मैनु इश्क़ तेरा लै डूबा
मैनु इश्क़ तेरा लै डूबा
मुझे शादी वादी नहीं करनी।
मीरा कहती है। उसकी उंगलियां ब्रा के हुक्स वापस फंसाने में लगे है और व्योम आधा लेटा इस कशमकश को सांस रोके देख रहा है। ये मीरा की पीठ सुनहरी सी कैसे है? सोचते सोचते उसकी उंगलियां खामखा ही मीरा की पीठ पर सांपों की लकीरें उकेरने लगते हैं। मीरा की बांहों पर उग आये गूसबम्प्स व्योम से छिपे नहीं हैं। और मुस्कराता हुआ वो निढाल वापस सफ़ेद चादर पर लेट जाता है, गहरी सांस लेकर, जाने कबसे रोक रखी थी।
मुझे शादी नहीं करनी। सुना तुमने?
मीरा ने एक और सफ़ेद चादर में लपेट रखा है खुद को और अब व्योम के सीने पर झुकी सी कुछ उलाहने के लहज़े में बोलती है।
व्योम अभी भी कुछ हँस ही रहा है, आँखों में कहीं कोने में बैठी बेबसी भी झांकती सी तो नहीं।
“चलो अच्छा है, कह दिया। वैसे मैं कौन सा अंगूठी लिए घूम रहा हूँ। ”
वो पलट जाती है, मुंह को तकिये में गाड़े। इन आँखों की नमी उन्ही में कही खो जाये तो अच्छा।
कुछ पल यूं ही अंतहीन से इस कमरे में टँगे से रह जाते हैं।
मीरा के फ़ोन पर एक टेक्स्ट का अलर्ट आता है और एक झटके में वो उठती है।
“जीन्स कहाँ है मेरी। ”
व्योम अभी भी वही पड़ा है, लेकिन अब उठ बैठा है।
मीरा अपने ग्रे जीन्स को एडजस्ट कर रही है।
“शावर ही ले लो। ”
“नहीं, बाल भींग जायेंगे। ”
“ड्रायर तो है, वो रहा”
मीरा नज़रे भी नहीं मिला पाती न कुछ कहती है।
आईने में अपना बहका काजल ठीक करने के बहाने घूम जाती है। देखती है व्योम को बाथरूम जाते।
अब वो जूते पहन वापस कंप्यूटर डेस्क के बगल की कुर्सी पर बैठ गयी है। वापस आ जाये तो चलूँ मैं भी। फ्लाइट का टाइम क्या है, देख लूँ। सब टाइम पे है।
शावर से पानी की आवाज़ आती है और न जाने किस अहं शर्म लिहाज़ को साथ बहा ले जाती है मीरा के ह्रदय से।
“पानी गर्म है क्या?“
“हाँ “
नालायक, कौन जाता है शावर दरवाज़ा खुला रखकर।
“रुको, आती हूँ... ”
“आ जाओ “
कुछ झुंझला कर बाथरूम की लाइट ऑफ करती मीरा व्योम के पीछे आ खड़ी होती है।
“टू मच लाइट फॉर मी ”
गुनगुना सा पानी और अनगिनत अनकही बातें झरे जा रहे है अगले कई लम्हो में जिनकी उम्र कौन तय कर सकता है भला। पिघलता जा रहा है हर वो मोम इस धीमी आंच में जो सदियों अटका पड़ा था किसी मधुमक्खी के छत्ते में।
मीरा के कहीं जैकेट में पड़े फ़ोन अपने आप ही बज रहा है
“... मैनु इश्क़ तेरा लै डूबा ”

