होली
होली
आशीष की नई नई शादी हुई है और आज उसकी पहली होली है । रक्षा ने कभी होली नहीं खेली उसके परिवार में होली का त्योहार नहीं मनाया जाता क्योंकि उनके घर में उसके दादाजी की मृत्यु उसी दिन हुई थी और रक्षा के पिता उनसे इमोशनली बहुत अटैच थे । इसलिए उनकी मृत्यु के बाद होली का त्योहार मनाना ही बंद कर दिया गया। पर अब रक्षा का एक नया परिवार है । और यहां उसकी पहली होली को यादगार बनाने की आशीष ने पूरी तैयारी की है । उसने ऑर्गेनिक रंग खरीदे हैं जो उसकी नाजुक पत्नी की त्वचा को नुकसान न पहुंचायें और वह होली का पूरी तरह आनन्द उठा सके । आशीष ने अपने दोस्तों से भी कहा है कि वो अपनी भाभी को ऑर्गेनिक रंग ही लगाएं । पर दोस्त तो साले होते ही कमीने हैं।
“आशीष भाभी को बुला । हम उनके साथ रंग खेलने आये हैं। “ रियाज ने कहा।
“देख मैंने पहले ही कहा था कि इस बार होली में हर्बल रंगों का प्रयोग होगा, पर तुम सब केमिकल वाले रंग लेकर आये हो । “ आशीष ने उनके हाथों में रंग के पैकेट देखकर कहा।
“वाह बेटा मेरी बीबी को जो तूने रंग लगाया था वह एक साल तक नहीं उतरा था । अब मुझे शिक्षा दे रहा है । सीधी तरह भाभी को बुला वरना हम दरवाजा वरवाजा सब तोड़ के घुस जाएंगे।“ अनुभव ने उसे याद दिलाया ।
“देख यार जो हो गया सो हो गया । पर आज से मैं भी हर्बल रंगों से ही होली खेलूंगा । चल बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि ले। “
“ठीक है, ठीक है बीति बिसार देंगे । तू भी क्या याद रखेगा। बुला भाभी को ।“ अनुभव और अन्य दोस्तों ने तुरंत हर्बल रंगों का पैकेट खोला और रक्षा का इन्तजार करने लगे । कुछ ही देर में रक्षा वहां आई । आशीष के तीनों दोस्त अनुभव, रियाज और संदीप ने अपने हाथ बढ़ाये वो तीनों ही भाभी को पहला रंग लगाने को बेताब थे पर अचानक जाने क्या हुआ कि रक्षा चीखकर बेहोश हो गयी । ये देखकर आशीष सहित सभी के चेहरे का रंग उड़ गया ।
“ये क्या हुआ ? हमने तो छुआ भी नहीं और भाभी बेहोश हो गयीं ?” रियाज ने परेशान होकर कहा।
“पता नहीं यार मुझे खुद नहीं समझ आ रहा। वो इससे पहले कभी होली नही खेलती थी ये तो मैं जानता हूं पर होली से वह इतना डर जाएगी यह मुझे भी नहीं पता था। “
आशीष ने उसे उठाकर बेड पर लिटाया खुशी का माहौल सदमे में बदल गया आशीष के माता पिता ने आशीष को ही डांट लगायी। उसके दोस्त भी शर्मिंदा हुए और माफी मांगकर चुपचाप बिना होली खेले ही चले गये। कुछ देर में रक्षा हो होश तो आ गया पर घर का माहौल ही बदल चुका था । पिताजी ने घर पर होली का त्योहार मनाने की कड़े शब्दों में मनाही कर दी थी । पर आशीष के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था । वह इस घटना के पीछे का कारण जानने को बेचैन हो गया। और एक सप्ताह के बाद वो रक्षा को लेकर एक साइक्रायट्रिस्ट सुनीता शर्मा के क्लीनिक पहुंचा।
रक्षा - “हम यहां क्यों आये हैं?”
