मेरे मकान को घर बनाने चलो
मेरे मकान को घर बनाने चलो
भारती का कुछ दिन से मन बहुत उदास सा हो गया था इसलिए कल ही वो अपने अपने फार्म हाउस में कुछ दिन बिताने आई थी। लॉन में बैठी हुई पेड़-पौधों को निहार रही थी और सोच रही थी कुदरत की बनाई हुई एक-एक चीज़ कितनी खूबसूरत है| ऐसे ही स्त्री भी कोमलता और सुंदरता लिए प्रभु की बनाई हुई अनमोल कृति है पर एक फूल और एक स्त्री के जीवन में कोई खास फर्क नहीं है...जैसे फूल को कुचलने में कोई एक मिनट नहीं लगाता, ऐसे ही स्त्री की भावनाओं को कुचलने में कोई एक मिनट नहीं लगाता...पता नहीं आज मैंने घर से दूर इस शांत वातावरण में पांच सात दिन बिताने का जो निर्णय लिया है, वो ठीक था या नहीं ?
मैं भी क्या करती रोज़-रोज़ के अपने अपमान से में तंग आ गयी थी तभी भारती के फोन पर मोहित का फोन आता है वह थोड़ा गुस्से में भारती से कहता है "बच्चों को कुछ सिखाया भी है, तुमने...जब उन्हें पता है कि उनके पास दो जोड़ी स्कूल यूनिफार्म है और दो दिन से मैड नहीं आई थी तो उन्होंने यूनीफॉर्म धोई क्यूँ नहीं।
अब मुझसे पूछ रहे हैं कि स्कूल क्या पहन कर जायें" ? भारती ने बिल्कुल शान्ति से जवाब दिया "मोहित मैं तो बच्चों को कुछ साखा नहीं पायी, अब तुम सीखा देना।" मोहित ने झुंझलाते हुए कहा "हाँ तुम अपनी सारी ज़िम्मेदारी छोड़-छाड़ कर मज़े करो और "मैं यहाँ घर के, ऑफिस के, बच्चों के कामों में उलझा रहूँ।"
भारती ने प्रश्नभरी आवाज़ में पूछा "घर का और बच्चों का काम ही क्या होता है, खैर अब तुम मुझे बार-बार फोन करके परेशान मत करो। मैं यहाँ कुछ दिन शान्ति से बिताने आई हूँ।
तुम भी तो अपने इतने लम्बे लम्बे टूर पर जाने से पहले कभी एक बार भी नहीं सोचते कि यह...सब कुछ अकेले कैसे संभालेगी फिर अब तुम क्यूँ एक ही दिन में घबरा गये। तुम भी कुछ दिन वर्क फ्रॉम होम कर लो जैसे मैकहते हुए भारती ने फोन रख तो दिया पर उसका मन विचलित हो गया कि वहां सब कितने परेशान हो रहे हैं पर आज भारती ने भी सोच लिया था की उसके किये हुए काम की कोई कद्र नहीं है तो आज अपने आत्म सम्मान के लिए उन सब को यह समझाना बहुत ज़रूरी है कि उनकी ज़िन्दगी इतनी सुविधाजनक मेरी वजह से ही है| मेरे अनगिनत छोटे- छोटे काम बिल्कुल समय पर सबके लिए करती हूँ ना अपनी नींद की चिंता करती हूँ न आराम कि फिर भी एक मिनट में सबका यह कहना कि आपको काम ही क्या है...घर में ही तो रहना है, कितना मेरा मन दुख देता है।
किसी को समझ नहीं आता। घर में सब की तकलीफ़ को अपनी तकलीफ़ समझती रही पर मेरी तकलीफ के समय कोई मुझे अपने साथ खड़ा हुआ नहीं दिखता। भारती ने मन ही मन कुछ सोचा और बाहर घूमने निकल गई। छोटे-छोटे बछड़ों को देख उन्हें अपने हाथ से सहलाते हुए घाँस खिलाई, कुत्तों को लप-लप करते हुए दूध पीते देख उनके बर्तन में और दूध डाल कर उसके मन को एक अलग ही सुकून मिल रहा था। कुछ दूर चहकती हुई चिड़ियों को दाना डाला। पूरा दिन कैसे निकल गया कुछ पता ही नहीं चला।
