STORYMIRROR

Arunima Thakur

Romance Tragedy

4  

Arunima Thakur

Romance Tragedy

मेरी दुल्हन

मेरी दुल्हन

7 mins
485

       सुबह सुबह फोन की घंटी बज रही थी । मैं बहुत ही प्यारे सपनों में खोया था । कौन कमबख्त मुझे सपनों के लोक से निकालना चाहता है ? मैं कान पर तकिया रखकर वापस से सो गया । क्या है ना कि फोन कट किया तो सामने वाले को पता चल जाएगा, इसीलिए यही सही लगा । कान पर तकिया रखने के बाद भी फोन की घंटी सुनाई पड़ रही थी । इतना प्यारा सपना मैं तोड़ना भी नहीं चाहता था । मैं सपने में रिचा के साथ था । रिचा . . मेरी सब कुछ । मैं कब से उसे चाहता था। 

पर वह "नहीं समीर ( मैं ) प्यार के बंधन से दोस्ती का बंधन ज्यादा अच्छा होता है । क्यों तुम मुझे सिर्फ एक दोस्त की तरह अपने जीवन में जगह नहीं दे सकते" ।

"मैं "हाँ मैं वही तो चाहता हूँ । मेरे जीवन में मेरी सबसे अच्छी दोस्त को मेरी पत्नी बनाना चाहता हूँ ।"


कई सालों से ऐसा ही चल रहा था । मजे की बात तो यह कि हमारी जाति, हमारा सामाजिक रुतबा सब सामान था । हमारे प्यार में कोई बड़ी बाधा नहीं थी। पर रिचा ही न जाने क्यों मुझे स्वीकार नहीं कर पा रही थी । मैंने भी हार नहीं मानी थी। बस नौकरी लगते ही उसकी हाँ या ना को एक किनारे रख कर उसके माँ पापा से उसका हाथ जरूर माँगूंगा ऐसा सोच रखा था। जिससे ज़िंदगी भर के लिए दिल को सुकून तो रहेगा कि मैंने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की थी।पर जरूरत ही नहीं पड़ी । अभी परसों ही रिचा का फोन आ गया "कल मेरा जन्मदिन है I मैं अपना कल का पूरा दिन तुम्हारे साथ गुजारना चाहती हूँ।"

" मेरे साथ . . . ? क्या सच . . . ? क्या भगवान ने मेरी सुन ली . . . ?" मैं खुश हो पाता, इससे पहले ही वह बोली "एक दोस्त की तरह, सिर्फ़ एक दोस्त की तरह समझे" । मैं बोला कि "तुम बोलो तो सब दोस्तों के साथ पार्टी कर डालते हैं।" वह बोली, "नहीं उसकी जरूरत नहीं है। कल का दिन सिर्फ तुम्हारे साथ । सुबह जब तुम चाहो से लेकर शाम 6:00 बजे तक । शाम को 7:00 बजे मेरे जन्मदिन की पार्टी है मेरे घर पर । सब दोस्तों को बुलाया है तुम भी आना"।


लगातार बजती घंटी से नींद आखिर टूट ही गई। रिचा के साथ का सुंदर सपना मेरे होठों पर मुस्कान और दिल में उमंग भर रहा था । मैं उठा, बगैर मोबाइल देखें, रिचा के खूबसूरत सपने को आँखों में भरें भरें ही नित्य कर्म करने लगा । नहा कर बाहर आया ही था कि माँ आकर बोली, "बेटा तेरा दोस्त संजू आया है, कुछ परेशान लगता है।" संजू . . . ? सुबह-सुबह घर पर . . . ? मैं और संजू बचपन के दोस्त और हम दोनों ही रिचा को पसंद करते हैं । मैंने पहले रिचा को बोल दिया था इसलिए संजू चुप रह गया । पर रिचा के हाँ ना कहने के कारण उसे अभी भी उम्मीद थी । वैसे भी हम दोनों की उम्मीद नौकरी पर टिकी थी। जिसकी नौकरी पहले लग जायेंगी वह जाकर रिचा के माँ पापा से बात कर लेगा। हमारी दोस्ती अजीब है ना । पर हम यह तय कर चुके थे कि जो भी फैसला हो दूसरे को खुले मन से स्वीकार करना ही होगा। मैं कपड़े डालते हुए बाहर आया। संजू मुझे देखते ही मेरे गले लग गया और रोते हुए बोला, "भाई रिचा ने खुदकुशी कर ली" । "खुदकुशी . . . ? रिचा ने. . . ? क्यों. . . ? कैसे . . .? यह सब झूठ है ना ? तू मजाक कर रहा है ना ?"

" नहीं यार सुबह से हम सब तुझे कितना फोन कर रहे हैं पर तू है कि उठा ही नहीं रहा था । चल जल्दी चल, नहीं तो कहीं ऐसा ना हो कि हमें अंतिम दर्शन भी ना मिले।" अंतिम दर्शन, खुदकुशी मेरा दिमाग कुछ काम ही नहीं कर रहा था।


