मेरा ख़्वाब

मेरा ख़्वाब

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कल्पना तुम बहुत अच्छा लगती हो। कॉलेज में एंकरिंग तुमसे अच्छी कोई नहीं करता। मंच अगर तुम्हारे सामने हो तुम्हारे सामने हो तो तुम्हारी ज़ुबान में लड़खड़ा हट कभी महसूस ही नहीं हुई। सौरभ कल्पना को बोले जा रहा था और करना उसे चुपचाप बैठी सुन रही थी।

कल्पना ने कहा "सौरभ मेरी जिंदगी का मकसद कुछ और है वह कब पूरा होगा वह किसी को नहीं पता।" कॉलेज खत्म होते ही घर जाना है, मां बाप ने शादी तय की हुई है। शादी होते ही पता चलेगा कि आगे लिख पाती हूं कि नहीं।। सौरभ ने कल्पना को कहा नहीं- नहीं लिखना कभी बंद मत करना। लिखना तुम्हारे जीवन का आधार है यह सोचो जिस दिन तुम्हें लिखना बंद कर दिया, तुम्हारे दिल में धड़कना बंद कर दिया ।


सौरभ के अंतिम शब्द कल्पना को हमेशा याद रहे। कॉलेज के खत्म होते ही वह घर आई 2 महीने के अंदर ही उसकी शादी हो गई। शादी हुई घर संभाला, ससुराल संभाला, बच्चे, बच्चे हुए, न जाने 13 साल कैसे बीत गए, उसे पता ही ना चला।

घरवालों से छुप कर थोड़ा-थोड़ा अपनी डायरी में लिखती थी। उसके पति को इस बात का अहसास था कि कल्पना के मन में कुछ तो दबा हुआ है जो वह निकाला जाती है, बताना चाहती है इस दुनिया है इस दुनिया को ।


एक दिन अभि ने उससे पूछ लिया कल्पना तुम क्या बनना चाहती थी। कल्पना के हाथ पैर ठंडे हो गए। उसे लगा शायद अभि ने उसकी डायरी पढ़ ली ली।उसने अभि का हाथ अपने हाथ में लेकर अपने हाथ में लेकर कहा "अभि बनना तो मैं एक साहित्यकार जाती थी,अपनी लेखनी से समाज की कुरीतियों को दूर करना चाहती थी, मगर यह 13 साल घर गृहस्थी में कैसे चले गए कुछ पता ही नहीं चला।

 अभि ने कहा "आज तुम्हारा जन्मदिन है ,मैं तुम्हें यही तोहफ़ा दूँगा। उसने जैसे ही लिफाफा खोला उसमें एक सुंदर सी डायरी और एक पेन था।

 कल्पना की आंखों से आँसू झरने की तरह बह तरह बह रहे थे क्योंकि उसे पहली बार किसी ने लिखने के लिए बोला और तभी उसे सौरभ कि वह बात याद वह बात याद आ गई " जिस दिन तुमने लिखना बंद किया तो समझो, तुम्हारे दिल ने धड़कना बंद कर दिया।"

आज उसे अपनी धड़कनों की आवाज़ जोर शोर से सुनाई दे रही थी। अभि ने उसे अपने सीने से लगा लिया।

 मेरी कल्पना तुम लोगों के लिए एक उदाहरण बनो। मैं जानता हूं तुम वह मुकाम पाओ जिसके लिए तुम हक़दार हो। मेरी शुभकामनाएं तुम्हारे साथ हैं।


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