मैंने की खुद से शादी (6)
मैंने की खुद से शादी (6)
मैंने की खुद से शादी
(गतांक से आगे, छठवाँ भाग)
पापा-मम्मी, नीरज के प्रस्ताव से उत्साहित हो उसके बारे में जानने के लिए विभिन्न प्रश्न उत्तर करने लगे थे। मेरा ध्यान इन बातों में नहीं था। निश्चित ही एक पटवारी की अपेक्षा यह मेरे लिए अधिक अच्छा रिश्ता था। तब भी नीरज से शादी मुझे साधारण युवती ही बना देने वाली थी। मैं इसके लिए तैयार नहीं थी।
मैं चाय-बिस्किट्स लाने के बहाने से किचन में आ गई थी। बाद में चाय पीते हुए नीरज ने मेरे मनोभाव समझने के लिए, मुझे बार बार निहारा था। मैं उससे दृष्टि चुराती रही थी। रिपोर्टर नीरज अपने जॉब में अनेक तरह की घटनाओं को कवरेज देने के लिए, अनेक लोगों से मिलने के कारण सामान्य व्यक्ति से अधिक अच्छे से किसी की फेस रीडिंग कर लेता था। उसने समझ लिया कि मैं उसके प्रस्ताव में कोई रुचि नहीं ले रही हूँ। वह यह भी समझ गया था कि मेरे मम्मी-पापा की मुझ पर चल सकी तो वे निश्चित ही मुझे उससे विवाह के लिए सहमत करा लेंगे।
चाय उपरान्त जाते हुए नीरज ने कहा -
विवाह करके किसी का साथ करना जीवन भर का प्रश्न होता है। अतः मैं इस पर निर्णय लेने के लिए प्रिया जी और आपको पर्याप्त समय लेने के लिए कहता हूँ। मैं प्रतीक्षा करूँगा कि प्रिया जी मेरे प्रस्ताव को स्वीकार करें।
जब नीरज जाने के लिए उठने लगा तब मैंने उससे कहा -
नीरज जी, कदाचित् मैं आपके प्रस्ताव को स्वीकार नहीं कर पाऊँगी। मेरी “खुद से शादी” मेरी असाधारण व्यक्ति होने की महत्वाकांक्षा के साथ ही नारी शोषण की पुरुष मानसिकता से विद्रोह है। मैं अपने निर्णय पर दृढ़प्रतिज्ञ हूँ। फिर भी आज मैं आपका हार्दिक आभार जता रही हूँ कि आपने मुझे अपनी पत्नी होने के योग्य समझा है। साथ ही मेरे “खुद से शादी” को अपनी चैनल से देश भर में प्रसारित किया है।
नीरज ने हँसते हुए हाथ जोड़कर कहा - मुझे तसल्ली है कि आपने स्पष्ट “ना” की अपेक्षा कुछ सकारात्मक शब्द कहे हैं। आप विचार करने के लिए समय लीजिए। मुझे अब भी आशा है आप मेरे प्रस्ताव का मान रखेंगी।
इतना कहने के उपरांत नीरज चला गया था, दरवाजे पर उसे पापा-मम्मी ने विदा किया था।
मैंने स्कूल का जॉब ज्वाइन कर लिया था। मुझे कक्षा चार और पाँच का गणित विषय पढ़ाने के लिए कहा गया था। मैंने अपनी पहली वेतन से लैपटॉप खरीदा और उसमें इन क्लासेज के बच्चों को गणित विषय पढ़ाने के सही तरीके के संबंध में पढ़ा और अनेक वीडियो देखे/सुने थे। मैं तीन माह में बच्चों की फेवरेट टीचर भी हो गई थी।
अब तक यह स्कूल अपने विज्ञापनों में मुझे आगे करने लगा था। स्कूल डायरेक्टर मेरी “खुद से शादी” फेम का लाभ लेने लगे थे। मैं उनका मनोविज्ञान समझते हुए इसे सामान्य बात मानकर अपना सहयोग देती थी। सब होते हुए भी (After all) इससे मेरी प्रसिद्धि भी बढ़ रही थी।
स्कूल की प्रिंसिपल सविता जोशी मैम, प्रौढ़ एवं अनुभवी महिला थीं। वे मुझमें अतिरिक्त रुचि लेती थी। वे सभी टीचर एवं बच्चों से अति स्नेहपूर्वक व्यवहार करतीं थीं। मुझे स्कूल में पढ़ाते हुए छह माह से अधिक समय हुआ तब एक दिन उन्होंने मुझे अपने कक्ष में बुलवाया और कहा -
