Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Comedy

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Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Comedy

मैंने की खुद से शादी

मैंने की खुद से शादी

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(गतांक से आगे, पंचम भाग)  


भोजन आदि के पहले और बाद, मैं दिन में अधिकतर समय सोती रही थी। संध्या होने के पहले बुआ भी अपने घर वापस चली गईं थीं। अब घर में मौसी ही एकमात्र अतिथि थीं। रात्रि का भोजन, पापा ने पहले कर लिया था। किचन में मम्मी, मौसी, भाई और मैं साथ खाने बैठे थे। भाई अत्यधिक प्रफुल्लित दिखाई दे रहा था। उसने बात आरंभ करते हुए कहा - 

प्रिया तुम सही या गलत कर रही हो मुझे समझ नहीं आ रहा है मगर आज नेशनल न्यूज़ चैनल पर तुम्हारे इंटरव्यू ने तो मुझे गर्व करने का अवसर दिया कि तुम मेरी बहन हो। 

मैंने बस मुस्कुरा दिया था। मुझे चुप रहते देखा तो मौसी ने भाई का समर्थन करते हुए कहा - प्रिया सुबह तुम्हारे इंटरव्यू के पहले हँसी ठहाका लगाने वाले पड़ोसी, चैनल पर तुम्हारे इंटरव्यू को देख कर अब हमारे ही घर में घुसे जाने का बहाना खोज रहे हैं। सबके मुँह बंद हो गए हैं। अब सब तेरी प्रशंसा और गुणगान करने में लगे हैं। 

मुझे इसका अनुमान तो पहले ही था। मैं सोचने लगी, रात तक यही मौसी मुझ पर शाब्दिक तीर चलाकर मेरा मर्माहत करते रही थी। मुझे इनका मनोविज्ञान समझ आ गया था, मौसी “जहाँ दम वहाँ हम” का सामान्य सिद्धांत पालने वाले सामान्य व्यक्तियों में से एक थीं। मैं चुपचाप खाते रही थी। 

मम्मी शायद यह तय नहीं कर पा रहीं थीं कि अंत में मेरे किए का परिणाम क्या होने वाला है। इसलिए उन्होंने कुछ नहीं कहा था। भाई उत्साहित था और मौसी अचंभित थी, दोनों ही आपस में बात करते हुए भोजन कर रहे थे। मेरे मन में चिंता एवं इससे अलग एक यक्ष प्रश्न चल रहा था - ‘नीरज चोपड़ा जी, मेरी बात को अपने संज्ञान में लेंगे भी या नहीं?’

भोजन खत्म होने पर मम्मी को किचन में छोड़कर सब हमारे छोटे से बैठक रूम में आ गए थे। यहाँ पापा भी थे। वे मुझसे पहले से कम असहमत दिखाई दे रहे थे। शायद मेरे माध्यम से चर्चित हुआ परिवार का नाम, उनके लिए कल्पनातीत उपलब्धि थी। मेरे पापा घर में सभी की अपेक्षा अधिक समझदार थे। अपने मन की इतना सब कर लेने के बाद, मैं उनकी प्रतिक्रिया सुनने को व्यग्र थी। मैंने पूछा - पापा, क्या आप मुझसे अब भी नाराज हैं?

पापा ने जैसे पहले ही इस घटनाक्रम पर विचार कर रखा था उन्होंने कहा - 

प्रिया, तुम जिस तरह में चर्चा में आई हो उस तरह तुम्हारी जैसी कोई सामान्य बेटियां चर्चित नहीं हो पाती हैं। यह चर्चित होने का सस्ता प्रचार-साधन (Cheap Stunt) है। तुम यह समझ लो कि एक दिन की चर्चा कभी कोई विशेष उपलब्धि नहीं होती है। जैसा तुमने कहा है कि ‘तुम असाधारण होना चाहती हो’ उसके लिए नित नए एवं अच्छे कर्म करने की आवश्यकता होती है। यह तुम्हारा दुर्भाग्य है, मैं उतना योग्य पापा नहीं हूँ। मैंने तुम्हें पाल पोसकर सिर्फ बड़ा किया है, बड़ा व्यक्ति होने के लिए तैयार नहीं कर सका हूँ। 

मैं पापा का आशय समझ रही थी। मुझे लग रहा था जिस तरह मैंने अपनी इच्छाशक्ति से असामान्य निर्णय लेकर असामान्य काम किया एवं चैनल के माध्यम से जो बात देश में चर्चा का विषय बनाया है, वह मुझमें छुपी विशिष्ट योग्यता का एक प्रमाण तो है किंतु रोज कुछ अच्छा कर पाने की योग्यता मुझमें नहीं है, यह पापा के मेरे बारे में विचारों का सार (निचोड़) है। 

