मेरी पहली शरारत - एक संस्मरण
मेरी पहली शरारत - एक संस्मरण
बहुत पुरानी बात है ,जब मै शायद नौ साल की थी और इस छोटी -सी उम्र की छोटी -सी शरारत कभी मन को आनंद प्रदान करती है तो कभी ऐसी स्थिति उत्पन्न कर देती है जो वह जीवन के लिए सीख हो जाती है । यह मेरी शरारत कह लीजिए या आदत ,एकबार मेरी बुआ मेरे घर आई हुई थी ,उनके साथ उनकी बेटी भी आई हुई थी ,उनके आने से घर का वातावरण आनंदमय हो गया और उनकी बेटी पलक के साथ खेलना बातें करना मुझे बहुत अच्छा लग रहा था । बुआ के आ जाने से मानो आज तो कोई न हीं पढ़ने के लिए कहेगा और न पूरे दिन की बिगड़ती दिनचर्या पर कोई डांट हीं मिलेगी । दिन बीत गई बुआ के जाने का समय हो गया और मै भी न जाने कब उस खेल की दुनियाँ से निकल कर अपने उन उपहारों में खो गई जो बुआ मेरे लिए लाई थी , इसी बीच सभी पलक को ढूंढने लगे वह कहीं नही दिखाई दे रही थी ,सभी परेशान हो गए छोटी -सी बच्ची कहीं निकल तो नही गई और कोई उठा कर ले गया हो जितने मन उतनी कहानी । सहसा उन्हें ध्यान आया कि वह मेरे साथ दिनभर खेल रही थी अब क्या था सभी मेरे पास आकर बारी -बारी से पूछने लगे । पलक कहाँ है,वह कहाँ गई ,क्या
देखी हो । इसप्रकार अचानक हुए हमले से मै परेशान हो गई और मैने सिर हिलाकर नही देखा है में उत्तर दिया लेकिन होठों पर मेरी मुस्कुराहट कुछ और बयाँ कर रही थी कोई यह विश्वास नही कर पा रहा था कि मैने उसे नही देखा है । अब पूछने की प्रकिया तेज हो गई बार -बार पूछने पर वही मुस्कुराहट भरी नही उत्तर मिल रहा था । मै जहाँ जाती सभी पीछे - पीछे आ जाते उन्हें लग रहा था कि नही जाने देने की इच्छा से मैने उसे कहीं छुपा दिया है और इधर मेरी मुस्कुराहट बरकरार थी अब तो मानो इस खेल में मजा आ रहा था । कभी मै छत पर जाती तो सब पीछे -पीछे छत पर पहुँच जाते फिर दौड़ कर नीचे आ जाती सभी मेरे पीछे -पीछे नीचे आ जाते । इस खेल में समय बिता जा रहा था और बुआ की परेशानी बढ़ती जा रही थी । इन सारी गतिविधियों का क्या असर हो सकता है इससे मै अनजान थी । मुझे सिर्फ आनन्द आ रहा था । अब सब की मन की स्थिति अलग -अलग हो रही थी कोई कहने लगा कि कोई उठा कर ले गया कोई कहता नही घबराओ यहीं कहीं छुपी होगी मिल जाएगी लेकिन आशा की किरण मेरी मुस्कुराहट थी । अब बुआ की परेशानी आँखों से निकलने के लिए तैयार थी कि अचानक बाहर से किसी की आने की आवाज सुनाई दी मानो आशा की किरण ने दरवाजा खटखटाया हो सभी उधर दौड़ पड़े तो नजारा देख कर अचंभित थे । सामने फूफा जी और पलक आते हुए दिखाई दिए । बुआ ने दौड़ कर अपनी बिटिया रानी को गले लगाया और फूफा जी ने बताया की सभी अपने बातों में लगे हुए थे तो मै अपनी बिटिया को घुमाने ले कर गया था । यह सुनते हीं सभी सुकून की साँस ली और मुझे भी अपनी जीवन की पहली शरारत से पहली सीख मिली की बिना कारण मुस्कुराना भी एक अपराधी बना देता है ।
