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Sangeeta Aggarwal

Inspirational

4  

Sangeeta Aggarwal

Inspirational

मैं मां हूं

मैं मां हूं

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"अरे सोनल ये क्या तुम अचानक कैसे और ये बैग!" अपनी विवाहित बेटी को दरवाजे पर देख स्मृति जी ने पूछा।

" मम्मी मैं वो घर छोड़ आई हूं हमेशा को जहां सिर्फ मुझसे काम लिया जाता पर मेरी बातों को कोई एहमियत नहीं दी जाती!" सोनल रोते हुए बोली।

" पर बेटा...!" स्मृति जी कुछ बोलने को हुई की तभी उनके पति महेश वहां आ गए..." क्या पर बेटी से सब कुछ दरवाजे पर ही पूछोगी , चलो सोनल बेटा अंदर!" बेटी को ले जाते हुए महेश जी बोले।

" अरी सोनल तू कब आई!" सोनल की दादी मिथलेश जी सोनल को गले लगाती हुई बोली।

" दादी मैं अब हमेशा को आ गई हूं अब उस घर में नहीं जाऊंगी कभी!" सोनल रोते हुए बोली।

" अरे मेरी लाडो रो मत ऐसा क्या किया उन्होंने हमारी बच्ची के साथ!" मिथलेश जी बोली।

" दादी तुषार को मेरी कोई कद्र नहीं हर वक़्त मम्मी का ध्यान रखो मम्मी की बात मानो कहीं जाओ तो मम्मी को बता कर जाओ मैं तंग आ गई हूं दादी वो घर नहीं जेल है जिसकी जेलर हैं तुषार की मम्मी!" सोनल गुस्से में बोली।

" ऐसे कैसे कर सकते वो मेरी बेटी के साथ बेटा अब जब तक वो खुद आ तुमसे माफ़ी ना मांगे कहीं जाने की जरूरत नहीं तेरा बाप जिंदा है अभी !" महेश जी गुस्से में बोले।

" पर ...!" स्मृति बोली।

" क्या पर वर तुम काम करो अपना चुपचाप समझी!" महेश जी लगभग चिल्लाते हुए बोले।

ये सोनल , उसके मां बाप और दादी हैं सोनल अपने पापा और दादी की जरूरत से ज्यादा लाडली है ऐसा नहीं कि स्मृति जी सोनल को प्यार नहीं करती अरे भई मां हैं वो तो सबसे ज्यादा प्यार करती एक मां अपने बच्चो को पर वो सोनल की गलत बात का विरोध भी करती साथ ही प्यार और ज़िद्द का अंतर समझती हैं ... सोनल की शादी अभी तीन महीने पहले ही उसकी पसंद के लड़के के साथ धूमधाम से हुई थी... तुषार एक पढ़ा लिखा सुलझा हुआ लड़का है फिर आज ऐसा क्या हुआ जो सोनल सामान के साथ यहां है।

तभी फोन की घंटी बजी...

" हेल्लो कौन!" स्मृति जी ने फोन उठा कर पूछा।

" मां सोनल वहां आई है क्या मैं बाज़ार गया था और मम्मी मंदिर तो घर आकर देखा सोनल नहीं थी सब जगह ढूंढा फिर देखा समान भी नहीं उसका!" सामने से तुषार की घबराई हुईं आवाज़ आई।

" चिंता

" मां उसका गुस्सा बेवजह है!" तुषार बोला।

" मैं जानती हूं बेटा तुमसे मिलना चाहती हूं मैं क्योंकि तुम्हारी बाते भी सुनना चाहती हूं बोलो कब मिल सकते हो?" स्मृति जी बोली।

" मां आज शाम को कैफेटेरिया में मिलते हैं छह बजे!" तुषार बोला।

" ठीक है बेटा!" स्मृति जी ने ये बोल फोन काट दिया।

" किसका फोन था ?" मिथलेश जी ने पूछा।

" तुषार का .... सोनल तुम्हे इस तरह बिन बताए नहीं आना चाहिए था अपने पति और सास की गैर हाजिरी में !" स्मृति जी बोली।

" कर दी शिकायत आपसे मेरी !" सोनल गुस्से में बोली।

" मेरी बेटी अपने घर आई है तो उसे जरूरत नहीं इजाज़त की !" महेश जी बोले।

" चलो सोनल अपने कमरे में फ्रेश हो नाश्ता करो पहले!" स्मृति जी सोनल से बोली।

शाम को स्मृति जी बाज़ार का बहाना कर तुषार से मिलने पहुंची

" नमस्ते मां" तुषार ने स्मृति जी के पैर छुए।

" जीते रहो बेटा ... बेटा सोनल दिल की बुरी नहीं बस लाड़ प्यार में थोड़ी ज़िद्दी हो गई है तुम मुझे बताओ हुआ क्या था ?" स्मृति जी कुर्सी पर बैठती बोली।

" मां मैं जानता हूं सोनल बुरी नहीं मुझे उससे कोई दिक्कत भी नहीं पर ना जाने क्यों उसे मेरे घरवालों से दिक्कत है मम्मी का प्यार उसे टोका टाकी लगता जबकि मम्मी उसे पलकों पर बैठा के रखती .... अब कल की बात है सोनल अपनी दोस्त के यहां गई थी काफी देर हो गई पर ना वो आई ना उसने फोन किया मम्मी को चिंता हुई तो उसे फोन किया फोन भी उसने नहीं उठाया मेरे ऑफिस से आने बाद मम्मी ने मुझे उसे लेने जाने बोला पर जाता कहां उसने दोस्त का पता भी तो नहीं बताया था !" ये बोल तुषार रुक गया।

