Sonal Bhatia Randhawa

Tragedy

2.4  

Sonal Bhatia Randhawa

Tragedy

मैं चुप रही....

मैं चुप रही....

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वॉश्बेसिन पर हाथ धोते हुए अपर्णा ने नर्स को आवाज़ दी “सुनीता अब और कोई पेशंट तो नहीं है ना ओ पी डी में" नर्स बाहर से ही बोली “नहीं मैडम"

अपर्णा ने एक गहरा सुकून का साँस लिया, जल्दी से तौलिए से हाथ पोंछे और पर्स से कार की चाभी निकाल तेज़ी से बाहर निकल गयी।

बाहर निकलते ही याद आया “अरे पर्स तो वहीं छूट गया” वापिस लेने पहुँची तो देखा सुनीता किसी से फ़ोन पर रो रो कर बात कर रही है "प्लीज़ ...मेरी बात तो सुनो !आज पेशंट बहुत थे इसलिए लेट हो गया, बस दस मिनट में पहुँच जाऊँगी"

अपर्णा को देखते ही सुनीता ने फ़ोन रख दिया और आँसू पोंछ कर भाग कर पर्स उठा लायी।

सुनीता एक हफ़्ता पहले ही अपर्णा के पास नौकरी के लिए आयी थी। दुबली पतली साँवली मगर ख़ूबसूरत सी लड़की । उम्र कोई 23-24 वर्ष, माँग में गहरा सिंदूर और माथे पर छोटी सी लाल बिंदी, क्वॉलिफ़ायड नर्स थी पर अभी ज़्यादा अनुभव नहीं था

“डॉक्टर प्लीज़ मुझे इस नौकरी की बहुत ज़रूरत है “

अपर्णा ने ग़ौर से उसके चेहरे को देखा, एक अजीब सी लाचारी और दहशत थी उसकी स्याह गड्ढों में घुसी आँखों में ! अपर्णा ना न कर सकी उसे !

“अब मैं जाऊँ मैडम”

हाँ हाँ जाओ “कह कर अपर्णा ने कार के दरवाज़े में चाभी लगायी। सुनीता की रोती हुई आवाज़ मगर देर तक उसके कानों में गूँजती रही।

अगले दिन सुबह सुनीता थोड़ा लेट आयी। मरीज़ों की भीड़ इतनी कि अपर्णा को सर उठाने की फ़ुर्सत भी ना थी। अचानक स्टाफ़ नर्स दौड़ती हुई अपर्णा के कमरे में आयी “मैडम जल्दी चलिए सुनीता बेहोश हो कर गिर पड़ी है “अपर्णा सीट से उठ कर हाथ में स्टेथोस्कोप लिए भागी। उसके पहुँचने तक स्टाफ़ ने सुनीता को बेड पर लिटा दिया था। अपर्णा ने फ़ौरन इमर्जेन्सी ट्रीटमेंट शुरू कर दिया। सुनीता का बदन आग जैसा तप रहा था ।बेहोश सी वो लगातार बड़बड़ाए जा रही थी “ मार दिया मैंने उसे "ख़त्म कर दिया "...अपर्णा ने उसे कुछ इंजेक्शंज़ दिए और स्टाफ़ को कहा “ ठीक है सब कंट्रोल में है, तुम लोग जाओ अपनी अपनी ड्यूटी पर"

सुनीता के पूरे बदन पर कई चोटें दिख रही थी, अपर्णा को कुछ ठीक नहीं लग रहा था। पर जब तक सुनीता होश में ना आए तब तक पता करना भी मुश्किल था। यह तो पक्का था की किसी ने उसे बेरहमी से पीटा था।

“मैडम पेशंट की भीड़ बहुत होती जा रही है ...आप आ रहे हैं ”हाँ हाँ चलो” ड्यूटी डॉक्टर को कुछ हिदायत देकर अपर्णा चली गयी। कुछ घंटे बाद ड्यूटी डॉक्टर ने अपर्णा को आकर बताया की सुनीता को होश आ गया है।"ओह ओके तुम चलो मैं आती हूँ....केस फ़ाइल वगरैह सब ठीक से तैयार कर लो, मेडिको लीगल केस बनेगा शायद"

अपर्णा को देखते ही सुनीता चीख़ चीख़ कर रोने लगी ...”मैडम मैंने उसे मार दिया ...मुझे बचा लो मैडम“

अपर्णा उसके पास बेड पर बैठ गयी और प्यार से उसका हाथ पकड़ कर बोली ...”मैं हूँ ना...तुम बिलकुल चिंता ना करो ...बताओ तो लेकिन हुआ क्या ...”

