Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Comedy

4.0  

Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Comedy

मैंने की खुद से शादी

मैंने की खुद से शादी

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मैंने की खुद से शादी

(गतांक से आगे, तीसरा भाग)     


रात बारह बजे तक खुद से मेरी शादी, संपन्न हो गई थी। 

विवाह भवन के बाहर, कुछ न्यूज़ चैनल के रिपोर्टर्स मेरा साक्षात्कार करना चाहते थे। पापा ने हाथ जोड़कर उनसे कहा था - क्षमा कीजिए, अभी हम सब बहुत थके हुए हैं। आप यदि प्रिया से साक्षात्कार के लिए प्रतीक्षा कर सकते हैं तो प्रिया कल आपसे चर्चा कर सकेगी। 

विवाह स्थल से हम घर लौट रहे थे तब लगभग सभी अतिथि विदा ले कर जा चुके थे। बस में हमारे घर साथ में मौसी और बुआ ही लौटीं थीं। 

पापा ने रिपोर्टर्स से यह बात, उन्हें टालने के लिए कही थी। उन्हें लग रहा था कि कल किसके पास खाली समय होगा जो वह हमारे घर तक आएगा। उनका अनुमान गलत सिद्ध होता लग रहा था। विभिन्न चैनल के तीन रिपोर्टर्स, अपनी गाड़ियों से हमारी पिक अप का पीछा कर रहे थे। ऐसा करते हुए उन्होंने हमारा घर देख लिया था। 

पापा के यह बताने पर कि -

“न्यूज़ चैनल वालों की समझ ही निकृष्ट है, ये तय नहीं कर पाते हैं कि किस समाचार का प्रसारण देश और समाज के लिए अच्छा है, ये महत्वहीन किंतु चटपटी बातों को प्रसारित करने के लिए मरे जाते हैं, मैंने पीछे आई न्यूज़ चैनल की गाड़ियों को देखा था। 

पापा की बात यूँ तो सच थी मगर मुझे न्यूज़ चैनल की निकृष्ट समझ अपने लिए हितकारी लग रही थी। मुझे विश्वास हो गया था कि ये लोग मेरे साक्षात्कार के लिए कल अवश्य ही आएंगे। 

इस विश्वास ने दिन भर से मेरे पर हँसते लोगों के कारण हो रही निराशा से, मुझे उबार लिया था। मैं यह कल्पना करते हुए मन ही मन प्रसन्न हो रही थी कि कल जब तीन तीन चैनल के रिपोर्टर मेरे से बात करते दिखेंगे तो आज मुझ पर हँसने वाले पड़ोसियों, परिचितों एवं सगे-संबंधियों की छाती पर ईर्ष्या का साँप लोट लगाएगा। मैं थकान होने पर भी, अपने में आत्मविश्वास का संचार होता हुआ अनुभव करने लगी थी। 

मुझे लग रहा था, मुझ पर हँस लेने का अवसर इन लोगों के पास बस आज तक था। कल से मुझे मिलती और अधिक चर्चा पर, ये सब लोग ईर्ष्या से जल-भुन कर कोयला हो रहे होंगे। 

इस विचार से मेरे ओठों पर गर्व की मुस्कान सज गई थी। मैं मुस्कुराते हुए हमारे घर के सामने आकर खड़ी हो गई पिक-अप से उतर रही थी।      

विवाह होकर मैं ससुराल तो गई नहीं थी। अतः जैसा होता है, फूलों से सजी और इत्र से सुगंधित परंपरागत सुहाग सेज मेरी प्रतीक्षा नहीं कर रही थी। स्वयं से मेरे विवाह होने के बाद, हमारे घर-परिवार में, मेरे स्टैट्स में कोई अंतर नहीं आया था। जब सब सोने लगे तब नव-विवाहिता मुझे, अपनी शादी की प्रथम रात्रि में, अपना पलंग छोड़ कर, धरती पर बिछाए गए गद्दे पर सोना था। मेरे पलंग पर बुआ एवं गद्दे पर मेरे साथ मौसी सोने की तैयारी कर रहीं थीं। 

अपने विवाह का दिन, वह दिन होता है जो किसी साधारण व्यक्ति को भी महत्वपूर्ण बना देता है। विवाह की प्रथम रात्रि वह रात होती है, जिसमें हर लड़की को अपना महत्व चरम पर अनुभव होता है। 

मैं बाथरूम में वस्त्र बदलते हुए आशा कर रही थी कि मेरा अनूठा विवाह, मुझे आने वाले समय में साधारण से एक असाधारण विशिष्ट व्यक्ति बना देगा। ऐसे विचार करते हुए, मुझे आज अपने विवाह के दिन में, सब का विभिन्न मुद्राओं में मुँह छुपा कर या निर्लज्जता से, मुझ पर हँसने, हास्य-व्यंग्य में कही गईं बातें एवं दृश्य स्मरण आ गए थे। इससे एक बार पुनः मुझे अप्रियता का अनुभव हुआ था। यह मेरे लिए महत्वपूर्ण दिन सिद्ध नहीं हुआ था। साथ ही विवाह की प्रथम रात्रि में मेरे कमरे में दो घुसपैठिए (बुआ एवं मौसी) के होने से वह भी कुछ अच्छी बीतेगी, उसकी आशा नहीं थी। 

तभी बाथरूम के दरवाजे पर तेज थपथपाहट से मेरी विचार तंद्रा भंग हुई थी, मुझे बुआ का उतावला स्वर सुनाई दिया था, वे कह रहीं थीं - प्रिया जल्दी बाहर आओ, मुझे जोर से प्रेशर आ रहा है। 