आशीष - “हम यहां तुमहारे डर का कारण जानने आये हैं?”
रक्षा की आंखों में आंसू आ गये –“क्या आपको लगता है कि मैं पागल हूं?”
“पागल तो तुम हो ही । तभी तो ऐसा सोच रही हो । रक्षा मैं यहां तुम्हें पागल साबित करने के लिए नहीं बल्कि तुम्हें समझने के लिये लाया हूं। होली जैसे खूबसूरत त्योहार के प्रति तुम्हारा डर निकालने लाया हूं। मुझे गलत मत समझों । डॉ0 सुनीता बहुत ही सुलझी हुई सायक्रायटिस्ट हैं। और मुझे लगता है कि तुम्हें प्रापर केयर की जरूरत है । हम किसी को डॉक्टर के पास क्यों ले जाते हैं ? क्योंकि हम उनकी केयर करते हैं?”
“मिस्टर आशीष आपको मैम ने अन्दर बुलाया है । “ रिशेप्शनिस्ट के इशारे पर वो लोग अन्दर गये । आशीष की पूरी बात सुनकर डा0 सुनीता ने गंभीर स्वर में बताना शुरु किया ।
“देखिये जहां तक मैं समझ रही हूं यह एन्जायटी की समस्या है । जब कभी हम किसी सदमें या मुसीबत से गुजरते हैं तो हमारा दिमाग तीन तरह से हमें प्रोटेक्ट करता है । पहले स्टेज पर दिमाग सोचता है , विचार करता है और बचने का उपाय अपनाता है । यह नॉर्मल बिहैवियर है जो आमतौर पर सभी के साथ होता है । दूसरी स्टेज है फाइट एंड फ्लाइट मोड जिसमें व्यक्ति समस्या से भागता है या तीव्र प्रतिक्रिया करता है जैसे चीखना, चिल्लाना, रोना वगैरह। और तीसरा मोड है शट डाउन मोड जिसमें बचने का कोई उपाय न देखकर दिमाग आपको सुला देता है या बेहोश कर देता है । जहां तक मुझे लगता है रक्षा किसी ट्रॉमा के कारण शट डाउन मोड पर चली गयी थी । “
डॉक्टर की बातों में रक्षा को कुछ रुचि जागी –“ट्रॉमा ? वो क्या होता है?”
डॉ0 सुनीता मुस्कुराकर-“ ट्रॉमा भूली बिसरी यादों को कहते हैं। जब कभी कोई ऐसी समस्या आती है जिससे बचना मुश्किल हो तो वह हादसा या घटना दिमाग द्वारा भुला दी जाती है । भविष्य में जब वैसी ही परिस्थितियां आती हैं तो दिमाग बिल्कुल वैसा ही बर्ताव करता है जैसा कई साल पहले किया था । दिमाग का वह हिस्सा जो भूतकाल और वर्तमान काल का ज्ञान देता है वह भ्रम में पड़ जाता है कि वह घटना अतीत में घटी थी न कि अब वर्तमान में घट रही है । शायद होली पर तुम्हारे साथ कोई हादसा घटित हुआ था । इसके विषय में तुम्हें याद नहीं है तो हम तुम्हारे माता पिता से इस विषय में बात करेंगे। कुछ हफ्तें तुम्हें काउंसिलिंग के लिए मेरे पास आना होगा इस बीच मैं तुम्हें अपने दिमाग को शांत रखने और अपने डर पर काबू पाने के उपाय बताऊँगी। “
