मौन की कीमत जानो
मौन की कीमत जानो


"मौन के वृक्ष पार शान्ति का फल उगता है।" शान्ति आत्मा का स्वधर्म है। मन के दौड़ने का नाम है अशांति। जितना मन ज्यादा सक्रिय होगा उतनी ही ज्यादा अशांति बढ़ेगी। "मौन" मन की सक्रियता को कम करने व उसे नियंत्रण में लाने का एक उपाय मात्र है। मन की सक्रियता कम हो तो स्वधर्म में टिकना और शान्ति की गहनता में जाना सहज हो जाता है। शान्त रहना सबसे अच्छा गुण है। जितना ज्यादा समय हो सके मन और वाणी के मौन पर अटैंशन होना चाहिए। आपकी सुखद सहज नींद के आठ घंटे तो मौन के ही गिने जाएंगे। इसके अलावा सुबह और शाम के कम से कम चार घंटे और ऐसे हों जब आपका मन और वाणी के मौन पर अटेंशन होना चाहिए। जितना आपका मन और वाणी का व्यर्थ कम होगा उतना आप शक्ति इकट्ठा करते जाते हैं। यह शक्ति किसी भी क्षेत्र में आपकी प्रखरता को बढ़ाएगी। अंतर्मुखी होना सहज हो जाएगा। अंतर्मुखी होने से बीज रूप परमात्मा के साथ तारतम्यता सहज होती है। जितना मौन रहोगे उतने ही शक्तिशाली बनोगे। उतना ही लोग आपको ज्यादा बुद्धिमान समझेंगे और आपकी वचनों को सुनने को उत्सुक होंगे। इसलिए ही तो "शान्त रहना" को सबसे अच्छा गुण कहा जाता है।