मैंने शीघ्रता से अपने वस्त्र एवं विचार समेटते हुए दरवाजे खोले थे। बुआ ने बाथरूम में घुसते हुए पीछे, कुंडी भी नहीं चढ़ाई थी। मैंने ही बाहर से उसे बोल्ट किया था। 

मैं धरती पर बिछे बिस्तर पर लेटने के पहले मम्मी, पापा एवं भाई क्या कर रहे हैं यह देखने के लिए अपने कक्ष से बाहर आई थी। वे तीनों भी सोने की तैयारी करते दिखे तो मैंने, उनसे शुभ रात्रि कहा और किचन से गिलास में पानी लेकर, मैं वापस लौट आई थी। 

यहाँ मैंने देखा कि बाथरूम से बुआ के पुकारने पर मौसी ने दरवाजा खोला था और बुआ के निकलते निकलते मौसी खुद बाथरूम में भीतर चलीं गईं थीं। 

इस दृश्य से मुझे समझ आ गया था, दोनों ने मेरे विवाह को, दिन भर खाने-पीने का अवसर और उसमें आनंद लेने जैसे लिया था। 

बुआ पलंग पर लेट गईं तो मैंने स्विच ऑफ करके एलईडी लैंप बंद किया था और मैं धरती पर लगाए बिस्तर पर आ लेटी थी। मुझे तुरंत ही नींद आ गई थी। 

अभी मुझे सोए शायद पाँच मिनट भी नहीं हुए थे कि मौसी के हिलाने पर मेरी निद्रा भंग हुई थी। मुझे बुआ के खर्राटे के साथ, मौसी की आवाज सुनाई दी थी। मौसी कह रहीं थीं - प्रिया सो गई क्या? मुझे तो जल्दी नींद नहीं आती है। 

मैं, ‘हूँ’ कहते हुए सोचने लग गई थी कि मौसी के मन में, मुझसे करने के लिए बहुत सी बातें भरीं हुईं हैं। इसे निकाले बिना वे मुझे नहीं सोने देने वाली हैं। 

फिर मौसी जैसे खुद से कह रहीं हों - मैं सो भी जाती मगर तेरी बुआ के खर्राटे से तो लगता है, मुझे रात पर जागना पड़ेगा। 

मैंने उनींदे स्वर में कहा - मौसी आप जाकर, मम्मी के साथ सो जाओ। 

मौसी ने कहा - कैसी बात कर रही है, वह तो तेरे पापा के साथ सो रही है। 

मैं आँख बंद किए हुए ही हँस पड़ी थी। अंधेरे में मौसी मेरा हँसना नहीं देख पाईं थीं। 

वे कहने लगीं थीं - प्रिया ये तूने कैसी शादी की है। मधुयामिनी (First Night) में तुझे अपने पति के साथ सोना चाहिए था। तूने शादी की मगर तेरा कोई पति ही नहीं है। (फिर जैसे खुद से कह रहीं हों) हमारी मधुयामिनी में तेरे मौसा ने, मुझे जैसा प्यार किया था, उसके बाद कभी फिर वैसा प्यार नहीं किया। खैर छोड़ इस सबको, तू समझ नहीं पाएगी। तू छोटी है तेरी मधुयामिनी नहीं तो तू कभी बड़ी नहीं हो पाएगी। 

कहते कहते मौसी सो गईं थीं। मौसी की सब बातें झूठ हुईं थीं। पहले बुआ के खर्राटे की शिकायत ऐसे कर रहीं थीं, जैसे मौसी स्वयं खर्राटे न लेती हों। मौसी ने यह भी कहा था कि मुझे तो जल्दी नींद नहीं आती है। यह दोनों बातें झूठ सिद्ध हुईं थीं, मगर उनके इन झूठों के बीच मेरी लगती नींद रूठ गई थी। 

अब मुझे सखियों की आज सुबह कही बातें स्मरण आ गईं थीं। तीनों ने मिलकर मेरी हँसी उड़ाने के लिए कहा था कि मैं खुद से शादी करने के बाद भी अकेली माँ बनकर एक विश्व रिकार्ड स्थापित कर सकती हूँ। 

मैं सोचने लगी कि मुझे इस बात को चुनौती जैसे ग्रहण करनी चाहिए। फिर मैं दिमाग दौड़ाने लगी थी कि इस चुनौती में सफल होकर, मैं कैसे अपनी जय-जयकार करवा सकती हूँ। 

अब मेरा मस्तिष्क पूर्ण तीव्रता से सक्रिय हुआ था। ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता नीरज चोपड़ा की मैं प्रशंसक थी। मैं मन ही मन एक निश्चय कर रही थी। 

यह निश्चय करने के बाद मेरा मन किया कि अभी ही अपना यह निश्चय मैं लाउडस्पीकर पर सबको बताऊँ। 

मुझे लग रहा था कि कल जब मैं अपने निश्चय की घोषणा, चैनल रिपोर्टर्स के सामने अपने साक्षत्कार के माध्यम से करूंगी तब खुद से शादी करने के कारण जितने लोगों का ध्यान, मैं अपनी और खींचने में सफल हुईं हूँ, उससे कई गुना लोगों का ध्यान अपनी और आकर्षित कर सकूँगी। 

मैं इस विचार से प्रसन्न हुई कि खुद से शादी करते हुए, मैं साधारण से असाधारण होने की दिशा में चलना प्रारंभ चुकी हूँ। मैं उस मार्ग और दिशा की ओर दृढ़ संकल्पित होकर चलूँगी। मैं, मुझ पर सब हँसने वालों को अब रुला कर रहूंगी। 

अब मुझे एक तरह की संतुष्टि अनुभव होने लगी थी। फिर बुआ और मौसी के तीव्र खर्राटों के बीच भी मैं सो गई थी। 


(क्रमशः) 


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