उस दिन उसके मन को जो सुकून मिला था वो पूरा दिन टी.वी. के आगे बैठने या मोबाइल इस्तेमाल करने से भी नहीं मिलता। फार्म हाउस में आकर देखा मोबाइल पर बच्चों और मोहित की बीसियों मिस्ड कॉल थी। एक बार को तो भारती घबरा गई पर अगले ही पल सोचा अब बच्चे भी इतने बड़े हो चुके हैं कि अपने छोटे-छोटे काम खुद कर सकें और मोहित को तो मुझ से फिर लड़ने का मन कर रहा होगा या कुछ पूछना होगा इसलिए कॉल कर रहे होंगे। थोड़ी बहुत मेहनत तो उन्हें भी करनी आनी चाहिए...शायद मैंने हमेशा उनका हर काम आगे से आगे कर के दिया....उससे उनकी आदत बिगड़ गई।
भारती ने घर पर कॉल किया पर शायद सब उससे गुस्सा थे इसलिए किसी ने फ़ोन नहीं उठाया। भारती फ़ोन चार्जिंग के लिये लगा कर सोने की कोशिश करने लगी पर उसकी आँखों में नमी थी। अगले दिन भारती उठी और गरीब बच्चों की बस्ती में गई| उसने वहां सब को देने के लिए कुछ फल और मीठा ले लिया। वहां उन सब के चेहरे की ख़ुशी देखकर उसका चेहरा भी खिल गया। उनकी परेशानियाँ सुनी उन्हें उसके हल सुझाये। शाम को जब भारती घर आई बहुत थक चुकी थी पर उसके दिल फार्म हाउस आई तो मोहित और बच्चों को खड़े पाया जानती थी सब उससे नाराज़ होंगे पर उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं आ रहा दोनों बच्चें उससे लिपट कर रोने लगे और मोहित घुटनों के बल कान पकड़ कर बैठ गया और बोला "तुम्हारे बिन घर...घर नहीं है।
इतने से दिनों में ही तुम्हारे काम की कीमत और मेहनत समझ आ गई। आज से कोई तुम्हारी बेइज़्ज़ती नहीं करेगा। सब अपने छोटे-छोटे काम खुद करेंगे। मेरे मकान को घर बनाने चलो...जब तुम फ़ोन नहीं उठा रही थी, तो मुझे तुम्हारी चिंता होने लगी।
मैंने अपने माली शंकर को फोन लगा कर तुम्हारा हाल-चाल पूछा उसने बताया कि "कैसे तुम्हें प्राकृतिक सौंदर्य लुभाता है, जीव- जंतुओं को कुछ खिला-पिला कर तुम्हारा मन तृप्त हो जाता है, गरीब बच्चों के दुःख कैसे तुम्हें विचलित करते हैं| यह सब शायद...मैं पहले से जानता था पर हमेशा तुम्हारे इच्छाओं को यह कह कर अनदेखा कर देता था कि पहले अपने परिवार की खुशियों की चिंता करो फिर दुनिया की चिंता करना पर आज समझ आ रहा है...एक ही तो ज़िन्दगी मिली है, हम सब को और उसे अपने हिसाब से जीने का हमें पूरा अधिकार होना चाहिए। मैंने अपने घर के पास एन.जी.ओ में तुम्हारा नाम लिखवा दिया है...ताकि तुम्हें भी तुम्हारी ज़िन्दगी का मकसद मिल सके| हर संडे को हम सब गौ शाला और पशु चिकित्सालय चला करेंगे। भारती के पास शब्द नहीं थे मोहित का आभार व्यक्त करने के लिए| बस सबको गले लगते हुए बोली "हाँ मोहित सपने तो सबके अपने होते हैं...अपने सभी सपने एक तरफ कहीं दबा कर, मैं सिर्फ तुम सबके सपनों को ही जीने लगी थी....पर यहाँ आकर मुझे यह महसूस हुआ, मेरा सपना हमेशा से मानवता का धर्म निभाना तो कहीं मर रहा था पर आज मेरे हौसले और तुम सब के साथ ने मुझे मेरी ज़िन्दगी जीने का मकसद दे दिया है, आई लव माई फैमिली।"