मैं चुप रही तो पापा ने फिर कहा - आज मिली इतनी चर्चा तुम्हारे कुछ काम तो सरल कर सकेगी, लोगों के बीच में जाओगी तो तुम्हें कुछ फेवर मिल जाएगा किंतु यह देश सवा सौ करोड़ लोगों का देश है। यहाँ नित नए नए चर्चा के विषय बनते हैं और कुछ दिनों में चर्चा से बाहर हो जाते हैं। शीघ्र ही तुम भी ऐसे ही चर्चा से बाहर हो जाओगी। जिस दिन तुम परंपरागत विवाह करना चाहोगी इस मिली ख्याति के कारण तुमसे कुछ लड़के शादी करने को भी तैयार मिलेंगे, यह हम सब के लिए अच्छी एवं अनुकूल बात होगी। जहाँ तक नाराजी की बात है, तुम हमारी इच्छा के विरुद्ध किसी लड़के के साथ भागी नहीं हो और ना ही लड़कियों पर घात लगाए बैठे धूर्त लोगों के किसी बहकावे में तुम आई हो। अतः तुम्हारी मम्मी और मैं तुमसे नाराज नहीं हैं।

पापा की बात पूरी होने पर मौसी ने कहा - जीजा जी, आप सही कह रहे हैं। मुझे तो गौरव अनुभव हो रहा है कि मैं प्रिया की मौसी हूँ। 

इस बात पर पापा हँस दिए थे तो अनायास मैं भी हँसने लगी थी। मम्मी किचन से ही यह वार्तालाप सुन रहीं थीं, यह उनके भी हँस पड़ने की सुनाई दे रही आवाज से हमें समझ आया था। 

रात्रि सोने के समय, मौसी पुनः मेरे शयनकक्ष में साथ थीं। सोने के पूर्व मौसी ने मुझसे कहा - 

प्रिया तुमने जो भी किया, इसका अच्छा या बुरा होना तो भविष्य में पता चलेगा। वर्तमान में तुमने परिवार एवं स्वयं के लिए बहुत चर्चा बटोरी है। फिर भी एक बात को लेकर मुझे संशय है। 

मैंने उनसे पूछने की कोई चेष्टा नहीं की थी। मुझे पता था मौसी मुझसे अपना संशय कहे बिना रह नहीं पाएगी। मैंने, हूँ! बस कहा था। 

मौसी ने कहा - मेरा तो 21 वर्ष में ब्याह हो गया था। तभी से तुम्हारे मौसा जी के साथ तन से तन के मिलन की मुझे आदत हो गई थी। तुम तो अब 25 की हो, क्या तुम्हें इस प्रकार की कामना नहीं होती है?

मैंने कहा - मौसी मेरे सपने एवं महत्वाकांक्षा सामान्य से अलग हैं। मैंने इस बारे में कभी सोचा नहीं है इसलिए अभी तक तो मुझे ऐसी कामना बहुत नहीं सताती है। 

इस पर मौसी ने भविष्यवाणी जैसी घोषणा करते हुए कहा - 

प्रिया, मुझे नहीं लगता तुम बिना इसके रह पाओगी। कभी तो तुम्हारे शरीर की यह भूख तुम्हें मजबूर करेगी। 

मैंने कहा - मौसी मुझे नींद आ रही है। अभी इतना ही कहूँगी कि जब ऐसे मजबूर होना पड़ेगा तब मैं विचार करूँगी। 

फिर मैं चुप हो गई थी। मौसी कुछ और कहती रहीं थीं। मैंने अनसुना किया था। जब वे खर्राटे लेने लगीं तब मैं उनकी बात पर विचार करने लगी थी। यह मैं सच लिख रही हूँ कि - 

“एक अनजानी सी कसक” पिछले लगभग आठ वर्षों से मेरे तन में जगती रही थी किंतु अब तक, ‘असाधारण बनने की मेरी ललक’ उस कसक पर हावी होती रही थी। 

मैं सो गई थी। दो दिन बाद मौसी भी चली गई थी। 

मुझे मिली चर्चा भी शनैः शनैः पुरानी पड़ने लगी थी। तब भी अड़ोस-पड़ोस के लोग अब हममें विशेष रुचि ले रहे थे। 

कोई लड़की या आंटी जिज्ञासा में मुझसे पूछ लेती - प्रिया, नीरज चोपड़ा जी ने तुम्हारी भावना की कोई सुध ली या नहीं?

मैं झेंपते हुए उन्हें उत्तर देती - 

नीरज जी नहीं तो किसी और विख्यात पुरुष से मैं संपर्क करुँगी। मुझे कौन सा किसी के साथ सोना है। एक सहयोग ही तो चाहिए है। जो भी कोई मेरी भावना को मान देगा, उसके बच्चे को मैं अपने गर्भ में स्थान दे दूँगी। 

इस पर कोई कह देती - हाँ सही बात है मगर आईवीएफ तो अत्यंत महँगी पद्धति है, तुम्हारे पास इतना धन कहाँ से आएगा? 

