मौताणा
मौताणा
भीमजी एक कोने के सिर झुकाए बैठा है और मृतक रामखिलावन का शव उसी के घर के सामने नीम के पेड़ से पिछले दो दिनों से लटक रहा है।
गांव की पंचायत क्या निर्णय सुनाएगी ? इसी डर के मारे इस सर्द मौसम की हाड़ कंपाने वाली ठंड में भी भीमजी का शरीर पसीने पसीने हो रहा है। सिर पर पट्टी बंधी पट्टी हुई थी लेकिन उसे अपने दर्द का ज़रा सा अहसास भी नहीं हो रहा था।
दर्द व भय, जिसका था, वह था मौताणे की राशि का जो पंचायत के फैसले के बाद उसे चुकानी होगी।
गांव की पंचायत में सब अपनी-अपनी राय दे रहे हैं, अभी थोड़ी देर पहले ही सरपंच साहब मृतक के पिता को बात-चीत करके, समझाने के लिए झोपड़े ले पीछे लेकर गए हैं।
सब लोग उन दोनों का ही इंतज़ार कर रहे हैं।
भीमजी उस घड़ी को कोस रहा है जब उसने अपने मित्र रामखिलावन को शहर जाते हुए अपनी मोटर साइकिल पर बैठा लिया था व आगे किसी जीप से भिड़ंत में भीमजी तो बच गया परन्तु रामखिलावन की मौत हो गई थी।
"कभी पीड़ित को न्याय दिलाने के लिए बनाई गई यह परम्परा, आज एक विभत्स लूट का रूप ले चुकी है, जिसका भरपूर दुरुपयोग किया जा रहा है।
अब तो केवल सरपंच साहब का ही सहारा है, उनको पिछली बार चुनावों के समय भीमजी ने काफी वोट भी दिलवाए थे।
आकर जैसे ही सरपंच साहब ने निर्णय सुनाया, भीमजी हिमयुग का सा मानव बन चुका था, यहाँ उसकी कुल सम्पत्ति का अनुमान लगाते हुए, रामखिलावन के पिता के साथ मिलकर अंदर ही अंदर अपना व अन्य पंचों का हिस्सा तय किया गया व मौताणे की राशि १५ लाख निश्चित की गई थी जो अपनी पूरी जमीन जायदाद बेच दे तो भी चुकाना मुशिकल था।
अब इन सर्द हवाओं में सचमुच भीमजी का खून जम चुका था व पेड़ से लटकती लाश के साथ भीमजी की लाश भी जलने के लिए तैयार थी।