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Komal Tandon

Drama Tragedy Fantasy

4  

Komal Tandon

Drama Tragedy Fantasy

गरीबी

गरीबी

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वो बूढ़ी आँखे किसी शून्य में ताकती हुई सी आज भी उतनी ही फैलीं थी, जितनी तब हुआ करती थीं, जब ये जीवित थीं। मिसेज सरिता ढोगरा वद्धाश्रम को अलविदा करके जा चुकीं थीं। 

उनके पड़ोसी उन्हॆ तीन माह पूर्व लेकर आये थे। तब उनके शरीर को देखकर लगता था, जैसे किसी कंकाल पर माँस की हल्की परत चढ़ा दी गई हो। मिसेज सरिता को अल्जाइमर की समस्या थी। समय के साथ यह इतनी बढ़ गई कि वो दैनिक कार्य भी भूल जाती थीं । जैसे खाना खाना या पानी पीना। 

उनकी कामवाली जो 15 वर्षों से उनके घर काम कर रही थी वह उनकी देखभाल करती थी। एक बार तीन दिनों का विवाह समारोह खत्म करके जब वह वापस आई, तो मिसेज सरिता को बेहद बुरी हालत में खिड़की के पास कुर्सी पर बैठे पाया। वह प्रतिदिन उस खिड़की बैठी रहतीं थी। उनकी बूढ़ी आँखें बेटे के इन्तजार में घर के फाटक पर टिकी रहती थीं। वे सत्तर साल की बूढ़ी आँखे थीं।

उनका बेटा अपनी पत्नी व बच्चों के साथ कनाडा में बस गया था। मिसेज सरिता अपनी नौकरानी के भरोसे थीं। उनकी नौकरानी उनके भूलने की आदत के विषय में जानती थी पर वह इस रोग अल्जाइमर की भयानकता से अंजान थी। वो अक्सर उनके पास खाना पानी रख कर जाती तो उसे अगले दिन वह ऐसे ही रखा दिखता। उसने मिसेज सरिता से तीन दिन की छुट्टी मांगी। मिसेज सरिता नें कहा कि वो अपना तीन दिन ख्याल रख सकती हैं।

पर जब नौकरानी वापस आई तो उसने मिसेज सरिता को कुर्सी पर अर्धमूर्छित पाया। नौकरानी ने पड़ोसियों को बताया। कुछ नेक लोगों ने उन्हें ड़ॉक्टर को दिखाया। उनके शरीर में पानी की कमी हो गई थी, जाहिर था कि तीन दिन से उन्होंने न कुछ खाया न पिया था। उनका बेटा हर माह उनके लिए खर्च भेजा करता था। किसी महानुभाव ने उसे फोन पर सूचना दी, तो उसने कहा कि वह इलाज का पूरा पैसा भेज देगा, पर अभी वह भारत आने में अक्षम था। तब पड़ोस के मिस्टर चोपड़ा ने वृद्धाश्रम का सुझाव दिया जो उनके बेटे को पसंद आया।

इस प्रकार मिसेज सरिता यहाँ आ गईं। यहाँ भी वो सारा समय खिड़की पर बैठी रहतीं थी और उनकी बूढ़ी आँखे अपने बेटे का इन्तजार करती रहती थीं। मैंने सभी औपचारिकताएँ निभाकर अंतिम संस्कार की तैयारी शुरू करने को कहा। मृत देह को कंधा देने के लिए तीन पुरूषों में एक हमारे महिला वृद्धाश्रम का सफाई कर्मचारी, एक रसोइया और एक अकाउंटेन्ट था। चौथा कंधा तलाशा जा रहा था, कि अचानक खबर मिली की मिसेज सरिता का बेटा उनसे मिलने आया है। सुनकर मुझे खुशी हुई अब चौथे कंधे का इंतजाम हो चुका था। कम से कम अब वो बूढ़ी आँखे अपने बेटे को देख सकेंगीं शायद वो इसीलिये अभी तक खुली है।

गरीबी सिर्फ गरीब घरों में नहीं रहती पर कुछ अमीर लोग भी बेचारे इतने गरीब होते हैं कि उनकी लाश के लिए चौथा कंधा भी नहीं मिलता। 


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