मेरे दोस्त
मेरे दोस्त
हमारे घर में एक प्यारा सा कोना है, आहते की खुली जमीन पर बना नन्हा सा बगीचा। बगीचे में आम, चीकू, अमरूद,
फालसा सीताफल व केले के पेड़ हैं। गुलाब, गैंदा, मोगरा, रजनीगंधा तुलसी मरूआ आदि पौधे हैं। मेरी हर सुबह इनके साथ ही खुशगवार होती है।।
सुबह उठते ही मैं भजन लगा देती हूं। ये मेरे साथ भजन सुनते हैं। सुबह की चाय पीते पीते ही मैं इन्हें पानी पिलाती रहती हूँ। इनकी देखरेख करना, इनमें लगे फूल व फलों को देखना, मुझे आनंद देता है। दिन की अच्छी शुरुआत हो जाती है।
यहीं पक्षियों के लिए दाना पानी भी रख देती हूं, दिन भर गौरैया, चिड़िया, कोयल
बुलबुल, लाफिंग बर्ड, रॉबिन आदि पंछियों का आना जाना लगा रहता है। पंछी दिन भर चुगते हैं, चहकते हैं। इनकी चहचहाट से मेरा घर खुशनुमा बना रहता है। गिलहरी भी ट्विट ट्विट कर मन बहलाती है। वैबलर भी झुंड में आती हैं, चैं चैंचैं चैं गान कर नृत्य की मुद्रा में झूमती हैं, आंगन को गुंजायमान कर देती हैं। आम में जब आम्र मंजरी लगती है, कोयल की मधुर वाणी भी सुनने को मिल जाती है। ये सब मेरे अच्छे दोस्त बन गए हैं।
बुलबुल ने एक दिन मेरे आंगन में खड़े आम की डाली पर घोसला बना लिया, जिस दिन से मुझे खबर हुई, उसी दिन से सुबह शाम जब तब मेरी निगाहें उस डाली पर लगी रहती। आम का पेड़ रसोई की खिड़की के सामने ही है। डाली पर बना घोसला खिड़की से साफ नजर आता था। जब भी रसोई में जाती घोसले को देख लेती। आसपास रखे कुंडों में जब भी पानी डालती, घोसले पर नजर कर लेती।
एक सुबह मैंने देखा कि घोसले में तीन अंडे रखे हैं। बुलबुल ने अपने अंडे बड़ी तरकीब से छोटे से घोसले में रखे थे। इतने करीब से अंडों को देख कर मुझे बहुत खुशी हुई। मैंने कई फोटो क्लिक कर पुणे में पढ़ते अपने बच्चों के साथ शेयर किये। बुलबुल और अंडों के फोटो देख कर मेरे बच्चे बहुत खुश हुए। जैसे ही मैं अंडों के पास जाती बुलबुल घबरा कर चूं चूं चीं चीं करने लगती। मुझे चूजों के निकलने का इंतजार रहने लगा।
फिर एक सुबह अंडों से नन्हे नन्हे चूजे निकल आये। एक दूजे से सटे हुए, आंखें बंद किए मुंह दबाये लेटे थे। मादा बुलबुल अब अपना अधिकतर समय बच्चों की सुरक्षा में घोसले के आसपास ही बिताने लगी। खाना लेकर आने की जिम्मेदारी नर बुलबुल ने उठा ली। नर बुलबुल चोंच में दाना लाता और चूजों को खिलाता। मादा के बाहर जाने पर पास की डाली पर बैठ कर चौकसी करता रहता।
चूजे धीरे धीरे बड़े होने लगे, आंखें खोलने लगे, शरीर पर पंख निकलने लगे। दिन में अनेक बार मैं उन्हें देखती। एक सुबह मैंने देखा चूजे अपने पंख फड़फड़ा रहे हैं। ये देख कर बहुत अच्छा लगा। अब वे आहट का एहसास भी करने लगे थे। पास जाने पर चूं चूं चीं चीं करने लगे थे। मैंने बहुत जतन से चूजों के फोटो लिए ,बच्चों एवं दोस्तों संग शेयर किये।
एक महीने से जैसे घर में उत्सव लगा था। आज उत्सव का खास दिन था। बच्चे उड़ने के काबिल हो गए थे। खुशी भी थी और थोड़ा मलाल भी था कि बच्चे उड़ जायेंगे। बुलबुल भी उड़ जायेंगी। डाल सूनी हो जायेगी। मेरे आंगन में गूँजती चहचहाट बंद हो जायेगी। मुझे जैसे उन सबको देखने की आदत सी हो गई थी।
ये तो पंछी हैं। थोड़े दिन के लिए ही आये थे और मुझे उनके उड़ जाने से कष्ट हो रहा था। जब अपने बच्चे घर आंगन छोड़ कर कहीं दूर चले जाते हैं तो माँ पिता को कितना कष्ट होता होगा।
बुलबुल के बच्चे उड़ने का प्रयास कर रहे थे। गरदन ऊपर उठा कर, चहचहा रहे थे। आसमान की तरफ देख ईश्वर का शुक्रिया
अदा कर रहे थे। बुलबुल अपनी चोंच में कुछ कुछ लाकर खिला रही थी। बच्चों की सुरक्षा के लिए आसपास ही मंडरा रही थी। घर में रौनक लगी थी।
उसी दिन दोपहर जब मैं रसोई में पानी पीने आई तो बुलबुल और बच्चों का करुण
क्रंदन सुनाई दिया। मदद मांगने वाली चहक थी। जो किसी खतरे का संकेत दे रही थी। मैं भाग कर बाहर आई तो देखा बिल्ली खड़ी थी। मैंने बिल्ली को भगाया। बुलबुल भी उस पर झपटी। बिल्ली डर कर भाग गई।
किंतु खतरे की चेतावनी जरूर दे गई। मुझे चिंता थी, कि रात को बिल्ली बच्चों को नुकसान पहुंचा सकती है। किंतु रात जैसे तैसे निकल गई। सुबह मैंने बच्चों को घोसले सहित बांस की टोकरी में रखा और घने पत्तों के बीच ऊपर की डाली पर शिफ्ट कर दिया। बुलबुल मुझे कृतज्ञता भरी नजरों से देख रही थी। जैसे कह रही हो मदद के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
ममता सिर्फ इंसान में ही नहीं होती प्रकृति ने पशु ,पक्षी ,जीव ,जंतु सब के दिलों में डाली है। बुलबुल का बच्चों की सुरक्षा को लेकर चिंतित होना स्वाभाविक था। माँ की ममता अनमोल है। हर माँ अपने बच्चे पर ममता लुटाती है।
एक दिन बुलबुल के बच्चों के साथ उड़ गयी। डाली सूनी हो गई। यदा कदा मोबाइल में स्टोर किए फोटो देख लेती हूँ। डालियों पर नजर रखती हूँ, और दुआ करती हूँ, फिर कोई पंछी नया घोसला बनाये और मेरे आंगन में फिर से किसी नये जीव का आविर्भाव हो।।