मैं इस रविवार आपको मेरे घर पर मेरे साथ दोपहर के भोजन के लिए आमंत्रित करना चाहती हूँ। अगर आप स्वीकार करो तो मुझे प्रसन्नता होगी।
मैं सविता मैम का आदर करती थी। मैंने तुरंत ही उत्तर दिया - मैम आपके द्वारा मुझे दिए जा रहे मान के लिए आपकी कृतज्ञ हूँ। मैं रविवार अवश्य ही आपके निवास में, साथ भोजन ग्रहण करुँगी।
रविवार के दिन मैं प्रिंसिपल मैम के घर पहुँची थी। मुझे अचरज हुआ कि अपने छोटे से मगर व्यवस्थित घर में वे अकेली थीं। मेरे मुख के भाव समझकर उन्होंने हँसते हुए कहा - प्रिया मैं अकेली रहतीं हूँ। अब स्कूल ही मेरा परिवार है। घर में मैं अकेली रहती हूँ। आपमें और मुझमें अंतर यह है कि आप “खुद से शादी” करके और मैं अविवाहित होने से अकेली हूँ।
यह मेरे लिए नई जानकारी थी। मैं उनके विवाह नहीं करने के बारे में सोचने लगी थी। मैम ने अपने साथ बैठाकर अत्यंत स्नेह एवं आग्रह से, मुझे अपने हाथों से बनाया भोजन करवाया था। भोजन उपरांत उन्होंने मुझे सोफे पर बैठाया एवं स्वयं फ्रिज से आइसक्रीम ले आईं थीं। मेरे साथ बैठकर खाते हुए उन्होंने बताया -
प्रिया, मैंने आपकी खुद से शादी के बाद का इंटरव्यू देखा था। तब से मैं समझने की कोशिश करती रही हूँ कि चर्चा में आने के लिए परंपरा से अलग अनूठा करने से कहीं हम एक गलत परंपरा तो नहीं बना देते हैं।
मैं उनकी बात से अचकचा गई थी। फिर भी मैंने कहा - मुझे नहीं लगता कि मेरी ऐसी शादी करने पर “खुद से शादी” की यह परंपरा चलने लगेगी।
अब मैम ने कहा -
मैं सोचती हूँ विवाह की परंपरा से अलग, मैं अविवाहित जीवन व्यतीत कर रही हूँ। अविवाहित और भी कुछ व्यक्ति रहते आए हैं। मैं अकेली हूँ। आप भी खुद से शादी करके अकेली ही हैं। मेरे मन में प्रश्न आता है कि “खुद से शादी” चर्चा में आने से आपको क्या लाभ मिला है?
मैम मेरे से दुगुनी उम्र की थीं। मुझे उनका आदर रखना था। तब भी मैंने कहा - मैम चर्चा मिलने का लाभ, स्कूल की नौकरी और एक प्रसिद्ध चैनल के रिपोर्टर का विवाह प्रस्ताव मुझे मिले हैं?
मैम ने हँसते हुए कहा - ये छोटे लाभ हैं, आप यह बताओ कि नीरज चोपड़ा ने आपकी इच्छा अनुरूप आपसे सहयोग किया है?
मैंने झेंपते हुए कहा - शायद मेरी बात उन तक पहुँची ही न हो। फिर नीरज जी नहीं तो कोई और विख्यात व्यक्ति मेरी इच्छा अनुरूप सहयोग कर देगा।
मैम ने कहा - आपका जीवन अनुभव कम है। मुझे नहीं लगता कि कोई ऐसा फेमस व्यक्ति आपको स्पर्म डोनेट करेगा?
मैंने पूछा - मैम आपको ऐसा क्यों लगता है?
मैम ने कहा - कोई भी अपने दायित्व समझने वाला व्यक्ति अपनी संतान, उस युवती को नहीं सौपेंगा जो अकेली है। वास्तव में हर बुद्धिमान व्यक्ति यह जानता है कि अपवादों को छोड़ें तो एक बच्चे का संतुलित लालन पालन, माँ-पिता दोनों की छत्रछाया में सुनिश्चित होता है।
मुझे मैम की बात समझ आई थी। मैं चुप रह गई थी। तब मैम ने ही आगे कहा - खुद से शादी के बाद आपको अकेली रहना है। ऐसे अकेले तो बिना शादी के भी रहा जा सकता है। सिर्फ चर्चा का भूखा कोई व्यक्ति यदि कोई कोई नया “ढोंग” रचने लगे तो समाज व्यवस्था ध्वस्त ही हो जाएगी।
अब साहस करके मैंने कहा - मैम, अगर मैं सही हूँ तो आपने अविवाहित रहने का निर्णय, पति द्वारा शोषण एवं गृह हिंसा/कलह की घटनाओं से बचने के लिए लिया होगा?