इस पर मैं कहती - मुझे ख्याति मिल गई है, पीछे धन भी आने लगेगा। 

सखी, रिश्ते की बहनें, परिचित लड़कियाँ एवं आंटी, तब खिसियानी (सी) बत्तीसी दिखा कर शुभकामनाएं कहतीं थीं। 

लिखना ना होगा कि परिवार और मेरा, सभी का जीवन पुराने ढर्रे पर चलने लगा था। इस तथाकथित खुद से शादी के “ढोंग” के पहले मैंने टीचर के जॉब के लिए कई स्कूलों में अप्लाई किया था तब बात नहीं बनी थी। फिर जब मेरी शादी को दो माह हो गए और मेरे सपने के “ऊँचे बने ताजिए” ठंडे हो गए तब मैंने टीचर के जॉब के लिए एक अच्छे स्कूल में पुनः आवेदन किया था। आश्चर्यजनक रूप से उसके दो दिन बाद ही मुझे इंटरव्यू कॉल आ गया था। 

मैं इंटरव्यू में गई तो कमेटी में से एक ने पूछा - क्या आप ही “खुद से शादी” फेम वाली प्रिया हैं?

मैंने कहा - हाँ मैं वही प्रिया हूँ। मैं मनोविज्ञान विषय में एम ए हूँ। 

अन्य ने पूछा - अगर हमारे स्कूल में, तुम्हें जॉब दिया जाए तो आप कितनी सैलरी पर हमारा ऑफर स्वीकार करेंगी?

मैंने कहा - आप मुझे अधिकतम कितना दे सकेंगे?

तीसरे ने कहा - वैरी इंटेलीजेंट! प्रिया, हम आपको 40 हजार प्रतिमाह दे पाएंगे। 

मैं अपनी प्रसन्नता प्रकट होने से कठिनाई से रोक पाई थी। यह सैलरी मेरी आशा से अधिक थी। मैंने ऑफर स्वीकार करते हुए कहा था - सर, मैं सहमत हूँ। 

कमेटी ने मुझे नियुक्ति पत्र देते हुए, दो दिन बाद जॉब पर उपस्थित होने के लिए कहा था। मैं प्रफुल्लित हुई, वापस घर लौटते हुए सोच रही थी कि चर्चित हो जाने का लाभ ऐसा होता है। 

घर में सब मेरी जॉब लगने से खुश हुए थे। 

उसी शाम, मेरे पापा एवं मम्मी के लिए एक और सुखद आश्चर्य हुआ था। डोर बेल की ध्वनि गूँजने पर, मैंने दरवाजा खोला था। हमने देखा, मेरी शादी के दूसरे दिन मेरा इंटरव्यू लेने वाला पहला रिपोर्टर सूट-टाई में दरवाजे पर खड़ा था। 

मुझसे अभिवादन करने के बाद उसने कहा - प्रिया मैं आपसे बात करना चाहता हूँ। 

असमंजस में मैंने, उसे घर में आने की जगह दी थी। बैठक में मम्मी-पापा पहले ही बैठे थे। रिपोर्टर ने उन्हें बताया - मेरा नाम नीरज भूतड़ा है। 

पापा के बैठने के लिए इशारा करने पर, नीरज सोफे पर उनके सामने बैठ गया था। बैठने के बाद उसने मेरी तरफ देखते हुए कहा - यदि प्रिया जी, दूसरा विवाह करने को तैयार हों तो मैं इनसे विवाह करना चाहता हूँ। 

मैंने जोर से हँस पड़ने की अपनी इच्छा पर नियंत्रण किया था। तभी मम्मी ने कहा - प्रिया की पहली शादी हुई नहीं है, प्रिया के दूसरे विवाह से आपका आशय क्या है?   

नीरज ने हँसकर कहा - जी मैं वह न्यूज़ चैनल रिपोर्टर हूँ, जिसने प्रिया जी की ‘खुद से शादी’ पर इंटरव्यू लिया और चैनल पर उसका प्रसारण करवाया था। 

कमरे में उपस्थित अन्य सभी के मन में क्या प्रतिक्रिया हो रही थी, यह मुझे पता नहीं थी। मैं अपनी जानती थी। 

मैं सोचने लगी थी, आज मेरा भगवान मुझ पर अति कृपालु था। अगर आज मैं इस नीरज भूतड़ा की जगह ‘नीरज चोपड़ा जी’ से भी विवाह की कामना करती तो शायद मेरा भगवान मेरी यह कामना भी पूरी कर देता। 


(क्रमशः)  


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