मेहनत का फल
मेहनत का फल
यह कहानी समयपुर गांव की मीरा की है। इसकी आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। उसके दो बच्चे हैं और परिवार की अधिकतर जिम्मेदारी मीरा पर ही है क्योकि उसका पति बेरोजगार है। मीरा बड़ी ही समझदार व संघर्षशील महिला है और वो भी अपना परिवार चलाने के लिए गांव के प्राइवेट स्कूल में सहायिका का काम करती है। मीरा ने ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई की है और मीरा पढ़कर आगे बढ़ना चाहती है, इसलिए मीरा अभी पोस्ट ग्रेजुएशन कर रही है और अंतिम वर्ष में पढ़ रही है।
मीरा को सहायिका की भूमिका में काम करते हुये दो वर्ष पूरे हो गये हैं। मीरा को शुरूआत में जब ये नौकरी मिली, तो उसका उद्देश्य घर के लिए पैसे कमाना था, जिससे उसके और उसके परिवार का भरण पोषण हो सके। मीरा को यह मालूम ही नही था कि बाहर और भी नौकरी के अवसर है, जहाँ पर उसे सम्मान और संतुष्टि दोनों मिल सकती है। स्कूल में महिला शिक्षिकाओं और बाहर से आने वाली महिला अफसरों को देखकर उसके मन में भी ऐसा ही कुछ करने की ललक दौड़ जाती है। मीरा पूरी मेहनत से अपना काम कर रही है और उसकी जिज्ञासा, व्यवहार कुशलता, मेहनत करने की क्षमता से लोग बहुत खुश भी हैं ।
कभी-कभी व्यक्ति बिना मार्गदर्शन के भी अपने कार्य को बेहतर नहीं बना पाता है। मीरा के साथ वही स्थिति थी लेकिन जब मीरा को स्कूल में सबके साथ आने का मौका मिला, तो मीरा को लगा कि मेहनत और लगन से अच्छा काम करके अपनी एक अलग पहचान भी बना सकती है। मीरा का पति भी मीरा को प्रोत्साहन देते रहता है और आगे बढ़ने के लिए निरंतर प्रयास करने के लिए बोलता रहता है। साथ ही घर के अन्य कार्यों में भी मीरा का पूरा साथ देता रहता है। दोनों मिलकर यही सोंचते रहते हैं कि कैसे आर्थिक लाभ के साथ-साथ वह अपनी पहचान व अपने कार्य को प्रभावी तरीके से कर पाएं ।
मीरा पूरे मेहनत और लगन से काम को करते हुए अपने घर को बखूबी चला रही थी। गांव के अन्य लोग भी मीरा को देखकर उसके द्वारा किये जा रहे काम की सराहना करते रहते हैं । मीरा लगातार अपने स्कूल के शिक्षकों और सहभागियों से नई नई चीजे सीखकर अपने जीवन में अपनाती गई । साथ ही सबकी मदद से वो तमाम जगहों पर निकल रही सरकारी नौकरियों के लिए भी आवेदन करती रही।
मीरा का चयन सरकारी नौकरी में हो जाता है और मीरा अपनी लगन और मेहनत से विभाग में कई पुरस्कार जीतती है। साथ ही उसका प्रमोशन भी होता है। आज मीरा अपने परिवार के साथ खुशी से रहती है।