" हम्म फिर?" स्मृति जी बोली।

" रात को नौ बजे सोनल आई तब तक हमारी जान अटकी रही उसके आने पर मम्मी ने इतना कहा कि बेटा देर हो गई थी तो फोन कर देती तुषार को बुला लेती जमाना बहुत खराब है तुम जानती हो बस इसी बात पर सोनल ने काफी कुछ बोल दिया वो गुलाम नहीं किसी की जो अपनी मर्जी से कहीं जा नहीं सकती बहू लाए हो या नौकर को हुक्म चलाते सब और रात को कमरा बन्द कर पड़ी रही सुबह बिन बताए आपके पास चली गई !" तुषार बोला।

" बेटा सोनल ने गलत किया बहुत उसे समझाना मेरा काम है मैं तुमसे माफ़ी मांगती हूं !" स्मृति जी बोली।

" अरे नहीं मां ये आप क्या बोल रही आप हमारी मां हो मां कभी माफ़ी नहीं मांगती वो तो आशीर्वाद देती है !" तुषार बोला ।

" सोनल की खुशकिस्मती है जो तुम सा जीवन साथी मिला उसे ... अब में चलती हूं बेटा सोनल खुद आएगी वापिस अपने घर तुम नहीं आओगे उसे लेने वरना उसे अपनी बात मनवाने की आदत पड़ जाएगी!" स्मृति जी ने कहा और वहां से चल दी।

" मम्मी कहां गई थी आप!" घर आने पर सोनल ने पूछा।

" बेटा वकील के पास गई थी !" स्मृति प्यार से बोली 

" वकील के पास क्यों मम्मी?" सोनल धड़कते दिल से बोली।

" तुम्हारा तलाक करवाना है ना !" स्मृति लापरवाही से बोली।

" तलाक..... मम्मी क्या बोल रही हो आप?" सोनल चिल्लाते हुए बोली।

सोनल की आवाज़ सुनकर महेश जी और मिथलेश जी भी आ गए।

" क्या बात है सोनल बेटा ?" महेश जी बोले।

" इससे क्या मुझसे पूछिए ... सोनल उस घर जाना नहीं चाहती ... तुषार बेवजह माफ़ी नहीं मांगना चाहता तो मैने सोचा है सोनल का तलाक करा दिया जाए और इसे इस रिश्ते से आज़ाद कर दिया जाए!" स्मृति शांत स्वभाव से बोली।

" पापा मुझे तलाक नहीं चाहिए तुषार से आप समझाओ मम्मी को ये क्या बोले जा रही है!" सोनल रोते हुए बोली।

" अच्छा तो कल रात किसकी गलती थी सबको तुम खुद बताओ !" स्मृति बोली।

" वो... मैं !" सोनल हकलाने लगी।

" मैने ऐसी परवरिश तो नहीं दी तुम्हे फिर तुम ऐसी कैसे हो गई!" स्मृति इस बार गुस्से में बोली।

" बहू सोनल ने ऐसा क्या किया है क्यों डांट रही हो मेरी लाडो को!" मिथलेश जी बोली।

" मांजी इस बार नहीं मैं भली प्रकार जानती हूं मेरी बेटी के लिए इस वक़्त क्या सही ... आप दोनों अंधे लाड़ में इसकी जिंदगी मत खराब कीजिए !" ये बोल स्मृति ने तुषार से हुई मुलाकात और सारी बात बताई।

" मम्मी मुझे माफ़ कर दो मुझे लगा था मेरे यहां आने से तुषार को सबक मिलेगा और वो अपनी मम्मा को समझा देगा मुझे टोके ना पर उससे अलग होना मैने कभी नहीं चाहा ।" सोनल रोते हुए बोली।

" जानती हूं मैं ... तुझे इतना समझदार घर संसार मिला है उसमे आग मत लगा और लौट जा अपने घर पर अगर दुबारा ऐसे लड़ कर आना है तो इससे अच्छा तलाक ले ले!" स्मृति जी ने दो टूक कहा।

" नहीं मम्मी मैं अभी वापिस जा रही हूं मैं तुषार से मम्मीजी से सबसे माफ़ी मांग लूंगी!" सोनल ये बोल अपना बैग उठाने लगी।

" पर ऐसे क्यों जाओगी तुम तुषार को....!" महेश जी बोले।

" नहीं सोनल के पापा उसे जाने दो ड्राइवर छोड़ आएगा उसे मत रोको अब उसे !" स्मृति जी ने दृढ़ शब्दों में कहा जिन्हें सुन किसी की हिम्मत नहीं हुई उन्हें रोकने की।

" हेल्लो बेटा तुषार सोनल घर से निकल चुकी है अब तुम देखना सब !" स्मृति ने तुषार को फोन किया।

" मां आप फिक्र मत कीजिए ये घर और हम आज भी सोनल को उतना ही प्यार करते जितना कल करते थे !" तुषार बोला।

" जीते रहो बेटा सदा खुश रहो!" स्मृति जी ने ढेरों आशीर्वाद देते हुए फोन काट दिया।

स्मृति जी कुर्सी पर सिर लगा बैठ गई आज उन्होंने अपनी परवरिश पर उंगली उठने से पहले मामला संभाल लिया था और बेटी का घर बचा लिया था जिसका उन्हें संतोष था।


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