सुनीता ने धीरे धीरे सब गिरहें खोलनी शुरू की। उसकी माँ एक सेक्स वर्कर थी। दिल्ली के कश्मीरी बाज़ार में उसका जनम हुआ, रोज़ अपनी माँ को ना जाने कितने आदमीयों के साथ देखती थी। न जाने कौन उनमें से उसका पिता था ! माँ की रंगबिरंगी साड़ी ,चमकते हुए ज़ेवर और लाल लाल लिप्स्टिक उसे बेहद पसंद थी मगर माँ उसे इन सब के पास फटकने भी ना देती।

“एक दिन की बात है मैडम माँ से आँख बचा मैंने उनकी तरह लाल साड़ी पहनी और सजधज के तैयार हो उन्ही की तरह बाहर बाल्कनी में बैठ गयी। उस वक़्त मेरी उम्र कोई 10 बरस के आसपास होगी। जैसे ही माँ की नज़र मुझ पर पड़ी...वो तो जैसे पागल हो गयी ...रोए जाए और मुझे पीटे जाए ....चीख़ चीख़ कर मेरा बुरा हाल पर माँ पर कोई असर नहीं....”कमबख़्त..यहाँ रहेगी तो यही सीखेगी ....”

“कुछ दिन के बाद माँ ने मुझे “झोले वाली दीदी “ के साथ भेज दिया ..

अपर्णा ने उसे पूछा “ झोले वाली दीदी ?ये कौन ?”

सुनीता के चेहरे पर फीकी सी मुस्कुराहट आ गयी “झोले वाली दीदी बहुत अच्छी थी ...वहाँ के सब बच्चों की प्यारी...हर वक़्त उनके कंधे पर एक बैग लटकता रहता था जिसमें ख़ूब सारी बच्चों की कहानी की किताबें ,छोटे छोटे खिलौने और कई तरह की टोफ़्फ़ीयां ...बहुत अच्छी थी वो ...हम सब बच्चों को हर शाम दो घंटे पढ़ाने आती थी वहाँ ...”

एक गहरी साँस ले सुनीता जाने जहाँ खो गयी ....

अपर्णा ने उसका सर सहलाते हुए फिर पूछा “अच्छा पर झोले वाली दीदी कहाँ ले गयी तुम्हें ?सुनीता ने उठने की कोशिश की पर दर्द से कराह उठी,अपर्णा ने स्टाफ़ नर्स को इशारा किया उसे सहारा दे कर बैठाने को कहा ...

“अच्छा आगे तो बताओ ....”

“दीदी मुझे अपने घर ले गयी ...पास के स्कूल में दाख़िला कर दिया ...वो अकेली रहती थी ...सुबह ऑफ़िस में काम करती और शाम को पढ़ाती थी ...जैसे मैंने बताया ...धीरे धीरे मेरा मन वहाँ लगने लगा और दीदी की मदद से मैं आगे पढ़ती गयी ...शुरू शुरू में तो माँ की बहुत याद आती थी ...माँ हर हफ़्ते मिलने भी आती ...पर जैसे जैसे बड़ी होती गयी ...माँ के पेशे से घृणा होने लगी ...मुझे शर्म आने लगी की वो मेरी माँ हैं, माँ जैसे समझने लगी मेरे मन की बात ...धीरे धीरे माँ ने आना कम कर दिया ....मैं भी अपनी ज़िंदगी में रम गयी....”

“बारहवीं पास कर मुझे नर्सिंग कॉलेज में अड्मिशन मिल गया ...वहीं पर मेरी मुलाक़ात अजय से हुई ...अजय कॉलेज में कैंटीन चलाता था ...बातों बातों में पता चला की अजय के माता पिता का देहांत हो गया था जब वो सिर्फ़ छः बरस का था ....उसे उसके चाचा चाची ने पाला पोसा ...यह कैंटीन उसके चाचा ने ही उसे खुलवा कर दी थी ...अक्सर वो अपने माँ पिता की बात कर भावुक हो उठता ...धीरे धीरे मुझे उससे हमदर्दी होने लगी मैंने भी उसे अपनी सारी कहानी सच सच बता दी ...इस तरह हम नज़दीक आते गए और फिर जिस दिन मेरा कोर्स ख़त्म हुआ ..उसने शादी का प्रस्ताव रख दिया ...मना करने की कोई वजह न थी ...मैं तो यह सोच कर ही ख़ुश थी की सब कुछ जानने के बावजूद भी कोई मुझसे शादी करना चाहता है ...हम ने कोर्ट में शादी कर ली ....और दीदी के घर से विदा हो मैं सुनहरे सपने संजोये एक नयी ज़िंदगी की ओर चल पड़ी।

