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Shalinee Pankaj

Inspirational

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Shalinee Pankaj

Inspirational

मेरे जीवन की वह अंतिम ईर्ष्या

मेरे जीवन की वह अंतिम ईर्ष्या

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मैं 10 वीं कक्षा में ही थी जब एक रिश्तेदार के यहाँ गयी थी। उस समय मोबाईल का जमाना तो नही था।टी.वी. तो कभी रुचि से देखती ही नही वक्त बिताने के लिए मैंने कुछ पत्रिका हाथ में रख ली ,जिसमें से प्रतियोगिता दर्पण को छोड़कर बाकी की पत्रिका टेबल पर रख दी।

प्रतियोगिता दर्पण पहली बार हाथ में लगी थी। मैंने पन्ना पलटते हुए बीच तक पहुँची जिसमें psc निकालने वालो के इंटरव्यू थे। दोनों साक्षात्कार पढ़ी बहुत अच्छा लगा। उसके बाद उसके अन्य अंक भी लेकर पढ़ने लगी। साक्षात्कार पढ़ते -पढ़ते बहुत अच्छा लगा ,साथ मैं भी प्रशानिक पद में जाने का लक्ष्य बनाकर वहाँ से लौटी।

12 वी फिर बीएससी के बाद तो ब्रेक ले ली अब सिर्फ 

प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करनी है पर घर पर आगे की पढ़ाई के लिए दबाव डालने लगे। घर वालो की बात रखते हुए मैंने एमएससी के लिए एडमिशन लिया।

रसायन अच्छा था ,पर प्राणीशास्त्र ली कि इसके साथ-ही साथ psc की तैयारी भी करते रहूँगी। वो स्तिथि ऐसी थी ,जैसे एक साथ दो नाव में सवार होना।

नतीजा ये हुआ कि एमएससी के प्रथम वर्ष में रिजल्ट खराब आये। मैंने सोचा चलो अंतिम वर्ष है ये डिग्री पूरी कर ली जाए तब psc की तैयारी करूँगी। साल के अंत तक रिश्ते की बात चलने लगी और एक मनचाहा वर से रिश्ता तय हो गया।

परीक्षा दिलाई परीक्षा के बाद विवाह हुआ। नई-नई शादी थी, नया जीवन, नई उमंगें पर इन सबके बीच मेरा सपना मेरा लक्ष्य था जो मुझे सोने नही देता था।

मैंने घर गृहस्थी के साथ पढ़ाई भी जारी रखा। एक नन्ही बिटिया आई जीवन गुलजार हो गया। आगे भी पढ़ते रही और शिक्षक बन गयी सरकारी विद्यालय में।

समय भी अपनी रफ्तार में था। बीतते वक्त के साथ स्कूल में मन लग गया। जो गलती पढ़ाई के वक्त की एक साथ दो नाव में सवार होने की वो यहाँ मैंने नही की। बच्चों को मन से पढ़ाना शुरू कर दी।

वक्त के साथ मेरा सपना, मेरा लक्ष्य तो पीछे रह गया दूसरी राह जहाँ अपनी मेहन व प्रभु की कृपा से पहुँची उसी में व्यस्त हो गयी।

स्कूल में एक दिन जिलास्तरीय कार्यक्रम था ,जिसमें बहुत लोग आए थे। कलेक्टर सर भी जब उनको स्टेज पर देखी तो मुझे मेरा सपना याद आया। सच कहूँ जिंदगी में कभी किसी से ईर्ष्या नही हुई। बल्कि मेरे अंदर ईर्ष्या था ही नही ,पर कलेक्टर सर को देखकर उस दिन पहली बार ईर्ष्या हुई। दिल किया कि फिर से अपने सपनो को पूरा करने के लिए उड़ान भरूँ। मेरा वक्त तो अब भी मेरे हाथ में था पर बच्चों का भविष्य भी जिन्हें मैं पढ़ाती थी।

वो मेरे जीवन की पहली व अंतिम ईर्ष्या थी।


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