गया,भास्कर नाम है उसका!आमतौर पर दास-दासियों का विवाह नहीं होता वे आजीवन ही दास का जीवन जीते हैं, मेरे और भास्कर का मिलन भी असंभव था।हम एक-दूसरे के साथ रहना चाहते थे, लेकिन किसी भी परिस्थिति में यह संभव होता प्रतीत नहीं हो रहाथा,किन्तु वह मेरी प्यारी सखी द्रौपदी ही थी जिसने हमारा विवाह करवाया और हमें आजीवन के लिए ऋणी बना दिया। विवाह के बाद हमने द्रुपद देश को छोड़ दिया और एक नए प्रदेश में रहने लगे।

आज द्रौपदी का स्वयंवर होने वाला है,मैं अपने परिवार के संग वहाँ जानेवाली हूँ, देखने का बहुत मन है कि वह किसका वरण करेगी!



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