"अजय के घर पहुँची तो थोड़ा अटपटा लगा ...पाँच फ़ीट की तंग अंधेरी सी गली जहाँ शायद कभी सूरज झाँका भी ना होगा ...दूसरी मंज़िल पर एक दस बाई बारह का कमरा, एक ढाई फ़ुट की रसोई और बाथरूम ऐसा की दरवाज़ा बंद करने के लिए दीवार से सटना पड़ता था ...एक बार मन में आया भी की उससे पूछूँ की कैंटीन से क्या इतनी भी कमाई ना थी कि एक ठीक ठाक कमरा ले सके ?...फिर सोचा शायद अकेला ही था अब तक तो सोचा ही ना होगा ....कोई नहीं जब मुझे भी नौकरी मिल जाएगी तो कमाई बढ़ जाएगी ...तब अच्छा घर ले लेंगे....”

"मैं ने धीमे धीमे घर संभालना शुरू किया ....घर के काम काज निपटा फिर मैं नौकरी की तलाश में निकाल पड़ती ...एक महीना गुज़र गया ...अभी तक अजय ने मुझे कोई पैसे नहीं दिए थे ख़र्च के लिए ...शादी के समय दीदी ने कुछ पैसे शगुन के तौर पर दिए थे ...वही चल रहे थे ...”

अपर्णा ने पूछा “क्यूँ ,तुम तो ख़ुद जानती थी की उसकी कैंटीन अच्छी चलती है फिर कभी सवाल क्यूँ नहीं किया ?

“ मुझे लगा कि शायद उसे बुरा लगे की आते ही मैंने सवाल जवाब शुरू कर दिए ..ना जाने क्यूँ हर वक़्त मुझे लगता था की उसने मुझ से शादी कर मुझ पर बहुत एहसान किया है ...वरना मुझ जैसी से कौन शादी करता ...एक वेश्या की बेटी जिसे पता तक ना था उसका बाप कौन है ....”

अपर्णा ने देखा की कुछ थकान सी आ गयी है सुनीता के चेहरे पर .."अच्छा अब तुम थोड़ा रेस्ट कर लो फिर आगे सुनेंगे” कह कर अपर्णा उठने लगी पर सुनीता ने हाथ पकड़ बैठा दिया “नहीं मैडम फिर पता नहीं वक़्त मिले ना मिले आप से बात करने का ...” अपर्णा फिर ना न बोल पायी और वापिस बैठ गयी ....

“ओके मैं सुन रही हूँ तुम बोलो "

“वक़्त गुज़रने लगा, शगुन के पैसे ख़त्म हो गए ,मुझे कोई नौकरी भी नहीं मिल पा रही थी ..नयी फ़्रेशेर थी तो कोई रखना ही नहीं चाहा रहा था...अजय का स्वभाव धीरे धीरे बदला हुआ लगने लगा मुझे ...पैसे माँगती तो चिल्लाने लगता ...कुछ पूछती तो जवाब नहीं देता ...मैं फिर भी चुप रहती की शायद कुछ काम की टेन्शन होगी ...”

“ फिर एक दिन मुझे पता चला की यह कैंटीन उसकी थी ही नहीं वो बस वहाँ काम करता था ...”

“ओह ये किसने बताया तुम्हें" अपर्णा ने चौंक कर पूछा

"ख़ुद कैंटीन के मालिक ने जब वो एक दिन अजय को ढूँढते हुए घर तक पहुँच गए क्यूँकि अजय कई दिन से काम पर नहीं आ रहा था"

“उस रात जब अजय घर आया तो मैं ने हिम्मत कर पूछ ही लिया की कैंटीन में कोई प्रॉब्लम तो नहीं है ...बस मेरा ये पूछना था की वो तो एकदम आग बबूला होकर ग़ुस्से में चिल्लाने लगा .चीख़ते हुए कहने लगा की तुम्हारी इतनी औक़ात हो गयी की मुझसे सवाल करो ...मैं ने तुम पर तरस खा कर शादी कर ली ..वरना एक वेश्या की बेटी से कौन ब्याह करता ....मन किया बोल दूँ झूठ तो नहीं बोला तुम्हारी तरह ...पर चुप रह गयी ....”

उस के बाद तो रोज़ की यही कहानी होने लगी ....धीरे धीरे मुझे पता चला कि अजय को ड्रग्स की आदत ...तब मुझे समझ में आया की उसके पैसे कहाँ जाते हैं ..”

“ तो फिर तुमने क्या किया जब पता चला तो “

“क्या करती ...कहाँ जाती ...कोई था ही नहीं ...दीदी भी किसी सोशल प्रोजेक्ट के लिए कुछ साल के लिए अमरीका जा चुकी थी...और माँ...उनकी तो कई सालों से मैं ने ही सुध ना ली थी ....इसलिए सब जान कर भी चुप रह गयी ...

