मेरे पिता सचमुच हीरो थे
मेरे पिता सचमुच हीरो थे
24 फरवरी 1989 का वो मनहूस दिन जब मेरे पिता को वक्त ने लील लिया किंतु मेरे जहन में मेरे पिता की एक एक बात अक्षरश: मन एवं दिल पर उभर रही हैं। जब मैं छोटा था तो मेरे पिता मुझको इतना प्यार करते थे कि दूध, दही, घी, केक आदि जमकर मुझे देते थे। गरीब हालात जरूर थी लेकिन दूध और दूध से बनी बर्फी आदि की कोई कसर नहीं होती थी। जब सर्दी के दिन आते तो अलग से मेरे लिए घी एवं मक्खन का प्रबंध किया जाता और साथ में गोंद के लड्डू तो आज तक नहीं भूल पाया हूं। जब भी कोई छोटा या बड़ा काम होता तो मेरे को कभी काम नहीं देते। उनका एक ही कहना था कि यह बच्चा पढ़ लिख कर एक दिन महान बन सकता है। इनको अधिक से अधिक सुविधाएं दिया जाए। मुझे पढऩे तथा पढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
सचमुच मेरे पिता ने मरते दम तक मेरे लिए सब कुछ न्योछावर कर दिया। बस दो ही चीजों के वे बड़े माहिर थे। एक बांसुरी वादन और दूसरा लाठी चलाना। उन्होंने कहा कि यह दोनों चीजें बहुत काम आती है।
यदि जग में प्यार से रहना हो और किसी से प्यार निभाना हो तो यह बांसुरी की धुन मोह लेती है और दुश्मनी निभानी हो तो इस लाठी के बल वो वार करो कि दोबारा कोई लडऩे का नाम नहीं लेगा। वो बड़े निडर थे,भूत प्रेत को तो जीवनभर कभी नहीं माना। उनका कहना था जब मौत आ गई तो डरना कैसा? उसके साथ मुकाबला करो मौत भी हो सकता है हार जाए। हिम्मत और उनका बुलंद हौसला आज भी रह-रहकर याद आता है। बड़े से बड़ा कठिन काम पल में कर देते थे। याद है 1986 में जब हमारे गायें होती थी और गाय चराने का काम मेरे पिता पर था। पूरा दिन श्रीकृष्ण की भांति जंगलों में गायों के संग गुजारते थे। बहुत अवसरों पर वे मुझे भी ले जाते, बड़ा आनंद आता था। तपती धूप में जब पेड़ों की छांव में चटनी और रोटी साथ में लस्सी खाते थे सचमुच इतना आनंद आता था शायद किसी बड़े होटल में अच्छे से अच्छा खाना खिलाए तो नहीं मिलता। जंगल में मंगल थे। पिता ने पूरी उम्र जंगलों में बिताया, गायों के संग बिताया। उनके प्यार के चलते पढऩे में मैंने कभी कसर नहीं छोड़ी यही कारण है कि मुझे अब डी. लिट. तक की भी उपाधि उन्हीं की प्रेरणा से प्राप्त होने जा रही है। वास्तव में ऐसे महान व्यक्ति जिनके संग आनंद आता था, मेरे ऊपर सदा आशीर्वाद का साया बना रहता था। मुझे याद है उनकी महानता कि जब कभी वह गायों को नाम से पुकारते थे तो गायें दौड़ कर आती थी। जब वह किसी रोग से पीडि़त हो जाते और कराहने लगते तो सभी गाय इकट्ठी होकर चारों तरफ खड़ी हो जाती थी। यह था उनका जीवो के प्रति लगाव। शुद्ध शाकाहारी भोजन उन्होंने जीवन भर हमें खाने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि मांस खाने वाले हैं और अधिक ताकतवर समझते हैं तो वो हमसे मुकाबला करके देखें, उन्हें पता चल जाएगा। उनका कोई भी काम फेल नहीं होता था। जिस काम के लिए वह चलते थे सफलता हासिल करते थे।
बांसुरी बजाते तो मन इतना शांत चित्त होकर उनके बांसुरी के स्वरों को सुनता था और जब उनके हाथ में लाठी नजर आती तो शरीर कांप उठता था कि उनके एक ही प्रहार को कभी नहीं झेल पाएंगे। सदा हिंदू धर्म के लिए लड़ते रहे, आखिरकार एक बीमारी ने 24 जून 1989 को लील लिया परंतु उनके एक-एक शब्द हमारे कानों में आज भी मिश्री सी घोल रहे हैं।