जिन हाथों का एहसास मेरे हाथों में अब तक है। वह हाथ मुझे छोड़ कर चले गए हैं, मैं ऐसे कैसे मान लूं । कल सुबह ही तो नौ बजे में मैं उसके घर पहुंच गया था । वह तैयार ही थी । मेरे पसंदीदा नीले रंग के सलवार कुर्ते में , आधे बालों का ऊपर ऊँचा जूड़ा आधे बालों को खुला छोड़ रखा था । गले और कानों में काली मोती के गहने, माथे पर काली बिंदी मानो नजर से बचने के लिए नजर का टीका था (हाँ फिर भी शायद मेरी नजर उसे लग ही गई )। हम दोनों हमारी बाइक पर बैठकर निकल पड़े । कॉफी कैफे से शुरू करके पिक्चर, पार्क, मॉल सब जगह बच्चों सी जिद करके वह घूमी । मॉल में हमने शॉपिंग (खरीददारी) भी की । वास्तव में तो उसने अपने लिए कोई शॉपिंग नहीं की थी। उसने तो मेरे लिए एक जैकेट खरीदा था और बोला, "इसे जब भी पहनना मुझे याद करना। और मैंने कहा था मैं चाहता हूँ हर बार इसे तुम ही मुझे पहनाओं। मुझे जैकेट पहनने में मदद करते करते उसके हाथ थम से गए थे (क्या उसे मालूम था कि वह कुछ ऐसा करने वाली है) I बाद में उसके बहुत ना बोलने पर भी मैंने उसके लिए एक नारंगी स्लेटी रंग का बहुत खूबसूरत एक गाउन खरीदवाया था। पहले तो वह खरीदने को ही तैयार नहीं हो रही थी । फिर पता नहीं उसे क्या हुआ उसने उससे मैचिंग गहने, चूड़िया, कंगन, बिंदी सब खरीद लिए । मैंने कहा चप्पल भी ले लो । तो वह मुस्कुराई और बोली नहीं चप्पल की जरूरत नहीं पड़ेगी (मैंने क्यों उसकी बातों का अर्थ समझने की कोशिश नहीं की)। 


शाम को जब हम शहर से थोड़ा बाहर पहाड़ की चोटी पर जाकर सूर्यास्त देखना चाहते थे तो उसने ही कहा था लवर्स प्वाइंट पर चलते हैं । मैंने जब अर्थ पूर्ण निगाहों से उसकी ओर देखा तो वह मुझे मारती हुई बोली "ज्यादा खुश मत हो बस वहाँ कोई हमें परेशान नहीं करेगा और मैं अपने जीवन की यह शाम इस दुनिया की आखिरी शाम मैं यादगार बनाना चाहती हूँ।" मैंने बोला "ए मैडम हम लवर्स पॉइंट पर जा रहे हैं, सुसाइड पॉइंट पर नहीं।" तो वह हौले से मुस्कुरा दी । फिर लवर्स प्वाइंट पर मेरे कंधे पर सिर टिका कर मेरे हाथों को अपने हाथों में लेकर वह चुपचाप सूर्य को अस्त होते हुए देख रही थी। अचानक से बोली "कितना आसान होता है ना यू आहिस्ते से अस्त हो जाना बिना किसी दर्द या तनाव के।" मैं उसकी बातें कहाँ सुन रहा था ? मैं तो सूरज की किरणों से चमकती उसकी खूबसूरती को अपनी पलकों में कैद कर रहा था । आँखों से उसके रूप को पी रहा था । उसकी खामोश धड़कनों को सुन रहा था और भविष्य के ख्वाब बुन रहा था।


रिचा के घर के बाहर काफी भीड़ थी। सारे दोस्त इकट्ठे हो चुके थे । सामने उसकी पालकी (अर्थी) सजी थी । मेरी दुल्हन मेरा खरीदा हुआ गाउन और सब गहनों के साथ सज कर लेटी थी । उसकी माँ ने मुझे देखा और रोते हुए बोली रिचा की आखिरी इच्छा थी उसे इसी तरह तैयार करके विदा किया जाए । वैसे तो खुदकुशी का मामला था तो पुलिस पोस्टमार्टम सब झंझट था। पर उसका लिखा पत्र जिसमें उसने लिखा था "प्रिय माँ पापा, आप लोग और दुनिया वाले शायद मुझे बुजदिल समझे या कायर I पर मैं इस बीमारी से लड़ना नहीं चाहती। मैंने ना चाहते हुए भी आपकी और डॉक्टर की बातें सुन ली थी (आपको लगा था कि मैं बेहोश हूं पर मैं शायद नीम बेहोशी में थी मैं सुन सकती थी)। इस लाइलाज बीमारी से लड़ने के बाद भी जीतना संभव नहीं है। नहीं, मैं हर दिन तड़प तड़प कर घुट घुट कर मरना नहीं चाहती। मुझे यह दर्द बर्दाश्त नहीं करना है । मौत मेरी तरफ कदम बढ़ाए उससे पहले ही मैं आगे बढ़कर बहादुरों की तरह मौत को स्वीकार करती हूँ । माँ पापा मुझे मालूम है आप सक्षम है। आप मेरा इलाज करवा सकते थे। पर आप भी जानते हैं जीवन तब भी मेरे पास एक साल का ही होता। हो सके तो इस पैसे को आप किसी गरीब लड़की की पढ़ाई पर खर्च कर दीजिएगा। पापा उसमें मैं ही आपको मुस्कुराती हुई दिख जाऊंगी। माँ पापा कोशिश कीजिएगा मेरा पोस्टमार्टम करके मेरे शरीर की बेइज्जती ना हो । शायद डॉक्टर की रिपोर्ट और मेरा यह पत्र मुझे पोस्टमार्टम से बचा सके।" 


बाद में दो-तीन दिन बाद जब मैं मोबाइल में मैसेज पढ़ रहा था उसमें रिचा का आखिरी मैसेज था "थैंक यू , मेरी इस जिंदगी की आखिरी शाम खूबसूरत बनाने के लिए। तुम्हारी पत्नी तो बन नहीं पाई कि अगले सात जन्मो तक तुम्हें पाने का तुमसे मिलने का सौभाग्य मिले । तुम शादी जरूर करना । मैं कोशिश करूँगी और तुम्हारी बेटी बनकर आऊँगी तुम्हारा अधूरा प्यार पाने के लिए।" 


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Romance