“ जो थोड़े बहुत गहने शादी के समय माँ ने दीदी को भिजवाये थे बस वो ही थे मेरे पास ...उन्ही को बेच कर कुछ दिन काम चलाया ...कितने पैसे तो वो ऐसे ही छीन ले जाता ..नहीं देती तो मार पीट लाते घूँसे ....”

“पर तुम तो ख़ुद कमा कर खा सकती थी ...छोड़ कर भाग जाना चाहिए था “अपर्णा ग़ुस्से से बोली

“कई बार सोचा मगर फिर लगता कि और कोई तो है ही नहीं मेरा ....जैसा भी है ...पति तो है ...बस यही सोच कर चुप रह जाती...जिस माँ को मैंने नीचा समझ कभी पूछा नहीं था आज उसी की दी हुई अमानत मेरे काम आ रही थी ..मगर ये पैसे भी कितने दिन चलते ...ख़त्म होते देर ना लगी ..पैसे ना दो तो मार खाओ ...और पैसे दूँ तो कहाँ से ..अपने स्वार्थ की ख़ातिर जब उसी नीच माँ को ढूँढने पहुँची तो पता चला माँ अब नहीं रही ....बहुत रोयी उस दिन मैं ...पश्चाताप के आँसू आज तक नहीं थमे ...”

कहते कहते सुनीता का गला रूँध गया और वो रुक गयी ..

अपर्णा ने उसे पानी का ग्लास दिया और फिर बोली “अच्छा कल रात क्या हुआ था?"

“मैडम कल रात तो सब हद पार कर दी उसने ...आप ने फ़ोन पर रोते सुना था ना मुझे ..अजय का ही फ़ोन था, लेट होने की वजह से नाराज़ हो कर ख़ूब गाली गलौज कर रहा था ...आप सामने थी इसलिए मैं चुप रह गयी ....”

“जब घर पहुँची तो देख लगभग ४०-४५ बरस का एक काला मोटा सा आदमी आराम से पैर पसारे कुर्सी पर बैठा है ..टेबल पर शराब की बोतल और दो ग्लास पड़े हैं ...मैं उसे देख कर एकदम सकपका गयी ...अजय की तरफ़ देखा तो उसने मुझे रसोई में आने का इशारा किया"

“अंदर पहुँची तो हँसते हुए बोला की तुम तैयार हो जाओ जल्दी से। मैं हैरान सी उसका मुँह ताकने लगी और पूछा कहाँ जा रहे हैं हम ?उसने बोला वहीं जहाँ से तुम आयी हो ...मैं फिर भी नहीं समझ पायी ...और उसका मुँह ताकने लगी ...बिफर गया एकदम वो ...ये पहला ग्राहक है तुम्हारा ...पाँच हज़ार तय किये हैं ...सोचो ऐसे अगर २-३ ग्राहक तुम निपटा दो रोज़ तो कितना आराम से रह लेंगे हम लोग ..तुम्हारे तो खून में है ये धंधा ....मैं कुछ नहीं बोली ...चुप रही बस रसोई से चाकू उठाकर बाहर निकल आयी ...वो मोटा मेरे हाथ में चाकू देख कर समझ गया और स्पीड से बाहर निकल गया ....उसके जाते ही अजय ने लात घूँसे मार मार कर बेहाल कर दिया ...मैं चुप रही ....

”हद है अभी भी तुम चुप रही ...पागल हो क्या" अपर्णा ग़ुस्से से लगभग चीख़ पड़ी

...”हाँ मैडम मैं चुप रही....वो मार मार कर थक गया...और लुढ़क गया वहीं ज़मीन पर ..मैंने ज़मीन पर गिरा हुआ चाकू उठाया ...और बारम्बार लगातार घोंप दिया उसके शरीर में ...जितने घाव उसने आज तक मुझे दिए उसका हिसाब चुकता कर दिया ...”

सुनीता फिर पागल की तरह चिल्लाने लगी ...”मार दिया मैंने उसे ....चुप रही पर मार दिया ..और मार कर भी चुप रही ...”

अपर्णा ने उसे गले लगा कर शांत किया और स्टाफ़ नर्स को जल्दी से इंजेक्शन देने के लिए कहा। अपर्णा वहीं बैठी रही तब तक, जब तक सुनीता इंजेक्शन के असर से सो नहीं गयी.

“सुनीता काश तुम चुप ना रही होतीं....”

फिर कुछ सोच कर अपने कमरे में जाकर मोबाइल उठाया और १०० नम्बर मिला दिया ....


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