मैं
मैं
अनुराग ने कहा-गुंजन आज ऑफिस नहीं जाना माँ की तबियत अचानक बिगड़ गई है।
गुंजन- अनुराग मेरी बहुत इंपार्टेंट मीटिंग है मैं नहीं रुक सकती हूँ। आज आप रुक जाइए कल से दो दिन की मैं छुट्टी ले लेती हूँ।
माँ वैसे भी मैंने सब कुछ बना दिया है आपके बेड के पास दवाइयाँ पानी सब रख दिया है। आप बेफिक्र रहिए मैंने मीरा को भी बताया है कि वह बीच में एक बार आपको आकर देख लें।
गुंजन रुको तुम मुझसे कैसे कह सकती हो कि मैं ऑफिस से छुट्टी ले कर रुक जाऊँ तुम्हें मालूम है न पिछले महीने ही मुझे प्रमोशन मिला था और आज अचानक मैं नहीं गया तो बॉस क्या कहेंगे।
दोनों को लड़ते हुए देख माँ ने कहा कि- देख अनु वह कह रही है न उसने सब कुछ कर दिया है फिर फ़िक्र क्यों करता है। मैं बिस्तर पर नहीं पड़ी हूँ उठ कर अपना काम कर सकती हूँ। गुंजन बेटा तुम जाओ मैं ठीक हूँ।
ओके माँ आप अपना ख़याल रखिए मैं शाम को जल्दी आ जाऊँगी। कहते हुए गुंजन भागते हुए बाहर की तरफ़ जाती है।
अनुराग बड़बड़ा रहा था कि इसीलिए मुझे नौकरी करने वाली लड़कियाँ नहीं पसंद थीं। माँ ने ही ज़बरदस्ती लड़की अच्छी है सुंदर है पढ़ी लिखी है बहुत बड़ी कंपनी में नौकरी करती है कहकर करा दिया था। पहले मुझे भी लगता था कि चलो दो सैलरियाँ आ जाएँगी।उस समय तो माँ पिताजी दोनों थे तो सब अच्छा लगता था। माँ बहुत कुछ सँभाल लेती थी। पिछले साल पिताजी के गुजरने के बाद से माँ अकेली पड़ गई थी और हमेशा कुछ न कुछ बीमारी चलता ही रहता है। कई बार गुंजन से मैंने कहा भी था कि जॉब छोड़ दो और आराम से घर में बैठो माँ की देखभाल करो फिर बच्चे होंगे तो उनकी भी देखभाल करनी पड़ेंगी सारी ज़िम्मेदारियाँ एक साथ नहीं कर सकोगी पर मेरी बात कहाँ चलती है। माँ भी उसी का पक्ष लेकर कहती है कि मैं रोज़ बीमार थोड़ी न होती हूँ।
इसी उधेड़बुन में था कि माँ ने कहा कि - अनु तुम्हें ऑफिस नहीं जाना है।
जा रहा हूँ माँ इस गुंजन के कारण सुबह सुबह मूड ख़राब हो गया है। माँ मैं शाम को जल्दी आ जाऊँगा। अपना ख़्याल रखिए कहते हुए चला गया।
यशोदा सोचने लगी आजकल अनुराग को क्या हो गया है कि पहले ऐसा चिड़चिड़ा नहीं था। वह अपने पिता से बहुत प्यार करता था। उनके अचानक से गुजर जाने के बाद से वह माँ को लेकर भी इनसिक्योर हो गया है। मुझे गुंजन को भी समझाना पड़ेगा। वह लड़की बहुत अच्छी है पर ऑफिस में काम है तो किसी का कहना नहीं मानती है।
