मेक जोक्स ऑफ (पंचायत के सरपंच)
मेक जोक्स ऑफ (पंचायत के सरपंच)
सरपंच- अरे ई सुखई कहां रहि गवा। साढ़े दस बज गये अभी तक नहीं आया दस बजे बुलावा गवा रहा।
रंगीला- अरे भाग गवा डरि के मारे और का। आधा घंटा और देखों नाहीं तो हमरे पक्ष में फैसला सुनई देवो। हमरा का दोपहर की बस से सहर जावे का है।
सरपंच –अरे तुम्हरे सहर जाने के चक्कर में सुबह सुबह चौपाल लगवा दी वरना हम तो दोपहर में आते। अब आधे घंटे में तो चाय खौल खौल के काढ़ा बन जाएगी।
रंगीला – कौन चाय?
सरपंच –कौनो नाई… चलो अब कल फैसला रखते हैं। कल दो बजे से पंचायत बैठेगी। सुबह सुबह बहुत काम रहता है।
रंगीला – अरे कल हम सहर से न लौट पाए तो? फैसला आजही होई। और तुमका का काम करेका है ? तुम सरपंच हौ यही तो तुम्हार काम है।
सरपंच – (मन में) – अब इसे कौन बताए कि घर का सारा काम मैं ही करता हूं। महारानी तो अभी सोकर भी नहीं उठी होंगीं। चाय बनाकर देते तो उठती….. पर…. चाय पतीली से उतारने तक न दी इस मुए ने, सुबह ही घर पर पधार पड़ा।
रंगीला- लो चले आ रहे हैं सुखई महाराज।
सुखई- का हो सरपंच ? सुबह सुबह कौनो काम धंधा नाय है? जौ ई सभा बुलाए लियो।
सरपंच- तुम्हारे ऊपर इल्जाम है कि तुमने रंगीला के खेत से गन्ने चुराए?
सुखई बैठते हुए- सरासर झूठ है। हमनें कहां गन्ने चुराए हम तौ चूस कै वहीं खेतन में थूक दई। गन्ना खेतन में ही पड़ा है देख लैवो जाए के।
रंगीला- देखा सरपंच जी आपके सामने झूठ बोल रहा है। हमरा मतलब सच बोल रहा है। अ.. अ.. मतलब चोरी कुबूल कर रहा है।
सुखई – चोरी कैसी चोरी ? जब गन्ना चुराए नहीं तौ काहे कबूल करें? चोरी तौ तब होत जब उठाये के गन्ना घर लई जाइत हत तौ वहीं थूक दीन्ही।
सरपंच – पर तुमने उसके खेत से गन्ने क्यों चुराये? मतलब क्यों चूसे ?
सुखई – बहुतै रसीले जान पड़े रहे तो चूस के देख रहे थे कि कितना रस है ?
रंगीला – अच्छा चूस के देख रहे थे कि कितना रस है। तो लाओ हमरे गन्ना का पैसा निकालो।
सुखई – काहे निकालें ? अरे गन्ना तो वहीं खेत मा है। जब हम गन्ना लिये होएं तौ पैसा निकालें।
सरपंच- तुमने इसके गन्ने चूसे थे न ?
सुखई – हां तौ?
सरपंच- तो चूसे गये गन्ने का दाम दो और केस खतम करो भाई हमारी चाय चढ़ी है पतीली पर।
रंगीला- हमारे गन्ने चोरी हुई गये और आपको चाय पीने की पड़ी है।
सुखई – पीने की नहीं बनाने की। समय पर भौजी को चाय न मिली तो फिर देखो महाभारत।
सरपंच – अच्छा तुमका बहुत पता है । सरपंच तो तुम्हई हो।
सुखई – तुम्हरे पड़ोसी तो हैं। सब जानित है। वहां भौजी उठ गयीं हैं। चाय चाय पुकार रही हैं। हम कहि दिया कि तुम चौपाल पर गये हो। बस मंजन कुल्ला करके आवत होईहैं। बड़ी गुस्से में रहीं।
तभी एक औरत गुस्से से वहां आई।
भौजी -सुबह हुई नहीं कि तुम्हरी पंचायत बैठ गयी। न चाय न नाश्ता... बस मुंह उठाया और बैठ गये पीपल की छांव में।
रंगीला- भौजी हमीं इन्हें जबरदस्ती ले आये। हे हे ... आप चाय नाश्ता तैयार कीजिए..... ये बस आते ही हैं।
सुखई – अरे यही तो नाश्ता बनइहैं जाइके।
रंगीला- क्या सरपंच जी? सच्ची?
सरपंच – का बताई हम तो चाय और नाश्ता चढ़ाए दिये रहे पर तुमही हमका ईहां घसीट लाए। और एक दिन तुम चाय नाश्ता बना लेतीं तो कौन सा भूचाल आ जाता? रोज तो हमीं बनाते हैं।
भौजी – घर चलो फिर बताते हैं कौन सा भूचाल आ जाएगा। हमरे बापू इतना दुई गाड़ी भरके दहेज ऐही खातिर तो दिये रहे कि हम नाश्तौ बनाई, खानौ बनाई, और तोहार गोड़, हाथ, मूड़ भी दबाई।
सरपंच – अरे सरपंच हैं हम ..... और यह चौपाल है। कुछ तो लिहाज करो। घर पे सुना लेना जितना दिल करे।
भौजी – उठते हो कि कान पकड़ कर उठाएं। ऐसी की तैसी सरपंच और चौपाल की।
रंगीला- जाइये सरपंच जी पहले अपना केस सुलझाइये।
सुखई – हां आपसे न हो पाएगा।
रंगीला और सुखई - ही ही
सरपंच दोनों को घूरते हुए- चलो भाग्यवान पहले तुमको चाय नाश्ता ठुसा दें तब चौपाल लगाएं। हम तो इसीलिए दोपहर में पंचायत बुलाने को कह रहे थे। घर के सब काम खतम हो जाते तौ आते।
रंगीला- कोई बात नहीं अब करके आओ हम यहीं इन्तजार कर रहे है।
सुखई – हां हां हम भी यहीं बैठे हैं।
सरपंच- अच्छा... अब तुमका बस पकरि के सहर नाय जाना?
रंगीला- अरे हम तौ सहर सिनेमा देखन जाय वाले रहे। पर ...........
सुखई- पर..... अब यहीं सिनेमा चलै वाला है।
दोनों एक दूसरे से हाथ मारकर हंसते हैं। सरपंच घूरता है।
भौजी –अब चलो भी। कि पालकी मंगवायें तुम्हरे लिए।
सरपंच- अरे तुम आगे आगे चलो एक काम निपटाकर हम आते है।
भौजी – पांच मिनट में आ जाना वरना .... वरना तो तुम जानते ही हो।
भौजी का सारा गुस्सा सरपंच सुखई और रंगीला पर उतारता है।