अगली मीटिंग रक्षा के माता पिता की मौजूदगी में रखी गयी । तब रक्षा के पिता ने उसके बचपन की एक घटना सुनाई । रक्षा के माता पिता और रक्षा अपनी कॉलोनी के कुछ लोगों और बच्चों के साथ होली खेल रहे थे । अचानक रक्षा कहीं दिखाई नहीं दी तो उसके पिता उसे ढूंढने गये । एक तंग गली से उसकी चीख सुनकर वो दौड़े , वहां एक लड़का जो पूरी तरह रंग से सराबोर था वह बेहोश रक्षा को गोद में उठाये था । रक्षा के पिता को देखकर वह रक्षा को फेंककर दीवार फांद कर भाग गया । उस लड़के का कुछ पता नहीं चला, जब रक्षा को होश आया तो उससे पूछा गया , पर रक्षा इस घटना के बारे में भूल चुकी थी उसे कुछ भी याद नहीं था कि वह उस लड़के के साथ कब और क्यों गयी । रक्षा के पिता ने यह अंदाजा लगाया कि वह लड़का रक्षा को जबरदस्ती रंग लगा रहा था और शायद कोई गलत हरकत भी करने जा रहा था, पर उसके पिता ने सही समय पर उसे बचा लिया। वह लड़का नशे में लग रहा था । अगले साल होली पर रक्षा ने रंग देखकर वैसा ही व्यवहार किया था जैसा कि आशीष के दोस्तों के सामने किया था। रक्षा के पिता ने तब से होली का त्योहार मनाना ही बंद कर दिया पर यह बात वो किसी से बताते नहीं थे, न ही कभी रक्षा को सामने इसका जिक्र किया गया। उन्होंने लोगों को यही कहा कि रक्षा के दादाजी की मृत्यु के कारण वो लोग होली का त्योहार नहीं मनाते।
होली जैसे सुन्दर त्योहार को लोग किस तरह दूषित कर देते हैं। भांग खाकर जिसे वो भोलेनाथ की घुट्टी पुकारते हैं। भला कहां लिखा है कि भगवान शंकर भांग खाते थे? पर जोर शोर से गानों में उन्हें भंगेड़ी घोषित किया जाता है । हर होली पर “ए गनेश के मम्मी जरा पाव भर भांग खिया दे न ।“ जोर जोर से स्पीकर पर बजाया जाता है। किसने यह गाना होली पर नहीं सुना है ? शायद सभी ने सुना होगा। आदियोगी, शिव, जिन्होंने संसार को योग का उपहार दिया, वो भांग खाकर यह ज्ञान अर्जित कर रहे थे ? ऐसा सोचना भी अपराध है। भांग बेचने वालों ने अपना करोबार चमकाने के लिए शिव को भंगेड़ी और शराब बेचने वालों ने इन्द्र को नशेड़ी घोषित कर दिया और हिन्दुओं ने बिना सोचे समझे इसे सच भी मान लिया। क्या आप किसी नशेड़ी को अपना नेता चुनेंगे ? तो फिर आपने ये कैसे सोच लिया कि देवता अपने राजा के रूप में एक नशेड़ी को चुन लेंगे? लोग सुरा और सोम का अंतर नहीं जानते और ज्ञान बघारने चल देते हैं। देवताओं के राजा को सोमरस परोसा जाता था जो अमृत का पर्यायवाची शब्द है न कि सुरा रस जो शराब का पर्यायवाची है। होली, दीपावली जैसे त्योहारों पर लोग लिमिट से बाहर नशा करके इन त्योहारों की पवित्रता को नष्ट कर देते हैं। बड़ी देर तक रक्षा के पिता, आशीष और डॉ0 सुनीता इस विषय पर चर्चा करते रहे। फिर डॉ0 सुनीता ने रक्षा के ट्रीटमेंट पर चर्चा शुरु की। हर हफ़्ते उसकी काउंसिलिंग होती थी। उसे योग , ध्यान और अपने संवेगों पर नियंत्रण करने की कला सिखाई जाती । रक्षा की सास ने उसे धर्मग्रन्थों को पाठ कराना भी शुरु कर दिया । इन सबका बहुत ही पॉजिटिव रिजल्ट निकला।
अगली होली रक्षा ने बड़े ही उत्साह से मनायी । आप भी होली उत्साह से मनाइये । आने वाली होली की शुभकामनाएं। कहानी पढ़ने के लिए धन्यवाद ।