शाम को गुंजन देर से आई प्रॉजेक्ट सबमिट करके आने में देरी हो गई थी। अनुराग पहले ही आ गया था उसी ने चाय बनाई थी और माँ बेटे मिलकर चाय पी रहे थे। गुंजन के आने के बाद वह फ़्रेश होकर अपने लिए चाय बनाकर आई और जैसे ही वह बैठी अनुराग उठकर चला गया। माँ ने कहा कि थोड़ा ग़ुस्से में है तुम परेशान न हो ठीक हो जाएगा। अनुराग ने रात को सोने से पहले भी उससे बात नहीं की थी। गुंजन ने भी बात नहीं की थी। दोनों ने अपनी परेशानी को दूर करने की कोशिश नहीं की थी।गुंजन सुबह उठी तो देखा अनु उठ गया था और अपनी माँ से बातें कर रहा था। गुंजन ने जल्दी से खाना बनाया और अनु के लिए टिफ़िन बाक्स बाँध कर माँ के कमरे में आई।
गुंजन आज ऑफिस नहीं जा रही है क्या ? माँ ने पूछा।
नहीं माँ मैंने ऑफिस से छुट्टी ले रखी है। ऑफिस दो दिन बाद जाऊँगी।
अनुराग ने कहा-माँ इससे कहिए कि इसे छुट्टी ले कर घर में रहने की कोई ज़रूरत नहीं है मेरी माँ है न मैं ख़ुद उसकी देखभाल कर लूँगा। मुझे किसी के मदद की ज़रूरत नहीं है।
माँ ने कहा- देख अनु बहू के साथ इस तरह बात मत कर। उसे ऑफिस में काम है तो उसकी क्या गलती है।तुमने वह कहावत सुनी होगी न जो करे नौकरी उसकी क्या हेकड़ी। फिर भी ऑफिस जाने के पहले उसने सारा इंतज़ाम किया था। मेरे नाश्ते से लेकर दवाइयाँ सब रख कर गई थी। इससे ज़्यादा और क्या कर सकते हैं। तुम्हें उसके काम की कद्र करनी चाहिए। तुम्हारे पिताजी मुझसे इस तरह से कभी बात नहीं करते थे।हमेशा मेरी और मेरे काम की इज़्ज़त करते थे। मैं नौकरी नहीं करती थी फिर भी मेरी मदद कर देते थे और तू उस की मदद तो करने की सोचता भी नहीं है और ऊपर से ताने भी देते रहता है। यही सीखा है तुमने अपने पापा से मुझे अपनी परवरिश पर शर्म आती है। मैं देख रही हूँ आजकल उससे बात न करने और झगड़े करने के लिए मौका ढूँढता रहता है।
माँ मैंने उससे क्या कहा है बोलिए आप तो मुझे ही बातें सुना रही है। जब पापा की तबियत ख़राब हो गई थी तब आप उनकी देखभाल कर लेती थी। आपने हम लोगों को डिस्टर्ब नहीं किया था। आज आप अकेली हैं और मैं अच्छा कमा लेता हूँ तब इसे नौकरी करने की ज़रूरत क्यों है आराम से घर में रह सकती है न पर मेरी बात तो उसे सुनना ही नहीं है।
अनु सिर्फ़ एक दो दिन की बीमारी के लिए अच्छी खासी नौकरी कोई छोड़ देता है क्या ?
मेरी बात मान और ऑफिस के टेंशन तो उसे है ही तू भी मत सता। माँ ने उसे बहुत समझाया तब जाकर उसने गुंजन से माफ़ी माँगी। माँ की बीमारी के ख़त्म होते ही दोनों का जीवन फिर से पटरी पर आ गई।
माँ हमेशा समझाती है कि थोड़ी सी भी परेशानी आए तो उसे दूर करने का उपाय ढूँढना चाहिए न कि एक दूसरे पर दोष डालकर अलग रहने के बारे में सोचना चाहिए या नौकरी छोड़ कर घर में बैठने की सोचना चाहिए।
अनुराग की माँ ने अपनी सूझबूझ से दोनों के घर को टूटने से बचा लिया। मैं को हम में बदल कर देखेंगे तो रिश्तों में मिठास नजर आएगी।