मैम ने सोचा और उत्तर दिया - हाँ प्रिया आपका अनुमान सही है। फिर अब जब मेरे विवाह की आयु बीत चुकी है मैं अपने इस निर्णय को गलत मानने लगी हूँ।
मैंने उत्सुकता से पूछा - मैम, गलत मानने का कारण क्या है?
मैम ने कहा - एक नहीं कई कारणों से मैं इसे गलत मानने लगी हूँ। अपने अनुभव से मैंने समझा है, हर पुरुष, नारी शोषण या गृह कलह/हिंसा करने वाला नहीं होता है। अनेक प्रकरणों में गृह कलह के लिए दोषी स्त्री भी होती है। दूसरा कारण यह भी है कि पिछले वर्ष मैं कोरोना से अस्वस्थ हुई थी। अकेली होने और कोरोना के भय से परिचितों का सहयोग नहीं मिलने से, मैं घर में बहुत बुरी स्थिति में अकेली पड़ी रही थी। यह आश्चर्य की बात ही है कि मैं आज भी जीवित हूँ। उस समय मुझे लगता था कि अगर मैं विवाहित होती, मेरे भी पति/बेटे-बेटी होते तो मेरा वह समय इतना वेदनादायी नहीं होता। एक कोई मेरा पति होता, वह कितना भी बुरा होता मुझे दवाएं तो लाकर देता।
कहते हुए मैम की आँखें छलक आईं थीं। यह देख मेरा भी हृदय द्रवित हो गया था। मुझे लगा सपनों के आकाश में ऊँची उड़ान भर रही मुझे, मैम ने जीवन यथार्थ के कठोर धरातल पर उतार दिया था। मैं विचार करने को बाध्य हुई थी।
तभी मैम ने पुनः कहना आरंभ किया था - प्रिया मुझे एक कारण और भी लगता है कि परिवार संस्था में दोष आने पर, उसे त्याग देना तो हमारा दायित्वों से विमुख होना है। यह हमें अपना दायित्व समझना चाहिए कि परिवार संस्था में आ गए दोषों को दूर करने के लिए हम अपनी बुद्धिमत्ता का प्रयोग करें। और परिवार को सुखी परिवार की श्रेणी में ले आएं।
मैम की बातों से मैं सोचने लगी कि ‘खुद से शादी’ के बाद मैम की उम्र तक अकेली रहने पर क्या मैं भी ऐसा पछतावा करुँगी। फिर मैंने एक प्रश्न किया -
मैम, हमारे समाज में विवाह का अर्थ पति-पत्नी में शारीरिक समागम माना जाता है। मैं अपने जीवन में इससे अधिक महत्व अपनी महत्वाकांक्षाओं को देती हूँ। इसलिए मैंने “खुद से शादी” का स्वाँग रचाया है कि कोई मुझे अविवाहित मानकर विवाह के लिए बाध्य न करे।
मैम ने कहा - प्रिया आप के ‘अधिक महत्व’ कहने में यह छुपा हुआ है कि कहीं ना कहीं पुरुष समागम की आपकी भी कामना होती है। इस बारे में मेरा यह कहना है कि आपको अनेक पुरुष मिलेंगें जो आपकी 50 वर्ष की आयु तक आपसे समागम को इच्छुक मिलेंगे। फिर जैसे जैसे उम्र बढ़ेगी ये बिरले होते जाएंगे। परिवार में पति ही वह पुरुष होता है जो पत्नी का साथ आजीवन देता है। अभी आपकी उम्र पड़ी है। आप एक बार फिर अपने निर्णय की पुनः समीक्षा अवश्य करना।
मैम की यह बात संकेत थी कि अब मुझे विदा लेना चाहिए। मैंने हाथ जोड़कर कहा था - मैम स्वादिष्ट भोजन और हितैषी परामर्श के लिए बारंबार धन्यवाद। मैं आपकी कहे बिंदुओं पर अवश्य विचार करुँगी।
मैम ने मुझे दरवाजे पर हँसते हुए विदा किया था।
अपनी स्कूटी से घर लौटते हुए मैं विचारों में खोई थी। मेरा एक मन कह रहा था, मेरे मम्मी-पापा भी विवाह करने में मेरा भविष्य सुखद मानते हैं। सविता मैम जो अविवाहित हैं, वे भी उम्र के इस मोड़ पर विवाह नहीं करने को गलत मानती हैं। मैं असमंजस में थी कि जिनको जीवन का अनुभव मुझसे अधिक है, क्या मुझे उनकी इच्छा/परामर्श का मान करना चाहिए?
(क्रमशः)
